अमित बिश्नोई
आज सुबह जब ब्रिस्बेन टेस्ट समय से पहले बराबरी पर ख़त्म हुआ तब किसी ने भी नहीं सोचा होगा कि भारतीय क्रिकेट फैंस के लिए एक शॉकिंग न्यूज़ इंतज़ार कर रही है। लेकिन जब मैच के बाद प्रेस कॉन्फ्रेंस में कप्तान रोहित शर्मा के साथ रविचंद्रन अश्विन नज़र आये जो काफी उदास लग रहे थे, तब लोगों का माथा ठनका ज़रूर लेकिन तब भी लोग उस खबर का अनुमान नहीं लगा रहे थे जो प्रेस कॉन्फ्रेंस शुरू होते ही टीम इंडिया के लिए 765 विकेट हासिल करने वाले ऑफ स्पिनर रवि चंद्रन अश्विन ने सुनाई। अश्विन ने जब कहा कि वो अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेट से रिटायरमेंट का एलान कर रहे हैं तब प्रेस रूम में मौजूद पत्रकार और टीवी पर लाइव प्रसारण देख रहे है लाखों दर्शकों को एकबारगी यकीन नहीं आया कि चलती श्रंखला में रवि चंद्रन अश्विन ने इतना बड़ा कदम क्यों उठाया। बेशक अश्विन जैसे गंभीर क्रिकेटर ने सोच समझकर यह कदम उठाया होगा लेकिन प्रेस रूम में अश्विन की जिस तरह की बॉडी लैंग्वेज थी वो यकीनन निराशाजनक थी जो कहीं न कहीं इस बात की चुगली कर रही थी कि कुछ तो गड़बड़ हुई है.
बेशक हर क्रिकेट कभी न कभी रिटायर होता है, ये उसका निजी फैसला होता जिसका सभी लोग सम्मान करते हैं लेकिन यही सम्मान का शब्द कभी कभी सवाल बन जाता है. आम तौर पर बड़े क्रिकेटर संन्यास लेने से पहले ही एलान कर देते हैं कि ये श्रंखला उनकी अंतिम श्रंखला होगी या फिर फलां मैच उनके जीवन का आखरी मैच होगा और उसका मकसद सिर्फ और सिर्फ ये होता है कि उसे एक सम्मानजनक विदाई मिल सके. बरसों तक देश की सेवा करने के बाद क्रिकेट बोर्ड उस खिलाड़ी को विदाई देने के लिए एक प्लान बना सके ताकि उस खिलाड़ी का एक सम्मानजनक रिटायरमेंट हो सके. रवि चंद्रन अश्विन ने भी कुछ इसी तरह का सोच रखा होगा। लेकिन ऑस्ट्रेलिया में शायद कुछ ऐसा हुआ जिसकी अश्विन ने कल्पना नहीं की होगी। हो सकता है कि अश्विन इस दौरे को अपना आखरी दौरा मानते हों. जैसा कि मैच के बाद पत्रकार वार्ता में बाद में रोहित शर्मा ने कहा भी कि पर्थ में अश्विन ने उनसे इस बारे में बात की थी लेकिन उनकी बात से लगता है कि ये बातचीत गंभीर नहीं थी. लेकिन एडिलेड के पिंक बॉल टेस्ट में ठीकठाक प्रदर्शन करने के बावजूद अश्विन को ड्राप करके रविंद्र जडेजा को अंदर लिया गया. मुझे लगता है टीम मैनेजमेंट के इस फैसले ने अश्विन को कहीं न कहीं ये फैसला लेने के लिए प्रेरित किया वरना 287 इंटरनेशनल मैचों का अनुभव रखने वाले क्रिकेट के लिए रिटायरमेंट का सबसे अच्छा मौका तो WTC का फाइनल होता। खैर वहां पर इंडिया पहुंचेंगी या नहीं इसके बारे में अभी पक्के तौर पर कुछ नहीं कहा जा सकता लेकिन अश्विन ने ये उम्मीद ज़रूर लगा रखी होगी कि उन्हें ऑस्ट्रेलिया दौरे पर पूरे मौके मिलेंगे और शायद टीम के साथ देर से जुड़ने पर पर्थ में उन्होंने रोहित शर्मा से अपने इरादों के बारे में इसीलिए बताया भी। लेकिन चीज़ें उनके विपरीत गयीं। पर्थ में वो बाहर थे, एडिलेड में उन्हें मौका मिला, उन्होंने 22 और 7 रनों की पारियां खेलीं, गेंदबाज़ी में 18 ओवर में सिर्फ एक विकेट ले सके. भारत ये मैच दस विकटों से हार भी गया.
