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भूकंप में मरने वालों की संख्या 130 पहुंची

इंटरनेशनलभूकंप में मरने वालों की संख्या 130 पहुंची

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नेपाल-तिब्बत सीमा पर स्थित टिंगरी काउंटी में कल आये भीषण भूकंप से 8 लाख की आबादी वाला यह शहर मलबे में तब्दील हो गया। यह शहर चीन से माउंट एवरेस्ट का एंट्री पॉइंट है। नेपाल-तिब्बत सीमा पर आये इस 6.8 की तीव्रता वाले भूकंप से भारत, बांग्लादेश, चीन, भूटान तक हिल गए। इस भूकंप में मरने वालों की संख्या अब 130 पहुँच चुकी है वहीँ घायलों की बहुत भारी संख्या बताई जा रही है.

भू वैज्ञानिकों के अनुसार यह भूकंप नेपाल-तिब्बत में एशियाई और इंडो-ऑस्ट्रेलियन प्लेटों के टकराने से आया था। जब ये प्लेटें आपस में टकराती थीं, तो बहुत शक्तिशाली तरंगें और ऊर्जा निकलती थीं, जिनकी आवृत्ति से धरती कांप उठती थी। नेपाल और तिब्बत इन प्लेटों पर स्थित हैं। इनके नीचे धरती के अंदर 130-190 किलोमीटर की गहराई पर एशियाई और इंडो-ऑस्ट्रेलियाई टेक्टोनिक प्लेट हैं। धरती की सतह इन्हीं प्लेटों से बनी है। इन्हीं प्लेटों के ऊपर महासागर और महाद्वीप बने हैं। हिमालय का निर्माण इन्हीं प्लेटों के टकराने से हुआ। इनके टकराने से हिमालय की ऊंचाई बढ़ती जा रही है।

एक अनुमान के मुताबिक ये टेक्टोनिक प्लेटें हर साल अपनी जगह से 4 से 5 मिलीमीटर खिसक रही हैं। भूकंप का केंद्र वह होता है, जहां ये प्लेटें टकराती हैं। इस जगह को फोकस या हाइपोसेंटर कहते हैं। यहां से निकलने वाली ऊर्जा और तरंगें फैलती हैं और धरती को कांपने पर मजबूर करती हैं। भौगोलिक दृष्टि से देखा जाए, तो धरती 12 टेक्टोनिक प्लेटों से बनी है। टेक्टोनिक प्लेटें क्रस्ट और धातु से बनी चट्टानें होती हैं। ये एस्थेनोस्फीयर नामक चट्टान के ऊपर हवा में तैरती रहती हैं। इन 12 प्लेटों को 7 भागों में बांटा गया है। ये 7 भाग हैं इंडो-ऑस्ट्रेलियाई खंड, उत्तरी अमेरिकी खंड, अफ्रीकी खंड, एशियाई खंड आदि। ये सभी भाग एक दूसरे से जुड़े हुए हैं। पृथ्वी की 3 परतें क्रस्ट, मेंटल और कोर हैं। क्रस्ट सबसे बाहरी परत है, मेंटल दूसरी और कोर तीसरी और सबसे भीतरी परत है। पूरे महासागर के नीचे की परत की मोटाई केवल 5 किलोमीटर है और यह बेसाल्ट से बनी है।

महाद्वीपों के नीचे की परत की मोटाई लगभग 30 किलोमीटर है। पहाड़ों के नीचे की परत की मोटाई 100 किलोमीटर है। चूँकि पृथ्वी गोल है, इसलिए इन परतों की गहराई अलग-अलग होती है। 5 किलोमीटर मोटी परत पर पानी है, लेकिन 30 किलोमीटर मोटी परत पर दुनिया बसी हुई है, जो बहुत ज़्यादा है। महाद्वीपों के नीचे की परतों पर ऊपर की दुनिया की गतिविधियों का दबाव पड़ता है। जब दबाव बहुत ज़्यादा हो जाता है, तो चट्टानें खिसक जाती हैं।

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