तौक़ीर सिद्दीक़ी
एक फ़िल्मी गाना है “साक़िया आज मुझे नींद नहीं आएगी, सुना है तेरी महफ़िल में रतजगा है”. यकीनन आज की रात दिल्ली के सियासतदानों के लिए कुछ ऐसी ही है, बिलकुल नींद उड़ाने वाली। एक ही सवाल, कल क्या होगा? भले ही दावे कुछ भी हो रहे हों लेकिन घबराई आम आदमी पार्टी भी है और भाजपा भी जिसका इस चुनाव में बहुत कुछ दांव पर है, क्योंकि यह उनके लिए सुनहरा मौका है दिल्ली के दोनों तख्तों पर बैठने का. केजरीवाल का तो पूरा भविष्य ही कल के दिन पर टिका है. नतीजे बुरे आये, जैसा कि अनुमान जताया जा रहा है, तो उनके लिए बुरे दिनों की शुरुआत हो सकती है. कितने बुरे दिन आ सकते हैं, इसकी बानगी आज ही देखने को मिली जब एसीबी की टीम उनके घर तक पहुँच गयी.
कल क्या नतीजे आने वाले हैं इसका सटीक अंदाज़ कोई नहीं लगा सकता। आप एग्जिट पोल की बात करेंगे तो उसकी प्रासंगिकता ख़त्म हो चुकी है, पुराने खिलाड़ी बार बार पिटकर पीछे हट गए हैं, नयी नयी सर्वे कम्पनियाँ कुकुरमुत्ते की तरह निकल आयी हैं, जिनके पास किसी तरह के कोई आंकड़े नहीं कोई डेटा नहीं, ऐसा लगता है कि कॉपी पेस्ट का खेल चल रहा है, एक ने जो अनुमान दिखाए, बाकी लोगों ने कुछ हलके फुल्के बदलाव के साथ उसे ही चेप दिया। बिलकुल उसी तरह, जैसे भूकंप आने पर हर मीडिया हाउस मृतकों की संख्या दिखाने की होड़ में लगा होता है, सबके आंकड़े सही माने जाते हैं। बिना ग्राउंड पर पहुंचे या फिर आधिकारिक तौर पर एलान के बिना सभी अंदाजा लगा लेते हैं कि इतना भयंकर भूकंप आया है तो इतने तो मर ही जायेंगे.
खैर यहाँ पर बात दिल्ली विधानसभा के चुनावी नतीजों की हो रही है जो कल आने वाले हैं. भाजपा खुश है कि सब उसे जिता रहे हैं. AAP वाले निराश होते हुए भी निराश नहीं दिखने की कोशिश कर रहे हैं और स्वाभाविक तौर पर एग्जिट पोल्स को नकार रहे हैं। कांग्रेस पार्टी के लिए वैसे भी ज़्यादा कुछ नहीं था लेकिन उसने इस बार चुनाव गंभीरता से लड़ा और यही वजह है कि इस चुनाव में लोग कांग्रेस पार्टी और चुनाव लड़ रहे उसके कुछ नेताओं की भी बात कर रहे हैं. कहने का मतलब पिछले दो चुनावों में अपना सबकुछ गँवा चुकी कांग्रेस पार्टी के पास खोने को खुछ नहीं है, हाँ कुछ पाने के मौके ज़रूर बनते हुए नज़र आ रहे हैं. केजरीवाल की शिकायतों का दौर एडवांस में शुरू हो चूका है. हालाँकि दिल्ली में आम आदमी पार्टी को फिर से जीत तभी मिल सकती है जब महिलाओं, मुसलमानों और सिखों के बीच उसने अपनी पैठ बरकरार रखी होगी। अगर इन तीनों वोट बैंक में कांग्रेस या भाजपा ने कहीं से भी सेंध लगाई होगी तो फिर केजरीवाल के लिए वापसी बहुत मुश्किल होगी.
2020 में 19 सीटों पर जहां महिलाओं की हिस्सेदारी 47 प्रतिशत से अधिक थी, AAP ने पिछले चुनाव में रोहिणी और रोहतास नगर सीटें भाजपा से हारने के बावजूद अपने वोट शेयर में सुधार किया। इन सीटों पर औसत वोट शेयर 53.4 प्रतिशत से बढ़कर 55.8 प्रतिशत हो गया। AAP ने पांच सिख सीटों पर भी बेहतर प्रदर्शन किया, क्योंकि इसने अपना वोट शेयर 52.3 प्रतिशत से बढ़ाकर 54.7 प्रतिशत कर लिया। अन्य निर्वाचन क्षेत्र जहां AAP ने बेहतर प्रदर्शन किया है, वे 12 मुस्लिम सीटें हैं। विश्लेषण से पता चलता है कि सत्तारूढ़ दल का वोट शेयर इस श्रेणी में सबसे तेजी से बढ़कर 54.9 प्रतिशत से 58.5 प्रतिशत हो गया। अकेले इनसे 70 सीटों वाली दिल्ली विधानसभा में 26 विधायक हैं। आप ने पिछला चुनाव 62 सीटों के साथ जीता था और 2015 का चुनाव 67 सीटों के साथ। विश्लेषण से पता चलता है कि आप ने 55 सीटों पर नियंत्रण बनाए रखा, लेकिन वह पिछले साल की तुलना में अधिक अंतर से केवल नौ सीटें ही जीत सकी। पिछले चार चुनावों में भाजपा के लिए केवल तीन पक्की सीटें रही हैं। पार्टी उन 11 सीटों पर अपना वोट शेयर खो सकती है जहां यमुना बहती है और जिन क्षेत्रों में पूर्वांचली वोट अधिक हैं। विश्लेषण से पता चलता है कि इन क्षेत्रों में, भाजपा ने 2020 के चुनाव में अपने वोट शेयर को 30-35 प्रतिशत से बढ़ाकर 40 प्रतिशत से अधिक कर लिया। अब अगर एग्जिट पोल्स के अनुमानों को थोड़ी देर के लिए सही मान लें तो तस्वीर काफी बदल जाती है, भाजपा आप की जगह और आप भाजपा की जगह पहुँच जाती है, हालाँकि अंतर कोई बहुत ज़्यादा नहीं है. एग्जिट पोल्स में मार्जिन ऑफ़ एरर +-3 प्रतिशत का रहता है जो किसी की तरफ जाने से पासा पलट सकता है. केजरीवाल इसी मार्जिन ऑफ़ एरर पर उम्मीद लगाए बैठे हैं कि वो उनकी तरफ आ जाय. बस कुछ घंटों की बात ही बात है, कल सुबह सबकुछ आईने की तरह साफ़ हो जायेगा लेकिन सुबह से पहले की यह रात क़यामत की रात है।