राजधानी लखनऊ के निवासियों के लिए मंगलवार का दिन राहत लेकर आया क्योंकि लखनऊ के पंतनगर में बुलडोजर के पहिए थम गए. ये रोक अदालत ने नहीं बल्कि योगी सरकार ने खुद लगाई है. दरअसल जनता का दबाव इतना ज़्यादा था कि प्रदेश सरकार को बैकफुट पर आना पड़ा और कुकरैल रिवरफ्रंट के दायरे को सीमित करने पर मजबूर होना पड़ा.
बता दें कि कुकरैल रिवरफ्रंट बनाने के लिए योगी सरकार ने लखनऊ के कुकरैल नदी के किनारे घरों को चिन्हित किया गया था. नदी के पचास मीटर के दायरे में बने घरों को अवैध बताया गया. कुकरैल रिवरफ्रंट के दायरे में रहीमनगर, खुर्रमनगर, इंद्रप्रस्थनगर, पंतनगर और अबरारनगर के करीब एक हजार मकान आ रहे थे. मकानों को चिह्नित कर उनपर लाल निशान लगा दिए गए थे और इन मकानों पर बुलडोजर चलाया जाना था. इससे पहले योगी सरकार अकबर नगर की बस्ती पर बुलडोज़र चलवा चुकी थी.
अकबरनगर का जो हाल हुआ था उससे लोग पहले से ही सचेत थे, इसलिए जैसे ही सरकार इस मामले में आगे बढ़ी और मकानों चिन्हित करके उसपर लाल निशान लगा दिए, लोग सड़कों पर उतर आये. इन लोगों का कहना था कि सभी के पास रजिस्ट्री है. हाउस टैक्स वो देते हैं, बिजली का बिल भरते हैं, वाटर टैक्स देते हैं तो फिर मकान अवैध कैसे हो गए. जब लोगों की नाराज़गी ज़्यादा बढ़ी तो मजबूर होकर मुख्यमंत्री योगी ने अधिकारियों के साथ बैठक करके निर्देश दिया गया कि पंतनगर, खुर्रमनगर और अबरार नगर में कुकरैल नदी के किनारे घरों पर बुलडोज़र नहीं चलेगा।
योगी सरकार के इस फैसले से रहीमनगर, खुर्रमनगर, इंद्रप्रस्थनगर, पंतनगर और अबरारनगर के निवासियों में ख़ुशी की लहार दौड़ गयी. निवासियों ने बेदखली की कार्रवाई के फैसले की वापसी को जन आंदोलन की जीत बताया। वैसे कहा तो ये भी जा रहा है कि बुलडोज़र वापसी का फैसला सियासी मजबूरी है। प्रदेश में जो सियासी हालात चल रहे हैं वो मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के लिए ठीक नहीं हैं ऐसे में किसी जनांदोलन के खड़ा होने से उनके लिए मुसीबतें और भी बढ़ सकती थी.