एडिलेड टेस्ट के नतीजे की वजह से शायद टीम मैनेजमेंट को ये फैसला लेना पड़ा कि अश्विन की जगह जडेजा को लिया जाय क्योंकि विश्व टेस्ट चैंपियनशिप के फाइनल में पहुँचने के लिए टीम और कोई टेस्ट हारने की स्थिति में नहीं है. यही वजह है कि हर मैच में वो स्पिन आलराउंडर में बदलाव का प्रयोग कर रही है. पर्थ में वाशिंगटन सूंदर को मौका मिला, औसत प्रदर्शन के बाद एडिलेड में अश्विन को अंदर किया गया, अश्विन का भी प्रदर्शन औसत का रहा तो ब्रिस्बेन में जडेजा को इस उम्मीद से आज़माया गया कि वो कुछ कमाल करेंगे। जडेजा ने मैच जिताऊ पारी भले ही नहीं खेली लेकिन 77 रनों की मैच बचाऊ पारी ज़रूर खेली जिससे श्रंखला अभी पूरी तरह ओपन है. लगता है कि जडेजा की इसी पारी ने अश्विन की मन में संशय पैदा कर दिया कि पता नहीं उन्हें मेलबोर्न और सिडनी में मौका मिले या नहीं और उन्हें इतना बड़ा फैसला लेने के लिए मजबूर होना पड़ा. आज सुबह उन्हें विराट के साथ डग आउट में बात करते हुए देखा गया था उस समय शायद उनकी आँखों में आंसू थे, विराट उन्हें गले लगाते हुए ढाढस बंधाते हुए भी नज़र आये. शायद अपने इस फैसले की जानकारी उन्होंने सबसे पहले विराट से शेयर की क्योंकि रोहित शर्मा थोड़ा हैरान लग रहे थे और परेशान भी. परेशान शायद इसलिए कि मेलबोर्न में भले ही अश्विन को मौका न मिलता लेकिन सिडनी में अंतिम मैच में उनके खेलने के पूरे मौके थे. मेलबोर्न टेस्ट अगर टीम इंडिया जीत भी जायेगी तब भी सिडनी टेस्ट का महत्त्व कम नहीं होगा क्योंकि WTC फाइनल के लिए मेलबोर्न और सिडनी दोनों मैचों में टीम को जीत ज़रूर चाहिए। इसलिए सिडनी टेस्ट में अश्विन की कमी बुरी तरह खलने वाली है और इसीलिए रोहित शर्मा थोड़ा चिंतित दिखे।
मुझे तो लगता है कि अश्विन ने शायद थोड़ी जल्दबाज़ी की, वो इस तरह के रिटायरमेंट वाले खिलाड़ी तो कतई नहीं थे. मुझे यकीन है कि अगर अश्विन ने रोहित से अपने रिटायरमेंट की बात की होगी तो सिडनी टेस्ट में अश्विन को ज़रूर जगह मिलती, जैसा कि मैंने पहले कहा कि अश्विन जैसे खिलाडी केलिए सन्यास की घोषणा की सबसे सही जगह विश्व टेस्ट चैंपियनशिप का फाइनल होती लेकिन हालात कब किसी को कौन सा फैसला लेने के लिए मजबूर कर दें कहा नहीं जा सकता। चलती श्रंखला के बीच सन्यास लेने का चलन भारतीय क्रिकेट में नहीं है, ये पहला मौका है जब एक फिट भारतीय खिलाड़ी ने चलती श्रंखला में अपने अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेट को अलविदा कहा है. शायर निदा फ़ाज़ली ने सच ही कहा “कभी किसी को मुकम्मल जहाँ नहीं मिलता”. 5 जून 2010 को टीम इंडिया का हिस्सा बनने वाले रविचंद्रन अश्विन की उपलब्धियां मील का पत्थर हैं, उनके नाम अनगिनत रिकॉर्ड दर्ज है जिनका ज़िक्र करने के लिए काफी समय चाहिए। लगभग 15 साल भारतीय क्रिकेट को अपनी बेमिसाल सेवाएं देने के लिए देश आपका ऋणी रहेगा, थैंक्यू अश्विन, देश को तुम पर नाज़ है.