विजयादशमी का दिन बहुत महत्त्व का है। इस बार 5 अक्टूबर 2022 को विजयदशमी यानी दशहरा का पर्व पड़ रहा है। इस दिन सूर्यास्त के पूर्व से लेकर तारे निकलने तक का समय अर्थात् संध्या का समय बहुत उपयोगी माना गया है। रघु राजा ने इसी समय कुबेर पर चढ़ाई करने का संकेत दिया था।‘सोने की मुहरों की वृष्टि करो या तो फिर युद्ध करो।’ रामचन्द्रजी रावण के साथ युद्ध में इसी दिन विजयी हुए थे। ऐसे इस विजयादशमी के दिन मन में जो रावण के विचार हैं काम, क्रोध, लोभ, मोह, भय, शोक, चिंता – इन अंदर के शत्रुओं को जीतना है और रोग, अशांति जैसे बाहर के शत्रुओं पर विजय पानी है।
अपनी सीमा के पार औरंगजेब के दाँत खट्टे करने के लिए शिवाजी ने दशहरे का दिन चुना था। बिना मुहूर्त के मुहूर्त दहशरे के दिन होता है। यानी दशहरे को पूरे दिन स्वयंसिद्ध मुहूर्त होता है। इस दिन कोई शुभ कर्म करने के लिए पंचांग-शुद्धि या शुभ मुहूर्त देखने की आवश्यकता नहीं रहती। दशहरे के दिन कोई वीरतापूर्ण काम करने वाला सफल होता है। वरतंतु ऋषि का शिष्य कौत्स विद्याध्ययन समाप्त करके जब घर जा रहे थे तो उसने गुरुदेव से गुरूदक्षिणा के लिए निवेदन किया। तब गुरुदेव ने कहाः वत्स!तुम्हारी सेवा मेरी गुरुदक्षिणा है। तुम्हारा कल्याण हो।
परंतु कौत्स के आग्राह करने पर गुरुदक्षिणा के लिए ऋषि ने क्रुद्ध होकर कहा कि तुम गुरूदक्षिणा देना चाहते हो तो चौदह करोड़ स्वर्णमुद्राएँ लाकर दो।
अब गुरुजी ने आज्ञा की तो इतनी स्वर्णमुद्राएँ और तो कोई देगा नहीं। रघु राजा के पास गये। रघु राजा ने इसी दिन को चुना और कुबेर को कहा कि या तो स्वर्णमुद्राओं की बरसात करो या युद्ध के लिए तैयार हो जाओ। कुबेर ने शमी वृक्ष पर स्वर्णमुद्राओं की बरसात कर दी। रघु राजा ने वह धन ऋषिकुमार को दिया। ऋषिकुमार ने अपने पास नहीं रखा और अपने गुरु को दे दिया। विजयादशमी के दिन शमी वृक्ष का पूजन भी किया जाता है। उसके पत्ते देकर एक-दूसरे को यह याद दिलाना होता है कि सुख बाँटने की चीज होती है। दुःख पैरों तले कुचलने की। धन-सम्पदा अकेले भोगने के लिए नहीं होती है। भोगवादी, दुनिया में विदेशी ‘अपने लिए – अपने लिए’ करते हैं तो ‘व्हील चेयर’ पर और ‘हार्ट अटैक’ जैसी बीमारियों से मरते हैं। दशहरे की संध्या को भगवान को प्रीतिपूर्वक भजे और प्रार्थना करें।