अमित बिश्नोई
खेल में हार और जीत तो लगी ही रहती है लेकिन हार जब ऐसी मिले तो दर्द देती है, सवाल उठाती है. अबतक न जाने कितनी ही टीमों को 10 विकेट से हार मिली होगी लेकिन भारत को उस विशाखापट्नम में जहाँ उसकी तूती बोलती थे, जहाँ पर विराट कोहली बैटिंग एवरेज 111 रनों का था उस मैदान पर सिर्फ 11 ओवरों में मिली 10 विकेट से हार ने ऐसा ज़ख्म दिया है जो शायद बरसों या कह सकते हैं कि हमेशा दर्द देता रहेगा। दुनिया की सबसे मज़बूत बैटिंग लाइन अप सिर्फ 11 ओवरों में साफ़ हो जाय, किसी को यकीन आना बड़ा मुश्किल है. हैरानी तो इसपर और भी है कि जिस पिच पर भारतीय बल्लेबाज़ बेबस नज़र आये उसी पिच पर ऑस्ट्रेलियन बल्लेबाज़ों ने कहर ढा दिया। जिस पिच पर ऑस्ट्रेलियन तेज़ गेंदबाज़ों की स्विंग और उछाल ने भारतीय सूरमाओं को अँधा बना दिया उसी पिच पर भारत का कोई भी गेंदबाज़ उन्हें रोकने की कोशिश भी नहीं कर सका.
इसी साल भारत में विश्व कप का आयोजन है, ऐसे में इस शर्मनाक हार पर सवाल तो उठेंगे ही, सवाल तो उठेगा ही कि क्या केएल राहुल ने हमेशा की तरह एक पारी खेल कर आगे की दस पारियों के लिए सर्टिफिकेट हासिल कर लिया, अब उनकी अगली 10 पारियों में नाकामी पर कोई सवाल नहीं उठा सकता, क्या उनकी एक पारी ने पिछली नाकामियों के सारे दाग़ धो दिए, अब उनपर वो सवाल नहीं उठ सकते जो काफी समय से लगातार उठाये जा रहे थे. सवाल तो मिस्टर 360 डिग्री यानि सूर्यकुमार यादव के सुनहरे शून्यों पर भी उठेंगे। स्टार्क ने उन्हें दोनों ही मैचों एक जैसी गेंदों पर शून्य पर आउट कर उनके बदनुमा एकदिवसीय कैरियर पर एक और दाग़ लगा दिया। क्या ये सिलसिला आगे भी जारी रहेगा।
दरअसल हमारे यहाँ बड़ी बीमारी ये हैं कि थोड़ी सी कामयाबी पर खिलाडी को सितारा बना देते हैं. समय नहीं लेते ऐसा करने में, फिर वो चाहे गिल हों, ईशान किशन हो या फिर सूर्यकुमार। गिल के बारे में क्या कहा जा सकता है. अचानक क्या हो गया, अभी कुछ ही दिन पहले तो वो शतकवीर थे और अब बल्ला ही बंद हो गया. आज भी वो किस तरह आउट हुए, सबने देखा। उनके शॉट में आक्रमकता नहीं घमंड दिख रहा था, क्योंकि इस तरह का शॉट वो लगाता है जो विरोधी को कुछ नहीं समझता। सूर्य कुमार का व्यवहार भी आपको ऐसा ही दिखेगा। दो बार पहली गेंद पर शून्य बनाने के बावजूद उनके चेहरे के भाव ऐसे ही थे जैसे कोई बात नहीं, चलता है. इस बुरी शिकस्त के बाद साफ़ तौर पर कहा जा सकता है कि कुछ खिलाडियों को ढोया जा रहा है. क्यों और किस लिए ये तो बोर्ड ही बता सकता है.
यहाँ पर गेंदबाज़ों का दोष भी कम नहीं है, माना कि स्कोर बहुत कम था लेकिन इतना भी कम नहीं था कि 11 ओवरों में पूरा हो जाय. माना कि ऑस्ट्रेलियन बल्लेबाज़ों पर स्कोर का कोई दबाव नहीं था लेकिन सही दिशा और जगह पर गेंदबाज़ी कर हार को भी थोड़ा सम्मानजनक तो बनाया ही जा सकता था. मैच के बाद कुछ पूर्व खिलाडियों ने गेंदबाज़ों का बचाव करते हुए कहा भी कि पिच के स्वाभाव में थोड़ी तब्दीली आ गयी. हंसी आती है ऐसी बातों को सुनकर कि 37 ओवर चले इस मैच में पिच ने इतना परिवर्तन धारण कर लिया कि ऑस्ट्रेलिया ने भारतीय गेंदबाज़ों को मूसल से कूट दिया। हो सकता है चेन्नई का मैच भारत भी बड़े अंतर से जीत जाय मगर ऐसी हार दर्द तो देती है इसमें कोई शक नहीं।