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Kalpeshwar Mahadev Mandir – जहां होती है भगवान भोलेनाथ के जटाओं की पूजा

धर्मKalpeshwar Mahadev Mandir - जहां होती है भगवान भोलेनाथ के जटाओं की...

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चमोली – देवभूमि उत्तराखंड में आप पंच केदार और पंच बद्री के बारे में आपने बहुत सुना होगा. आज हम आपको पंच केदार के पांचवें केदार यानी कल्पेश्वर महादेव मंदिर के बारे में बताते हैं. कल्प गंगा नदी के समीप स्थापित मंदिर में भगवान शंकर की जटाओं की पूजा की जाती है. पौराणिक मान्यताओं के अनुसार इस मंदिर का निर्माण पांडवों के द्वारा कराया गया था. पंच केदार मंदिरों में सबसे कम ऊंचाई पर स्थित कल्पेश्वर महादेव मंदिर साल भर दर्शनों के लिए खुला रहता है बावजूद इसके श्रावण मास में भक्तों का कांटा लगा रहता है.

धार्मिक मान्यताएं

समुद्र तल से करीब 2000 मीटर की ऊंचाई पर उर्गम घाटी स्थित कल्पेश्वर महादेव मंदिर को लेकर धार्मिक मान्यता है कि महाभारत के युद्ध के बाद जब पांडव गोत्र हत्या के दोष से मुक्त होने के लिए भगवान शिव के दर्शन करने को हिमालय की ओर चले. भगवान शिव उन्हें दर्शन नहीं देना चाहते थे. ऐसे में हिमालय की पहाड़ियों में भगवान भोलेनाथ आगे-आगे और पांडव उनके पीछे-पीछे थे. पांडवों से बचने के लिए भगवान शंकर ने बैल का रूप धारण किया लेकिन पांडवों ने उन्हें पहचान लिया और भीम ने उन्हें पकड़ लिया. जिस पर बैल रूपी भोलेनाथ अंतर्ध्यान होने लगे. कहा जाता है कि बैल का जो भाग भीम ने पकड़ा था वहां केदारनाथ मंदिर स्थित है, जबकि मद्मेश्वर मैं भगवान भोलेनाथ की नाभि, तुंगनाथ में भुजाएं, रुद्रेश्वर में मुख और पशुपतिनाथ में धड़ जबकि कल्पेश्वर महादेव मंदिर में भगवान शिव की जटा से प्रकट हुई थी. इसीलिए उत्तराखंड के इन स्थानों को पंच पंच केदार के नाम से जाना जाता है.

Kalpeshwar Mahadev Mandir

कल्पवृक्ष से बना कल्पेश्वर

कल्पेश्वर महादेव मंदिर जाने के लिए आपको चमोली से गोपेश्वर होते हुए हेलंग पहुंचना है. जहां से कुछ किलोमीटर की चढ़ाई के बाद उर्गम घाटी में आपको कल्पेश्वर महादेव मंदिर के दर्शन होंगे. मंदिर तक पहुंचने के लिए आपको करीब 1 किलोमीटर लंबी गुफा से होकर गुजरना होता है. मंदिर के भीतर भगवान शिव की स्वयंभू जटाएं एक उभरी हुई शीला के रूप में विराजमान हैं. यहां आने वाले श्रद्धालु पास में ही स्थित क्लेवर कुंड से जल लेकर भगवान भोलेनाथ की जटाओं का अभिषेक करते हैं. पौराणिक मान्यता है कि ऋषि दुर्वासा ने इसी स्थान पर वरदान देने वाले कल्पवृक्ष के नीचे बैठकर तपस्या की थी तभी से इस स्थान को कल्पेश्वर के नाम से जाना जाने लगा.

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