जयपुर। राजस्थान के सीएम गहलोत दिल्ली से राजधानी जयपुर लौटे हैं। इसके बाद से वे अपने रुटीन काम में जुटे नजर आ रहे हैं। वापस लौटने के बाद अक्तूबर को उन्होंने नहरी क्षेत्र के जिलों- बीकानेर, हनुमानगढ़ और श्रीगंगानगर के दौरे किए। इस दौरान वे अलग-अलग समाजों, वर्गों के साथ आयोजित कार्यक्रमों में भी शामिल हुए। बजट घोषणाओं और पेंडिंग फाइलों को तेजी से निपटाने को वो लगातार फोकस कर रहे हैं। गहलोत बार-बार कह भी रहे हैं कि प्रदेश का आखिरी बजट वे पेश करेंगे। बजट युवाओं को ध्यान में रखकर बनाया जाएगा। सीएम इन सभी कवायदों से विरोधियों को भी संदेश दे रहे हैं कि हाईकमान से माफी मांगने के साथ राजस्थान की राजनीति का मामला शांत हो गया। बयानों के जरिए उन्हें विरोधियों को जता दिया है कि कुर्सी खतरे में नहीं और वे सीएम बने रहेंगे।
कांग्रेस किसी भी स्थिति में अशोक गहलोत पर कोई कार्रवाई नहीं कर सकती। क्योंकि आलाकमान को पता है कि गहलोत पर कार्रवाई मतलब 2023 के विधानसभा चुनाव और 2024 के लोकसभा चुनाव में पार्टी को हार का मुंह देखना होगा। अधिकांश विधायकों का समर्थन गहलोत को ही हासिल है। इसलिए पार्टी हर स्थिति में गहलोत को अपने साथ रखना चाहेगी। अगर कांग्रेस उन्हें सीएम पद से हटाती है तो पार्टी में टूटफूट शुरू हो जाएगी। जिसकी भरपाई बहुत मुश्किल होगी। इसलिए कांग्रेस आलाकमान बीच का कोई रास्ता निकालने पर ध्यान देगी।
कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं का कहना है, गहलोत के घटनाक्रम के बाद हाईकमान बदलाव के पक्ष में तो हैं। लेकिन चुनाव को देखते हुए पार्टी किसी प्रकार का जोखिम नहीं लेना चाहती। सचिन पायलट को हाईकमान 2018 से कमान सौंपने की तैयारी कर रहा है। लेकिन विधायकों की एकजुटता के मामले में गहलोत का जादू सामने आ जाता है। दिल्ली दरबार इस बात को जानता है कि अधिकांश विधायक गहलोत के समर्थन में हैं। जबकि गहलोत मुख्यमंत्री पद के लिए सब कुछ दांव पर लगाने को तैयार बैठे हैं। वे साफ कर चुके है कि राजस्थान मोह उनसे नहीं छूटता। ऐसे में अगर पार्टी गहलोत को हटाती है तो राज्य सरकार संकट में आएगी। इसलिए हाईकमान ऐसा रास्ता निकालने की कोशिश में है, जिससे दोनों पक्षों को संतुष्ट किया जा सके।