विपक्ष कमज़ोर रहा, कांग्रेस में कुछ जान दिखाई दी
उबैद उल्लाह नासिर
उत्तर प्रदेश विधान सभा के उपचुनाव को अगले साल होने वाले विधान सभा के आम चुनाव की तय्यारी और एक चावल देख कर सभी चावलों को पोजीशन समझने के तौर पर देखा जा रहा था I विधान सभा के चुनाव से पहले त्रि स्तरीय ग्राम सभा के चुनाव भी होंगे जिसमें भी सभी पार्टियाँ बढ़ चढ़ कर हिस्सा लेती हैं ताकि अपने ज़मीनी स्तर के नेताओं को भी चुनाव लड़ने का मौक़ा दे सकें हालाँकि यह चुनाव पार्टी की बुनियाद पर नहीं होते I पश्चिम में बुलंद शहर से ले कर पूर्व में देवरिया तक फैली इन सातों सीटों में से 6 पर बीजेपी का क़ब्ज़ा था और एक समाजवादी पार्टी के पास थी I चुनावी नतीजों में यही पोजीशन बरक़रार रही 6 सीटों बुलंद शहर, नवगवां सादात,बांगर मऊ,घाटम पुर,देवरिया और टूंडला पर बी जेपी ने जीत दर्ज की जबकि मल्हनी पर समाजवादी ने क़ब्ज़ा किया I पहली बार उप चुनावों में उतरी बहुजन समाज पार्टी और कांग्रेस का खाता भी नहीं खुला I
भारतीय जनता पार्टी को यह सफलता एक ऐसे समय में मिली है जब प्रदेश में कानून व्यवस्था को ले कर योगी सरकार को रोज़ कटहरे में खडा किया जाता रहा है I प्रदेश में ह्त्या और बलात्कार के दर्जनों काण्ड रोज़ होते हैंI कानून व्यवस्था, ब्राह्मणों की कथित नाराजगी हाथरस काण्ड के कारण दलितों की नाराजगी के अलावा गरानी और मंहगाई भी अपने चरम पर है सभी आवश्यक वस्तुओं ख़ास कर सब्जी दालों आदि के दाम आसमान छू रहे हैं जिससे जनता त्रस्त है , बेरोज़गारी भी अपने चरम पर है जिससे नवजवाँ मायूसी का शिकार हैं जो बहालियाँ होती भी हैं उनमें खुला भ्रष्टाचार होता है, कोरोना काल में हुई लूट और अव्यवस्था, किसान बेहाल हैं क्योंकि एक तो धान की पैदावार बहुत खराब हुई है दुसरे उसके दाम भी बहुत कम हैं सरकार ने यद्यपि की धान की सरकारी कीमत 1880 रुपया प्रति क्विंटल रखी है लेकिन खरीदारी की हालत बहुत खराब हैं खरीदारी केंद्र दूर दूर खोले गए हैं बाजार में 800-900 रुपया क्विंटल धान बेचने को किसान मजबूर हैं यूरिया और अन्य खादों के लिए उन्हें लम्बी लम्बी लाइन लगाकर भी ब्लैक में खरीदना पड़ रहा है डीजल के दाम आसमान से बातें कर रहे हैं सिंचाई करना बहुत मंहगा हो गया छुट्टा गायों और सांडों ने किसानों की कमर तोड़ रखी है इन सब के बावजूद भी इन उपचुनावों में बीजेपी की परफॉरमेंस शानदार रही है इसका मुख्य कारण तो यही है कि वोटर जानते हैं की इन चुनावों के नतीजों से योगी सरकार पर कोई असर नहीं पड़ेगा दूसरे सत्ता पक्ष का विधायक होने से क्षेत्र में विकास के ज्यादा कार्यों की उम्मीद की जा सकती है दूसरे सभी पार्टियों के नेताओं से बहुत ज्यादा मेहनत मुख्यमंत्री आदित्नाथ ने चुनाव प्रचार में की इसका भी अच्छा प्रभाव वोटरों पर पड़ा I आम तौर से उप चुनावों के प्रचार में किसी पार्टी का शीर्ष नेतृत्व नहीं उतरता लेकिन इस मामले में बीजेपी के