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मध्य प्रदेश में क्या भाजपा का पैनिक बटन दब चूका है?

आर्टिकल/इंटरव्यूमध्य प्रदेश में क्या भाजपा का पैनिक बटन दब चूका है?

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अमित बिश्नोई

आने वाले चार राज्यों के विधानसभा चुनावों में मध्य प्रदेश भाजपा के लिए इज्जत का सवाल बन गया है, तभी तो अपनी इज़्ज़त को बचाने के लिए भाजपा ने या फिर कहिये प्रधानमंत्री मोदी और पार्टी के चाणक्य और देश के गृह मंत्री अमित शाह ने तीन केंद्रीय मंत्रियों समेत सात मौजूदा सांसदों को मैदान में उतार दिया है, ये सातों नाम भाजपा की दूसरी 39 उम्मीदवारों की सूची में शामिल हैं. वहीँ इस सूची ने राज्य की राजनीति को भी उथल पुथल कर दिया है और सवाल उठने लगे हैं कि क्या केंद्रीय नेतृत्व को इस बात का एहसास हो चला है कि इस बार पुराने चेहरों से काम नहीं चलने वाला इसलिए नए चेहरों को आगे किया जाय. नरेंद्र सिंह तोमर और विजयवर्गीय जैसे बड़े नामों को राज्य की राजनीति में उतारने से सवाल ये भी उठ रहा है कि क्या मोदी जी को शिवराज चौहान पर अब भरोसा नहीं रहा? क्या मध्य प्रदेश में पार्टी के अंदर चल रहे अंतर्विरोध को रोकने के लिए पार्टी ने केंद्र से लोगों को उम्मीदवार बनाकर भेजा है? क्या जनता के गुस्से को कम करने की यह एक कवायद है?

पार्टी को इस बात को एहसास है कि मध्य प्रदेश में उसके लिए हालात इस बार काफी कठिन हैं, अब तक जितने में भी सर्वेक्षण आये हैं सब इसी बात की तरफ इशारा कर रहे हैं कि कर्नाटक दोहराया जा सकता है, दो दशकों से सत्ता संभाले शिवराज चौहान के हाथों से इसबार सत्ता फिसल सकती है, पार्टी और संघ द्वारा कराये गए अंदुरुनी सर्वेक्षण भी इसी बात की पुष्टि कर रहे हैं और यही बात है कि प्रधानमन्त्री और गृहमंत्री के इस हिंदी भाषी राज्य में चुनावी दौरों की संख्या लगातार बढ़ती जा रही है. सरकार से नाराज़गी को कम करने के लिए कोशिशें तेज़ हो गयी हैं. लगभग दो दशक से राज्य में सरकार चलाने के बावजूद प्रधानमंत्री के भाषणों में सिर्फ और सिर्फ कांग्रेस की चर्चा रहती है, दो दिन पहले भोपाल में दिए गए अपने 51 मिनट के भाषण में उन्होंने 41 बार कांग्रेस पार्टी का नाम लिया। चार बार की सत्ता की उपलब्धियों पर बोलने के बजाए उनका सारा ज़ोर कांग्रेस पार्टी की कमियां गिनाने पर रहा. वो लगातार यह बताने की कोशिश करते रहे कि कांग्रेस पार्टी अब पहले वाली कांग्रेस नहीं रही, कांग्रेस ऐसी हो गयी है कांग्रेस वैसी हो गयी है.

