लखनऊ। समाजवादी पार्टी (SP) का स्लोगन है ‘नई हवा है, नई सपा है’। अपने इस स्लोगन के साथ समाजवादी पार्टी ने आलोचनाओं से बचने के लिए नया पैंतरा अपना लिया है। स्थानीय प्राधिकारी विधान परिषद 2022 के चुनाव में ‘यादव’ सरनेम के प्रत्याशियों को लेकर सोशल मीडिया पर आलोचनाओं का दौर शुरू हुआ तो सपा ने प्रत्याशियों के सरनेम से यादव ही हटा दिया। गौरतलब है यूपी की 36 सीटों पर निकाय के एमएलसी चुनाव होने हैं। जिसको लेकर सपा के प्रत्याशियों की पहली सूची जारी हुई, जिसमें दावा किया गया कि 15 यादव हैं। दूसरे समाज के लोगों को उनको हिसाब से प्रतिनिधित्व नहीं दिये जाने की आलोचना की जाने लगी। खासकर मुस्लिम समाज (Muslim Community) के लोगों को टिकट नहीं दिये जाने का मसला खूब उठा। इसके बाद इससे सबक लेते हुए सपा ने जब आधिकारिक सूची जारी की तो उसमें प्रत्याशियों नाम से यादव सरनेम ही हटा दिया। हालांकि, सपा के इस नये पैंतरे की भी खूब चर्चा हो रही है।
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ये हैं यादव प्रत्याशी
समाजवादी पार्टी के कई प्रत्याशी यादव हैं लेकिन सरनेम में उनका जिक्र नहीं किया गया है। सोशल मीडिया पर इस पैंतरेबाजी की भी खूब चर्चा हो रही है। सपा की ओर से जारी प्रत्याशियों की सूची में सीतापुर से अरूणेश कुमार भी यादव हैं। लेकिन, उनके सरनेम में कुमार के बाद यादव को हटा दिया गया है। वहीं लखनऊ-उन्नाव से सपा के वर्तमान एमएलसी और अखिलेश यादव (Akhilesh Yadav) से खास माने जाने वाले सुनील सिंह भी यादव हैं। उनको लोग सुनील साजन के नाम से जानते हैं। लेकिन, सूची जब जारी की गई तो उनके नाम से भी यादव को हटा दिया गया है। बाराबंकी से राजेश कुमार के नाम से भी यादव शब्द हटाया गया है। इसके अलावा बहराइच के अमर, आजमगढ़-मऊ के राकेश कुमार, जौनपुर के मनोज कुमार भी यादव हैं। इसी क्रम में इलाहाबाद से प्रत्याशी वासुदेव यूपी के बड़े अधिकारी रहे हैं। उनके नाम में भी यादव शब्द लगा था, लेकिन, इस सूची में उसका जिक्र नहीं किया गया है। झांसी के श्याम सुंदर सिंह, फैजाबाद के हीरालाल, बस्ती के संतोष सनी और गोरखपुर से रजनीश भी यादव हैं।
क्यों करना पड़ा ऐसा?
पार्टी से जुड़े एक सूत्र ने नाम नहीं छापने की शर्त पर बताया कि यादव सरनेम के ही प्रत्याशियों को लेकर सोशल मीडिया पर नकारात्मक माहौल बनाने की कोशिश की जा रही थी। ऐसे में यह कदम उठाना पड़ा है। उन्होंने बताया कि यह बाहुबल और धनबल का चुनाव होता है। इसमें हमेशा सत्ताधारी दल भारी पड़ता है। यही कारण है कि दूसरे दल इसमें उतरने की जहमत तक नहीं उठा पाये हैं। बतौर विपक्ष सपा अपनी जिम्मेदारियां निभा रही है। ऐसे में भाजपा द्वारा सोशल मीडिया पर फैलाये जा रहे प्रोपगेंडा से बचना भी चुनौती है।
चुनाव लड़ने से कतरा रहे कई दिग्गज
सूत्र ने यह भी बताया कि इस चुनाव में कई महारथियों ने उतरने से इनकार कर दिया। उन्होंने कहा कि एक तो इसमें वर्तमान एमएलसी भी हैं। जब सत्ता थी तो उन्होंने चुनाव लड़ा लेकिन अब अपने कदम पीछे खींच लिये हैं। ऐसे ही कई नेता हैं।