नेताओं की तारीफ़ करनी पड़ेगी कि ग्राम सभा के चुनावों से ले कर लोक सभा के चुनाव तक वह पूरी संजीदगी और मेहनत से लड़ते हैं बूथ सतह तक उनका मैनेजमेंट सभी पार्टियों के लिए नमूना होना चाहिए इस लिए योगी जी का इतनी मेहनत करना पार्टी के कल्चर और सिस्टम के अनुसार ही है दूसरे इन चुनावों में उनकी खुद की साख दांव अपर लगी थी एक सीट पर भी हार उनके ही काम काज पर सवाल खड़ा करती थी इस लिए उन्होंने प्रचार में कोई कसर नहीं छोड़ी Iइसके बरखिलाफ विपक्ष का कोई बड़ा नेता चुनाव अभियान में नहीं उतरा केवल कांग्रेस में यदि महामंत्री श्रीमती प्रियंका गाँधी को छोड़ दिया जाये तो राष्ट्रीय और प्रदेश स्तर के नेताओं ने ज़ोरदार प्रचार किया प्रमोद तिवारी, सलमान खुर्शीद, जितिन प्रसाद अजय कुमार लल्लू आराधना मिश्र, नसीमुद्दीन सिद्दीकी अदि बड़े नेता चुनावी अभियान में पूरी ताक़त से लगे रहे जबकि अखिलेश यादव और मायावती ने खुद को चुनाव प्रचार से दूर रखा I इन नेताओं ने ऐसा क्यों किया यह समझ से परे हैं और इस पर मीडिया में सवाल भी खूब उठे| खुद प्रियंका गांधी का चुनाव अभियान में शामिल न होना मीडिया में सवालों के घेरे में रहा है I
इन उप चुनावों में पहली बार कांग्रेस दो सीटों बांगर मऊ और घाटम पुर में दूसरे नम्बर पर और बुलंद शहर में तीसरे नम्बर पर रही और उसके वोट शेयर में भी इजाफा हुआ है लेकिन उसके लिए पनघट की डगर अभी बहुत मुश्किल है उसके संगठन के ढाँचे की कमजोरी एक बार फिर उजागर हो गयी है हालांकि प्रदेश अध्यक्ष अजय कुमार के नेतृत्व में पार्टी ने अन्य विपक्षी दलों से ज्यादा संघर्ष किया खुद लल्लू ने 6 महीनों में 25 बार जेल जाने का रिकॉर्ड बनाया है और अवाम में किसका अच्छा सन्देश भी गया है लेकिन कमजोरी इतनी पुरानी है कि इसे दूर करने में पार्टी को अभी बहुत समय लग सकता है I
संगठन के मामले में बसपा और समाजवादी पार्टी के पास भी बहुत मज़बूत तंत्र है लेकिन जन सामान्य के मुद्दों को ले कर इन दोनों पार्टियों ने किस कारण वह तेवर नहीं दिखाए जो वह दिखा सकती हैं यह जन मानस में चर्चा का विषय है और इसके लिए तरह तरह की बातें प्रचलित हैं ख़ास कर समाजवादी पार्टी तो मुलायम सिंह यादव के समय अपने संघर्ष के लिए ही जानी जाती रही है लेकिन उसकी वह तपिश अब दिखाई नहीं देती मायावती ने कभी वैसे संघर्ष की राजनीति नहीं की सघर्ष से ज्यादा उनका पोलिटिकल मैनेजमेंट और सोशल इंजीनियरिंग पर ध्यान रहा है लेकिन अब उनका वोट बेस बुरी तरह डगमगाया हुआ है बीजेपी उस में ज़बरदस्त सेंध मारी कर चुकी है इसके अलावा नए उभरते दलित नेता चन्द्र शेखर रावण की तरफ अब दलित नवजवानों का रुझान ज्यादा हो गया है मुसलमान भी उन से छटका हुआ है I
कुल मिला कर उत्तर प्रदेश में विधान सभा का चतुष्कोणीय मुकाबला होगा भले ही छोटी छोटी पार्टियों को मिला के कोई मोर्चा बन जाए बड़ी पार्टियों का एक प्लेटफोर्म पर आना असंभव दिखाई दे रहा है I