अल्मोड़ा- उत्तराखंड के प्रसिद्ध मंदिरों में से एक है दूनागिरी माता का मंदिर(Dunagiri Mata Mandir) . कुमाऊ के अल्मोड़ा जिले में स्थित यह मंदिर भक्तों के लिए अपार श्रद्धा और आस्था का केंद्र है. इस मंदिर की ऐतिहासिक और धार्मिक मान्यताएं रामायण और महाभारत काल से जोड़ी जाती हैं. दूणागिरी मंदिर को दूसरी वैष्णो शक्तिपीठ का भी कहा जाता है. यह मंदिर बांस, देवदार, सुरई के पेड़ों के घने जंगल के बीच स्थित है. आप मंदिर से हिमालय पर्वतों के अलौकिक दर्शन भी कर सकते हैं. यूं तो मंदिर में पूरे साल भक्तों का तांता लगा रहता है लेकिन नवरात्र के समय बड़ी संख्या में श्रद्धालु मां दुर्गा का आशीर्वाद लेने यहां आते हैं.
दूसरी वैष्णव शक्ति पीठ दूनागिरी माता का मंदिर(Dunagiri Mata Mandir)
उत्तराखंड के अल्मोड़ा जिले के द्वार हार्ड से करीब 15 किलोमीटर दूर दूनागिरी माता का मंदिर स्थित है. वैष्णो देवी के बाद दूनागिरी माता का मंदिर दूसरी वैष्णो शक्तिपीठ के रूप में पूजी जाती है. वैष्णो देवी मंदिर की तर्ज पर ही इस मंदिर में किसी भी तरह की कोई मूर्ति नहीं है. यहां पर प्राकृतिक रूप से निर्मित सिद्ध पिंडिया माता भगवती के रूप में पूजी जाती हैं. दूनागिरी मंदिर में कई वर्षों से अखंड ज्योति जल रही है. दूनागिरी माता का वैष्णवी रूप होने के कारण यहां पर किसी भी प्रकार की बलि को पूर्णता वर्जित किया गया है. साथ ही मंदिर में आने वाले श्रद्धालु केवल नारियल माता को चढ़ाते हैं. जिन्हें मंदिर परिसर में फोड़ने की इजाजत नहीं है.
रामायण और महाभारत काल से जुड़ा है यह मंदिर
भव्य मंदिर के दर्शनों के लिए श्रद्धालुओं को करीबन 500 सीढ़ियां चढ़ने होती हैं. धार्मिक मान्यताओं की बात की जाए तो इस मंदिर को रामायण और महाभारत दोनों ही काल से जोड़ा जाता है. कहा जाता है कि जब लक्ष्मण को मेघनाथ का शक्ति बाण लगा था. तो उनके उपचार के लिए जब हनुमान जी संजीवनी बूटी का पर्वत लेकर जा रहे थे. तभी उस पर्वत से एक टुकड़ा यहां गिरा. जिसके बाद यहां मंदिर स्थापित किया गया. देवी पुराण के अनुसार पांडवों के अज्ञातवास के दौरान द्रोपती ने सतीत्व की रक्षा के लिए दूनागिरी की दुर्गा रूप में पूजा की थी. कहा यह भी जाता है कि कत्यूरी राजा सुधार देव ने मंदिर निर्माण कर यहां दुर्गा मूर्ति स्थापित की थी. दूनागिरी माता के मंदिर में मान्यता है कि जो भी भक्त शुद्ध मन से यहां कामना करता है. वह अवश्य पूरी होती है मनोकामना पूरी होने के बाद श्रद्धालु सोने चांदी के छात्र घंटियां और संघ चढ़ाते हैं.