रुद्रप्रयाग- देवभूमि उत्तराखंड में धार्मिक स्थलों की अलग-अलग मान्यताएं हैं. रुद्रप्रयाग जिले के जसौली गांव में ‘हरियाली देवी’ का मंदिर भी अपनी अलग मान्यताओं के लिए जाना जाता है. बड़े-बड़े हिमालय पहाड़ियों से घिरे इस मंदिर की धार्मिक मान्यताओं को द्वापर युग से जोड़ा जाता है. हरियाली देवी मंदिर (Hariyali Devi Mandir) की होने वाली वार्षिक राजजात यात्रा में केवल पुरुषों को ही शामिल होने की अनुमति है. कहा जाता है कि नवरात्र पर होने वाली विशेष पूजा में जो भी भक्त मन्नत मांगता है वह अवश्य पूरी होती है. स्थानीय लोग हरियाली देवी मंदिर में विराजित देवी को सीता माता बाला देवी और वैष्णो देवी के नाम से भी पुकारते हैं. कृष्ण जन्माष्टमी और दीपावली के मौके पर यहां बड़े मेले का आयोजन किया जाता है. बड़ी संख्या में भक्तों मां हरियाली का आशीर्वाद लेने के लिए यहां पहुंचते हैं.
‘महामाया’ से जुड़ा धार्मिक महत्व
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार जब ‘महामाया’ देवकी और वासुदेव की सातवीं संतान के रूप में पैदा हुई. तब मामा कंस ने उसे अपना काल समझते हुए धरती पर पटक कर मारना चाहा लेकिन महामाया से शरीर के कई टुकड़े पूरी पृथ्वी में इधर-उधर बिखर गए. कहा जाता है कि महामाया का हाथ जसौली गांव में गिरा था. यही वजह है कि यह जगह सिद्ध पीठों में मानी जाती है. जिसके बाद यहां पर “हरियाली देवी मंदिर” की स्थापना की गई. मंदिर में माता की मूर्ति पीले रंग के वस्त्रों में विराजमान है. साथ ही क्षेत्रपाल और हित देवी की प्रतिमाएं भी मंदिर में स्थापित की गई हैं.
रोज नहीं होती पूजा
दुर्गम क्षेत्र में स्थित होने के कारण हरियाली देवी मंदिर की पूजा रोज करना संभव नहीं होता है यही वजह है कि जसोली गांव में माता का प्रतीकात्मक मंदिर स्थापित किया गया है. जहां रोज माता की पूजा अर्चना की जाती है. साल में दो बार माता को उनके मूल स्थान यानी कांठा मंदिर में ले जाया जाता है. दीपावली और जन्माष्टमी के मौके पर आयोजित होने वाली राजजात यात्रा में माता की डोली को लेकर उनके मायके यानी कांठा मंदिर ले जाया जाता है. जिसमें शामिल होने के लिए दूर-दूर से हजारों की संख्या में लोग पहुंचते हैं.
केवल पुरुषों को अनुमति
हरी पर्वत पर स्थित ‘हरियाली देवी’ का मंदिर अपनी धार्मिक मान्यताओं के लिए भी जाना जाता है. समुद्र तल से करीब 1400 मीटर की ऊंचाई पर स्थित इस मंदिर की राज जात यात्रा अपने आप में अनोखी और कठिनाइयों से भरी हुई है. साल में दो बार आयोजित होने वाली इस यात्रा में केवल पुरुषों को ही शामिल होने का की अनुमति है. दरअसल जसौली गांव को मां हरियाली देवी का ससुराल जबकि कांठा मंदिर को माता का मायका माना जाता है. राज जात यात्रा में भाग लेने वाले पुरुषों को 1 हफ्ते पहले ही तामसिक यानी मीट, मांस, मदिरा आदि चीजों का परित्याग करना होता है. हर साल मां की डोली को जसौली से कांठा मंदिर ले जाया जाता है. इस राजजात को एक ही रात में पूरा किया जाता है. कांठा मंदिर पहुंचकर माता भक्तों को आशीर्वाद देती है.