टिहरी- उत्तराखंड के टिहरी जिले में स्थित इस मंदिर में कभी नरबलि की परंपरा थी. समय के साथ साथ यह नरबलि पशु बलि में बदली और उसके बाद नारियल बली में यह परंपरा आज भी जीवित है. 51 शक्तिपीठों में से एक देवी शक्ति को समर्पित यह मंदिर भक्तों की अपार धार्मिक आस्था से जुड़ा हुआ है. हम बात कर रहे हैं टिहरी जिले के देवप्रयाग क्षेत्र में स्थित है मां चंद्रबदनी मंदिर (Chandrabadani Mata Mandir) की.
समुद्र से करीब 2277 मीटर की ऊंचाई पर चंद्रकूट पर्वत पर स्थित है मां चंद्रबदनी का दरबार. माता के दरबार के दिव्य दर्शन आपको अभिभूत करेंगे ही साथ ही मंदिर परिसर के आसपास का मनोरम दृश्य आपको आनंदित कर देगा. कहा जाता है कि चंद्रबदनी मंदिर मां में माता सती का धड़ गिरा था. जिसके बाद इस मंदिर के साथ-साथ इस पर्वत का नाम भी चंद्रबदनी पर्वत हो गया. इस मंदिर में माता चंद्रबदनी या किसी अन्य देवता की मूर्ति नहीं है यहां केवल एक श्री यंत्र की पूजा की जाती है गर्भ ग्रह में स्थिति इस श्री यंत्र की पूजा का रहस्यमय तरीका अपनाया जाता है.
श्री यंत्र से प्रभावित हुए आदि गुरु शंकराचार्य
मंदिर के गर्भ गृह में दिव्य और चमत्कारी श्री यंत्र को लेकर कोई खास जानकारी तो नहीं है. लेकिन कहा जाता है कि आदि गुरु शंकराचार्य ने इस चमत्कारी श्री यंत्र से प्रभावित होकर इस पर्वत पर मंदिर की स्थापना की थी. शायद यही वजह है कि यह मंदिर शक्तिपीठ नहीं बल्कि सिद्ध पीठ के नाम से जाना जाता है. कहा जाता है कि मंदिर के गर्भ गृह में मौजूद श्री यंत्र को हमेशा कपड़े से ढका रहता है. इस श्री यंत्र को नंगी आंखों से नहीं देखा जा सकता श्री यंत्र की पूजा पुजारी अपनी आंखों पर पट्टी बांधकर या फिर नजरें झुका कर ही करता है.
धार्मिक मान्यताएं
चंद्रबदनी मंदिर (Chandrabadani Mata Mandir) को लेकर धार्मिक मान्यताएं है कि जो राजा दक्ष के जग में भगवान शिव को आमंत्रित नहीं किया गया. तो माता सती ने नाराज होकर उस हवन कुंड मैं अपने को स्वाहा कर दिया. जिसके बाद क्रोधित भोलेनाथ ने माता सती के शरीर को लेकर तांडव किया. पृथ्वी पर संकट को देखते हुए भगवान विष्णु ने माता सती के सुदर्शन चक्र से 51 टुकड़े कर दिए थे. जहां-जहां टुकड़े गिरे आज वहां पर शक्तिपीठ स्थापित है. कहा जाता है कि यहां पर माता सती का धड़ गिरा था. जिसके बाद यहां पर चंद्रबदनी मंदिर की स्थापना हुई. मान्यताएं यह भी है कि आदि गुरु शंकराचार्य ने मंदिर परिसर में स्थित चमत्कारी श्री यंत्र से प्रभावित होकर इस मंदिर की स्थापना की थी.