तौक़ीर सिद्दीक़ी
बंगलुरु में न्यूज़ीलैण्ड के हाथों अपनी ही सरज़मीन पर साढ़े तीन दशकों बाद मिली हार यकीनन कप्तान रोहित शर्मा के कप्तानी कैरियर में एक ब्लैक स्पॉट माना जायेगा। एक टीम जो 36 साल से भारत में लगातार हारती आ रही हो, उससे हारना निराशा की बात तो है ही, ये निराशा तब और भी बढ़ जाती जब टीम पहली पारी में 46 रनों पर आउट हो जाती है जो अपनी ही धरती पर उसका सबसे कम स्कोर बन जाता है यानि पहले लोवेस्ट स्कोर का दुःख और फिर हार का दर्द। वैसे कोई भी टीम अगर पहली पारी में इतने कम स्कोर पर आउट होती है तो फिर उसके लिए वापसी बड़ी मुश्किल हो जाती है लेकिन टीम इंडिया ने वापसी की और इस मैच टीम इंडिया के लिए यही बात सकारात्मक रही, अगर मैं सक्षेप में कहूँ तो टीम इंडिया की हार में भी जीत की एक झलक नज़र आयी. 46 रन पर आउट होने वाली टीम दूसरी पारी में दस गुना बेहतर बल्लेबाज़ी करती है और 462 रन बनाती है, ये कोई मामूली बात नहीं है.
बांग्लादेश को अभी हाल में बुरी तरह रौंदने वाली टीम इंडिया को न्यूज़ीलैण्ड के खिलाफ पहले टेस्ट में हार का मज़ा चखना पड़ा, हालाँकि न्यूज़ीलैण्ड और बांग्लादेश की टीमों के स्तर में काफी अंतर है, अब कहने को तो यह भी कह सकते हैं कि बांग्लादेश ने पाकिस्तान को उसके घर में हराया इसलिए वो न्यूज़ीलैण्ड से कमज़ोर नहीं कही जा सकती। बेशक उसने पाकिस्तान को हराया लेकिन पिछले दो ढाई सालों से पाकिस्तान का दौरा करने वाली सभी टीमों ने उसे धोया है. अभी चल रही इंग्लैंड के खिलाफ टेस्ट सीरीज़ में इंग्लैंड ने पहले टेस्ट में उसे किस तरह धोया वो इतिहास में दर्ज हो चूका है, मजबूरन दूसरे टेस्ट में पाकिस्तान को जीत हासिल करने के लिए मुल्तान की पिच को अपने मन माफिक बनाना पड़ा. लेकिन यहाँ हम बात टीम इंडिया और बंगलुरु में उसके प्रदर्शन की कर रहे हैं. यकीनन बंगलुरु की कंडीशंस को पढ़ने में रोहित शर्मा नाकाम रहे और एक गलत फैसला कर बैठे लेकिन हमारा मानना है कि ये फैसला उतना गलत नहीं था जितना बताया जा रहा है, सिर्फ दो बुरे घंटे आये और टीम इंडिया को शर्मसार कर गए बिलकुल एडिलेड टेस्ट की तरह जब भारतीय टीम सिर्फ 36 रनों पर आउट हो गयी थी. दोनों ही बार उसे हार का सामना करना पड़ा, फर्क सिर्फ इतना था कि एडिलेड में टीम इंडिया का कोलैप्स दूसरी पारी में हुआ था और यहाँ पर पहली पारी में.
वहां भी शृंखला के पहले ही टेस्ट में टीम इंडिया को शर्मसार होना पड़ा था और उसके बाद उसने ज़बरदस्त वापसी की और चार मैचों की टेस्ट श्रंखला को 2-1 से जीत लिया था, सिडनी का टेस्ट ड्रा हुआ था. यहाँ भी पहले टेस्ट में भारत को शर्मसार होना पड़ा है लेकिन इस बात की पूरी उम्मीद है कि ऑस्ट्रेलिया दौरे की तरह इस घरेलू शृंखला में भी वो पलटवार करेगी जिसकी झलक उसने दूसरी पारी में दिखा भी दी है जब 350 रनों से पिछड़ने के दबाव के बावजूद टीम ने 462 का स्कोर बना डाला। अगर लोअर आर्डर कुछ सहयोग कर देता तो कहानी पलट भी सकती थी लेकिन लक्ष्य इतना छोटा था कि न्यूज़ीलैण्ड को कोई परेशानी का सामना नहीं करना पड़ा. अब जब बात कहानी पलटने तक आयी है तो उस खिलाड़ी का ज़िक्र ज़रूरी है जो इस पलटवार का मुख्य किरदार था, जिसे टीम में इसलिए जगह मिल पाई क्योंकि शुभमण गिल बीमार हो गए थे. बात सरफ़राज़ खान की है जिन्होंने चौथे दिन ऋषभ पंत के साथ ऐसी बल्लेबाज़ी की कि एक समय सारी चिंताएं टीम इंडिया से न्यूज़ीलैण्ड की टीम में शिफ्ट होने लगी थी.
टेस्ट क्रिकेट में एक अच्छी शुरुआत करने वाले सरफ़राज़ पिछले कुछ समय से टीम में स्थान नहीं बना पा रहे थे, उन्हें एक मौके की तलाश थी जिससे वो अपने आपको साबित कर सकें कि शुरुआत में उन्हें मिली सफलता कोई फ्लूक नहीं थी. बंगलुरु में मिले मौके का उन्होंने फायदा उठाया और 150 रनों का एक बड़ा शतक लगाकर अपने उन आलोचकों को भी जवाब दिया जो उनके टैलेंट पर सवाल उठा रहे थे. सरफ़राज़ उस समय मैदान में उतरे थे, जब भारत न्यूजीलैंड से काफी पीछे था। पहली पारी में शून्य पर आउट होने का दबाव भी था मगर पहले उन्होंने विराट कोहली के साथ बल्लेबाज़ी का जश्न मनाया और फिर ऋषभ पंत के साथ मज़े लूटे। सरफराज का ये चौथा टेस्ट मैच था, इससे पहले तीन टेस्ट मैचों में उनके बल्ले से 62, 68*, 14, 0, 56 और 0 रन की पारियां निकली थीं। तीन टेस्ट में तीन पचास किसी भी बल्लेबाज़ के लिए अच्छी शुरुआत ही कही जाएगी लेकिन शतक के बिना हर बल्लेबाज़ अपने आपको अधूरा समझता है, वो अधूरापन बंगलुरु में दूर हो गया. यह 22वीं बार है जब किसी भारतीय बल्लेबाज़ ने एक ही टेस्ट में शून्य और शतक बनाया है। सरफ़राज़ की टीम में शानदार वापसी को भी टीम इंडिया की हार में छुपी हुई जीत कहा जा सकता है.