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Chandrayaan 3: अरबों का बिजनेस देगा चंद्रयान 3, मून इकॉनोमिक्स से धाक जमाएगा ISRO

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Chandrayaan 3 moon economics: चंद्रयान 3 की चांद की सतह पर सॉफ्ट लैंडिंग भारत की वैज्ञानिक दक्षता ही नहीं बल्कि आर्थिक रूप से एक बड़ी सफलता होगी। चंद्रयान मात्र जानकारी ही नहीं उपलब्ध कराएगा बल्कि ये भारत को अरबों का बिजनेस भी देगा। moon economics क्या है और दुनिया में इससे कैसे धाक जमाएगा इसरो यहां जाने।

अमेरिका, रूस, साउथ कोरिया और जापान के बीच रेस ऑफ मून यानी चंद्रमा पर पहुंचने और बेस बनाने की होड़ है। चांद पर रेस के पीछे मून इकॉनोमिक्स है। रेस ऑफ मून में अमेरिका और रूस पीछे छूटे हुए हैं। रूस का लूना-25 मिशन फेल होने के बाद भारत इतिहास रचने की तैयारी कर रहा है। 23 अगस्त शाम 6:04 बजे सबसे कम दूरी यानी 25 किलोमीटर की ऊंचाई से लैंडर विक्रम चंद्रमा की सतह पर सॉफ्ट लैंड कराने की कोशिश करेगा।

भविष्य में चांद पर लोगों को बसाने की प्लानिंग की जा रही है। भविष्य में युद्ध, रिसर्च और छुट्टी मनाने के लिए चांद पर बेस बनाए जाने की प्रबल संभावना है। चांद पर जाने की होड में भारत उन चुनिंदा देशों में शामिल होगा जो चांद पर वो खोज करते हैं। जिनसे आगे जाकर भारत चंद्रमा पर अपना बेस बनाने में सफल होगा। चंद्रयान-3 की सफलता मून इकोनॉमी पर भारत की धाक जमा देगी।
ऐसे खुलेंगे ‘मून इकॉनोमी’ के दरवाजे?

भारत ने हेवी लिफ्ट लॉन्च व्हीकल LVM3-M4 से चंद्रयान3 को लॉन्च किया। बीते दिनों अमेजन के फाउंडर जेफ बेजोस की कंपनी ‘ब्लू ओरिजिन’ ने इसरो के LVM3 रॉकेट के उपयोग में अपना इंटरेस्ट दिखाया। जेफ बेजोस स्पेस कंपनी ब्लू ओरिजिन में भारत के LVM3 का उपयोग कॉमर्शियल और टूरिज्म के लिए करना चाहते हैं। चंद्रयान-3 भारत के लिए मून इकॉनोमी के दरवाजे खोलेगा। स्पेस एक्स जैसी कंपनियां चांद तक ट्रांसपोर्ट को बड़ा बिज़नेस मान रही हैं। चंद्रयान के माध्यम से भारत उस बड़े व्यापार में हिस्सेदारी के लिए तैयार है।

2040 तक 4 करोड़ 20 लाख डॉलर होगी moon economy

प्राइस वॉटरहाउस कूपर के मुताबिक, चांद तक होने वाले ट्रांसपोर्टेशन का व्यापार दो हज़ार 40 तक 42 बिलियन डॉलर तक होगा। प्राइस वॉटरहाउस कूपर ने 2020 से 2025 के बीच 9 बिलियन डॉलर के मून इकोनॉमी का अनुमान जताया है। साल 2026 से 2030 तक के लिए मून इकॉनोमी 19 बिलियन डॉलर की होगी। 2031 से 2035 के बीच 32 बिलियन डॉलर मून इकॉनोमी होगी। जबकि 2036 से 2040 के बीच 42 बिलियन डॉलर होने की संभावना है।

चांद तक होने वाले ट्रांसपोर्टेशन के व्यापार से मुनाफा नहीं होगा। चांद से मिलने वाला डाटा बेहद अहम है। हर देश सफलतापूर्वक चांद पर नहीं उतर सकता। वो वहां से मिलने वाली जानकारी भारत से करोड़ों डॉलर में खरीदेगा। जिससे कि बिना यान भेजे चांद पर रिसर्च की जा सके। चंद्रयान 3 की सफलता इसरो के लिए किसी धनकुबेर के खजाने से कम नहीं होगी।

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