https://www.themissioncantina.com/ https://safeonline.it/slot-bonus-new-member/ https://www.salihacooks.com/ https://hindi.buzinessbytes.com/slot-bonus-new-member/ https://jalanimports.co.nz/rtp-live https://geetachhabra.com/slot-bonus-new-member/ bocoran slot jarwo https://americanstorageakron.com/ https://test.bak.regjeringen.no/ https://www.cclm.cl/imgCumples/

Jwalpa Devi Mandir – जहां मनचाहा वर पाने को युवतियां लगाती है अर्जी

धर्मJwalpa Devi Mandir - जहां मनचाहा वर पाने को युवतियां लगाती है...

Date:

पौड़ी गढ़वाल- देवभूमि उत्तराखंड के धार्मिक स्थलों की अपनी पौराणिक महत्वता है. आज हम आपको उत्तराखंड के एक ऐसे मंदिर के बारे में बताते हैं जहां पर दैत्य राज की पुत्री ने इंद्र को पति रूप में पाने के लिए मां भगवती की वर्षो तपस्या की थी. इसके बाद आज भी अविवाहित लड़कियां सुयोग्य वर पाने के लिए मां भगवती के दरबार में अपनी अर्जी लगाती हैं. हम बात कर रहे हैं पौड़ी गढ़वाल के ज्वाल्पा देवी मंदिर (Jwalpa Devi Mandir) की. मां ज्वाल्पा देवी मंदिर में अखंड ज्योत प्रज्वलित है. यहां नवरात्र के समय यहां आने वाले भक्तों की संख्या में खासा इजाफा देखने को मिलता है.

मनचाहा वर पाने को लगती है अर्जी

पौड़ी कोटद्वार मोटर मार्ग पर थोड़ी मुख्यालय से करीब 33 किलोमीटर दूर ज्वाल्पा देवी का मंदिर स्थापित है. स्कंद पुराण के अनुसार माना जाता है कि दैत्यराज पुलोम की बेटी शच्ची ने जब देवराज इंद्र को पति रूप में पाने की इच्छा जाहिर की तो दैत्यराज ने शच्ची को मां भगवती को प्रसन्न कर मनचाहा वर मांगने की सलाह दी, जिस पर शच्ची ने मां भगवती की तपस्या शुरू की. वर्षों की तपस्या के बाद मां भगवती ने शच्ची को ज्वाला के रूप में दर्शन दिए. कहा जाता है कि जिस स्थान पर देवी शच्ची ने तपस्या की थी उसी स्थान पर आज माँ ज्वाल्पा देवी मंदिर स्थित है. ज्वाला रूप में दर्शन देने के चलते ही ऐसे स्थान का नाम ज्वालपा पड़ा. मां भगवती के ज्वाला रूट को अखंड ज्योत के रूप में निरंतर प्रज्वलित रहती है.

अखंड ज्योत के लिए तेल का दान

पौड़ी मुख्यालय से करीब 33 किलोमीटर दूर न्यार नदी के तट पर स्थित ज्वालपा देवी का मंदिर न केवल अपने धार्मिक महत्व के लिए जाना जाता है, अपितु इलाके के कई गांव की कुलदेवी के रूप में भी पूजनीय है. मां के दरबार की अखंड ज्योत को निरंतर जलाए रखने के लिए इलाके के कई गांव से सरसों टट्टी की जाती है. बताया जाता है कि 18वीं शताब्दी के गढ़वाल के राजा प्रदुमन शाह ने मंदिर को करीब 11 एकड़ भूमि दान दी थी. ताकि अखंड ज्योत के प्रज्वलन के लिए भूमि पर सरसों उगाई जा सके.

Share post:

Subscribe

Popular

More like this
Related

Agastya Muni – ऋषि अगस्त ने खास उद्देश्य के लिए बसाया था गांव

रुद्रप्रयाग- केदारनाथ यात्रा का अहम पड़ाव के रूप में...

Delhi Liquor Scam: कोर्ट ने मनीष सिसोदिया की न्यायिक हिरासत 14 दिन तक बढ़ाई

नई दिल्ली। दिल्ली शराब घोटाला मामले में मनीष सिसोदिया...