नवाबों की नगरी लखनऊ में होली का खुमार चढ़ रहा है, कल होलिका दहन के साथ ही यह खुमार और सिर चढ़कर बोलेगा। होली वैसे तो पूरे देश में बड़े ही जोश के साथ मनाई जाती है लेकिन नवाबों की नगरी के पुराने इलाके चौक सर्राफा बाजार की होली के हुड़दंग का अपना ही मज़ा है. शिव जी का प्रसाद पीकर मस्त होकर चौक के सर्राफा व्यापारी अपना सारा कारोबार बंद करके सिर्फ रंगों की मस्ती में झूमते हैं. ख़ास बात यह है कि चौक के सर्राफा व्यापारियों की यह मस्ती होली के एकदिन पहले ही होती है.
पिछले सौ सालों से चली आ रही है परंपरा
पिछले 100 सालों से चली आ रही ये परंपरा आज भी कायम है.आज भी चौक सर्राफा बाजार में होली की रौनक देखने को मिली। जश्न मनाते, झूमते गाते, मस्ती करते यह गंभीर किस्म के व्यापारी आज बिलकुल बच्चे नज़र आ रहे थे. चारों तरफ अबीर गुलाल उड़ रहा था, स्पीकर पर होली के गीत बज रहे थे और सर्राफा व्यापारी उसकी धुन पर अपने ही स्टाइल में फ्री होकर डांस कर रहे थे. बच्चे बूढ़े जवान सभी इस मस्ती में सराबोर थे, हर कोई गले मिल रहा था, बधाई दे रहा था. आज कोई व्यापारी नज़र नहीं आ रहा था, सबके सब होरियारे दिखाई पड़ रहे थे, पूरी चौक सर्राफा गली में होली की यह रौनक नज़र आयी.
चौक की भांग भी है बड़ी मशहूर
एक तरफ रंग चल रहा था तो दूसरी तरफ गुझिया भांग का सेवन भी चल रहा था, वैसे भी चौक की भांग काफी मशहूर है. इस पारम्परिक होली के बारे में चौक सर्राफा एसोसिएशन के महामंत्री विनोद माहेश्वरी ने प्रकाश डालते हुए कहा कि इसकी परमपरा की शुरुआत पूर्व व्यवसायी गेंदा लाल माहेश्वरी,गोंविद वर्मा, कन्हैया लाल महेन्द्रू, दिक्कन भैया और दुसरे कई लोगों ने मिलकर लगभग सौ साल पहले की थी, तब से होली के एक दिन पहले चौक सर्राफा बाजार में होली खेलने की परंपरा जारी।
होली के हुड़दंग में भी रखा जाता है इन बातों का ख्याल
इस होली का आयोजन चौक के गोल दरवाज़े से लेकर लगभग आधे किलोमीटर के दायरे में चलता है और खूब अबीर गुलाल उड़ता है. उन्होंने बताया कि होली की इस मस्ती में शामिल होने के लिए किसी को भी मनाही नहीं होती, दूसरे धर्म और सम्प्रदाय के लोग भी शामिल होते हैं. इस दौरान इस बात का पूरा ख्याल रखा जाता है कि किसी को परेशानी न हो, खासकर महिलाओं को. इस बात का पूरा ध्यान रखा जाता है कि महिलाओं पर रंग न डाला जाय. होली की मस्ती के बाद स्वादिष्ट पकवानों का दौर चलता है. इस होली में अब गीला रंग बहुत कम चलता है, ज़्यादातर सूखे रंगों का ही इस्तेमाल होता है साथ ही फूलों की होली भी खेली जाती है.