आमों का जिक्र हो और महिलाबाद का नाम न आये ऐसा हो ही नहीं सकता है क्योकि सिर्फ यहीं मिलती है आमों की 700 किस्मों की वैराइटी , लखनऊ से महज कुछ किलोमीटर दूर महिलाबाद को मैंगोलैंड के नाम से भी जाना जाता है। इस जगह को ये दर्जा यूं ही नहीं मिला इसको यहां के लोगो ने कमाया है , यहां आमों के 100 से ज्यादा बगीचों है , यहां रहने वाला लगभग हर शख्स आमों का काम तो करता ही हैं। आपको जान कर आश्चर्य होगा की यहां के आम को इतना कितनी माना जाता है कि सरकार भी इन पर जियो टैगिंग कर देती है। ताकि इनमे स्वाद को कोई ओर कॉपी न कर सके ।
जैसे ही आम का सीजन आता है लखनऊ और उसके आस पास के शहरों की हवाओ में मानो आम की खुशबू फ़ैल सी जाती है। चाहे हाईवे पर चले जाये चाहे बाजारों में ऐसा लगता है जैसे हर तरफ सिर्फ आम का बगीचा चल रहा है। आपको पता है पूरे यूपी में इस जगह से हर साल लगभग 500 टन से ज्यादा आम एक्सपोर्ट किया जाता है। जिसमे दुबई, जापान, अमेरिका से लेकर न्यूजीलैंड तक के देश शामिल है , वहां भी लोग मलिहाबादी दशहरी, जौहरी सफेदा और लखनउवा चौसा के दीवाने है ।
आम ने दिलवाया कलीमुल्लाह को पद्मश्री
83 साल के हाजी कलीमुल्लाह खान का मलिहाबादी आम की किस्मों को बचाने में एक अहम योगदान रहा है । उन्होंने 5 एकड़ में एक नर्सरी बनाई है जिसका नाम ‘अब्दुल्ला नर्सरी’ रखा है। आप जान कर चौक जायेंगे की इसमें एक ऐसा आम का पेड़ है, जिसमें एक साथ ही 300 से ज्यादा किस्मों के आम निकलते हैं। और हर एक आम का टेस्ट बिल्कुल अलग होता है। और सबके पत्ते भी अलग होते हैं। इसी पेड़ की वजह से उन्हें पद्मश्री से भी सम्मानित किया गया है।हाजी कलीमुल्लाह खान को लोग मैंगो मैन के नाम से भी जानते हैं।