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चैंपियंस ट्रॉफी: तो बात वोटिंग तक आ पहुंची

आर्टिकल/इंटरव्यूचैंपियंस ट्रॉफी: तो बात वोटिंग तक आ पहुंची

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तौकीर सिद्दीक़ी
पाकिस्तान में होने वाली चैंपियंस ट्रॉफी का भविष्य क्या होगा, ये न तो पाकिस्तान को पता है और न ही ICC को. मामला इतना उलझा हुआ है कि ख़बरों का सैलाब आ गया है, जितने मुंह उतनी बातें। पाकिस्तानी मीडिया हो या फिर भारतीय मीडिया दोनों की ख़बरों में इतना विरोधाभास है कि सच्चाई क्या है ये पता ही नहीं चल पा रहा है और ICC कोई स्पष्ट बात नहीं रख रहा है, उसकी कोशिश बस यही है कि जो भी हल निकले वो ऐसा निकले जिसमें उसे आर्थिक नुक्सान न हो. पैसा कमाने के लिए ही तो चैंपियंस ट्रॉफी के आयोजन की शुरुआत की गयी थी. पैसा कमाने के लिए ही तो ICC के हर टूर्नामेंट में भारत और पाकिस्तान के मैच की फिक्सिंग की गयी, वरना पहले के विश्व कप देख लीजिये, भारत और पाकिस्तान आपस में कितनी बार टकराये? जब से भारत और पाकिस्तान ने आपस में खेलना बंद किया, ICC ने अपने प्लेटफॉर्म पर इन दोनों चिर प्रतिद्वंदियों के मुकाबलों को फिक्स करना पक्का कर दिया, यहाँ फिक्सिंग का मतलब उस वाली फिक्सिंग से नहीं है. हालाँकि इस फिक्सिंग का मकसद भी ज़्यादा पैसा कमाना ही है, बस फर्क इतना है कि एक फिक्सिंग कानूनी है और दूसरी फिक्सिंग गैर कानूनी।

खैर बात चैंपियंस ट्रॉफी की हो रही थी तो कहा ये जा सकता है कि पाकिस्तान ने अगर अपनी ज़िद न छोड़ी और उलूल जुलूल शर्तों का राग अलापना न छोड़ा तो बात वोटिंग तक जा सकती है और इतना तो पक्का है कि चैंपियंस ट्रॉफी के आयोजन की बात अगर सदस्य देशों की वोटिंग तक पहुँच गयी तो फिर पीसीबी न घर की रहेगी न घाट की. हालाँकि पीसीबी का दावा अपनी जगह सही है, पाकिस्तान को चैंपियनशिप की मेज़बानी ICC ने ही दी थी इसलिए ICC की ये ज़िम्मेदारी भी बनती है कि सभी प्रतिभाग करने वाले देश पाकिस्तान जाकर चैंपियंस ट्रॉफी में हिस्सा लें लेकिन ये बात भी पूरी दुनिया जानती है कि भारत और पाकिस्तान के रिश्ते हमेशा नाज़ुक रहते हैं, ये ज़रूरी नहीं कि आज जो बात तय हो उसपर अमल भी हो. एक लम्बा समय हो गया है, भारतीय टीम ने पाकिस्तान का दौरा नहीं किया है. दिव्पक्षीय श्रंखलाएं तो बंद हो ही चुकी हैं, एशिया कप खेलने भी भारतीय टीम पाक्सितान नहीं गयी. हाँ पाकिस्तान की टीम ने ज़रूर भारत अपनी टीम भेजी और इसीलिए वो ज़िद कर रहा है कि भारतीय टीम भी पाकिस्तान आये. इसके लिए वो तरह तरह के प्रस्ताव दे रहा है, भारत के सभी मैच एक ही वेन्यू और वो भी भारत के सबसे करीबी शहर लाहौर में कराने की बात कर रहा है, पाकिस्तान ने ये भी प्रस्ताव रखा कि भारतीय टीम अपना हर मैच खेलकर वापस भारत जा सकती है यानि पाकिस्तान में रात्रि विश्राम न करे. दूसरी तरफ भारत ने सिर्फ एक बात कही कि वो किसी भी परिस्थिति में अपनी टीम पाकिस्तान नहीं भेजेगा।