आम तौर पर जब इतने सालों तक राज करते हैं तो आपके पास जनता को बताने के लिए काफी उपलब्धियां होती हैं, आप इसी बात की चर्चा करते हैं आपकी सरकार ने जनता के लिए क्या क्या किया न कि विरोधी पार्टी ने क्या क्या किया था और अगर सत्ता में वापस आयी तो क्याक्या कर सकती है. राज्य के चुनावों में तीन तीन केंद्रीय मंत्रियों को उतारना कोई छोटी मोटी बात नहीं , ये दर्शाती है कि पार्टी में पैनिक है. केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर, फग्गन सिंह कुलस्ते और प्रहलाद पटेल के अलावा रीती पाठक, उदय प्रताप सिंह, राकेश सिंह और गणेश सिंह के रूप में मैदान में उतारा गया है, यह नहीं राष्ट्रीय महासचिव कैलाश विजयवर्गीय को भी अनिच्छा के बावजूद चुनाव लड़ने के लिए मजबूर किया गया है, बता दें कि विजयवर्गीय चुनाव न लड़ने का एलान कर चुके थे, वो पार्टी के इस फैसले से निराश भी हैं। उम्मीदवारी के बाद उन्होंने अपनी इस निराशा को ज़ाहिर भी किया, विजयवर्गीय के मुताबिक हेलीकाप्टर में बैठकर पूरे राज्य में चुनाव प्रचार करना उन्हें ज़्यादा पसंद था. इन सभी को उन सीटों की ज़िम्मेदारी दी गयी है जो मौजूदा समय में उनके पास नहीं हैं , पार्टी की रणनीति कांग्रेस की जीती हुई सीटों को उससे छीनना है। ग्वालियर, चंबल, मालवा, निमाड़ और महाकौशल इलाकों में केंद्र से भेजी गयी नेताओं की इस लॉट में शामिल मंत्रियों-सांसदों का काफी असर है.

भाजपा अब तक 78 उम्मीदवारों की घोषणा कर चुकी है और कहा जा रहा है कि अभी केंद्र से कुछ और नेताओं को राज्य में उम्मीदवार बनाया जाएगा। एक बड़े पैमाने पर उम्मीदवारों को बदलने की तैयारी है और ऐसा तभी होता है जब जनाक्रोश का एहसास होता है और पुराने चेहरों की जगह नए चेहरों को आगे लाकर नाराज़गी से निपटने की कोशिश की जाती है. कर्नाटक में बुरी तरह हार के बाद भाजपा कम से कम मध्य प्रदेश को बिलकुल खोना नहीं चाहती। मध्य प्रदेश में हार का सीधा मतलब हिंदी बेल्ट में पकड़ का ढीला होना जो आने वाले लोकसभा चुनाव में पार्टी के लिए शुभ संकेत नहीं कहा जा सकता, यही वजह है प्रधानमंत्री मोदी का सबसे ज़्यादा ज़ोर और ध्यान मध्य प्रदेश पर ही है. भाजपा की नई लिस्ट में केंद्रीय मंत्रियों और सांसदों को टिकट दिए जाने को कांग्रेस पार्टी भाजपा की हताशा और निराशा बता रही है. पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ के मुताबिक़ ये भाजपा का आखरी दांव है, उसने एकतरह से मान लिया है कि न सिर्फ विधानसभा बल्कि लोकसभा चुनाव में भी उसका सफाया होने जा रहा है और इसीलिए उसने सोचा कि चलो कुछ बड़े नामों को मैदान में उतारकर माहौल को बदलने की कोशिश की जाय।

लेकिन सवाल यही है कि भाजपा के इस दांव का राज्य में पार्टी के मौजूदा नेतृत्व पर कैसा असर पड़ेगा। क्या मुख्यमंत्री शिवराज चौहान केंद्रीय नेतृत्व के इस कदम को अपने लिए एक खतरा मानेगें। क्या पार्टी इस बार भी मुख्यमंत्री के रूप में उन्हीं पर दांव लगाएगी या फिर जिन बड़े नामों को राज्य में भेजा गया है वो पार्टी का एक विकल्प हैं. अब नरेंद्र सिंह तोमर या विजयवर्गीय मध्य प्रदेश विधानसभा के विधायक या अगर सरकार बनी तो मंत्री पद के लिए तो राज़ी नहीं हुए होंगे, यकीनन भविष्य के बारे में इन नेताओं से चर्चा ज़रूर की गयी होगी जो निश्चित है शिवराज चौहान की राजनीतिक सेहत के लिए ठीक नहीं है. सबसे बड़ा सवाल जो इस समय मध्य प्रदेश को लेकर राजनीतिक गलियारों में गश्त कर रहा है कि क्या मध्य प्रदेश में भाजपा ने पैनिक बटन दबा दिया है?

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