अब बात पाकिस्तान के झुकने और शर्तों पर आ गयी है. पाकिस्तान ने ICC के सामने तीन साल के लिए शर्तें रखी हैं और वो शर्तें यही हैं कि पाकिस्तान भी आइंदा तीन सालों में भारत में होने वाले ICC टूर्नामेंट में अपने मैच खेलने भारत नहीं जायेगा, उसके मैच दुबई में कराये जांय। पाकिस्तान का कहना है कि जैसे भारत पाकिस्तान में सुरक्षा चिंताओं की बात कर रहा है, ठीक उसी तरह की सुरक्षा चिंताएं भारत में पाकिस्तान की भी हैं. अब इस बात की प्रबल सम्भावना है कि भारत पाकिस्तान के शर्त रुपी इन प्रस्तावों को ठुकरा देगा, उधर ICC पाकिस्तान को इस तरह कोई आश्वासन नहीं दे सकता। हालंकि शर्तों की बात करके पाकिस्तान ने कहीं कहीं इस बात के संकेत ज़रूर दे दिए हैं कि इस मुद्दे पर ICC के सामने राज़ी हो सकता है, बशर्ते कि उसे इसका फायदा मिले। कहा तो ये जा रहा है कि पीसीबी ये जनता है कि वो टीम इंडिया को पाकिस्तान नहीं बुला सकता, उसकी इतनी हैसियत नहीं कि वो ICC पर कोई दबाव डाल सके. पीसीबी बस इन परिस्थितियों का आर्थिक फायदा उठा सकता है. पाकिस्तानी क्रिकेट बोर्ड की माली हालत कुछ ठीक नहीं है, इस बहाने वो अपना हिस्सा ICC से बढ़वाना चाहती है, हालाँकि उसके लिए ये सब आसान नहीं है, ऊपर से जय शाह ICC चेयरमैन की कुर्सी पर विराजमान हो चुके हैं. पाकिस्तान के पास मज़बूती बस इतनी है कि कुछ भी विपरीत होने पर ICC को कानूनी रूप से घेर सकता है और ICC इस बात से बचना चाहती है, इसलिए वो पाकिस्तान की खुशामद कर रही है.

उधर पाकिस्तान इस मुद्दे को और उलझना और गतिरोध को आगे तक ले जाना चाहता है ताकि ICC पर स्पांसर्स का दबाव बढ़े , जिसका फायदा पीसीबी उठाये। पीसीबी के चेयरमैन मोहसिन नकवी पिछले कुछ दिनों से लगातार इसी तरह के बयान दे रहे हैं. कभी वो कहते हैं पाकिस्तान को पैसों की नहीं बल्कि अपने सम्मान की परवाह है. कभी वो लिखित में भारतीय टीम के पाकिस्तान न आने के सबूत मांगते हैं, कभी वो कहते हैं कि पाकिस्तान की टीम भारत जाय और भारतीय टीम पाकिस्तान न आये ऐसा नहीं हो सकता। कभी वो सरेंडर की बातों को पूरी तरह ख़ारिज करते हैं और कभी शर्तों के साथ हाइब्रिड मॉडल पर राज़ी होने के संकेत देते हैं। कुल मिलाकर मोहसिन नक़वी किसी एक बात पर ठहरते हुए नहीं दिखाई देते, मेरे हिसाब से तो वो सौदेबाज़ी करने के हथकंडे अपना रहे हैं और उसी के लिए नए नए फॉर्मूले पेश कर रहे हैं जिनका कोई मतलब नहीं है. बात अगर वोटिंग तक आ गयी है तो फिर पाकिस्तान का झुकना लाज़मी है वरना उसके ऊपर न खुदा ही मिला, न विसाले सनम वाली बात लागू हो जाएगी। चैंपियंस ट्रॉफी तो हाथ से जाएगी ही, आर्थिक नुक्सान होगा सो अलग।

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