तौकीर सिद्दीकी
लोकसभा में दो तिहाई बहुमत से महिला आरक्षण बिल पास हो गया, पक्ष में जहाँ 454 तो विपक्ष में महज़ दो वोट पड़े. बाकी लोग पचड़े से बचने के लिए एब्सेंट रहे. अब ये बिल राज्यसभा में भेजा जायेगा और वहां भी दो तिहाई बहुमत से पास हो जायेगा और फिर राष्ट्रपति की मोहर लगते ही कानून का रूप ले लेगा लेकिन यह एक ऐसा कानून होगा जो कानून बनने के बावजूद कब लागू होगा इसके बारे में किसी को पता नहीं सरकार को भी नहीं , पता है तो बस इतना कि देश की आधी आबादी को 33 प्रतिशत रिजर्वेशन मिलेगा जिसमें से SC-ST का रिजर्वेशन अलग होगा यानि आरक्षित 181 सीटों में से 60 सीटें। इसमें OBC वर्ग के लिए कोई प्रावधान नहीं है जो इस वक्त चुनावी राजनीती का केंद्र बिंदु हैं। अल्पसंख्यकों का इसमें नाम नहीं है क्योंकि सरकार के मुताबिक धर्म के आधार पर आरक्षण की बात संविधान में नहीं लिखी है, यहाँ पर संविधान का पूरी तरह से पालन किया गया है. इस बिल के बारे में अगर एक वाक्य में कुछ कहा जाय तो बस इतना ही कि एक बियाबान में एक प्लाट खरीद लिया गया है, इस पर मकान कब बनेगा इसकी कोई समय सीमा नहीं, कब यहाँ रहने लायक आबादी बसेगी और कब ये मकान बनेगा कुछ नहीं कहा जा सकता।
इस बिल के बारे में अगर हम चुनावी विश्लेषण करें तो यह बिलकुल स्पष्ट है कि कांग्रेस पार्टी द्वारा इस बिल के लिए डाली गयी नींव पर भाजपा या प्रधानमंत्री मोदी अपना मकान खड़ा करने की कोशिश कर रहे हैं जो वो पिछले 9 सालों से करते आये हैं। चाहे मनरेगा हो , आधार हो , GST हो या फिर अन्य कई योजनाएं। कांग्रेस के कार्यकाल में मोदी जी जिन योजनाओं का घोर विरोध करते थे केंद्र की सत्ता में आने के बाद उन्हीं को उन्होंने अपना हथियार बनाया, ये उनके कौशल का नमूना है. महिला आरक्षण बिल जो बकौल सोनिया गाँधी उनके और उनकी पार्टी के दिल के बहुत करीब है, ये उनका अपना बिल है, इसमें उनके पति राजीव गाँधी की यादें बसी हुई हैं को भी भाजपा ने अपना चुनावी हथियार बनाया है और न सिर्फ 2024 के लिए बल्कि 2029 के लिए भी क्योंकी इस बिल का क्रियान्यवन 2027 के बाद ही होगा, जब 2026 में नई जनगणना होगी , लोकसभा सीटों का नया परिसीमन होगा। फिर इसके बाद 2029 के चुनाव में जाकर देश की आधी आबादी को राजनीति में अपना हिस्सा मिलेगा। यानि एक बिल से दो चुनाव साधने की योजना। ये अलग बात है कि भाजपा या प्रधानमंत्री के बिल को लेकर सोचे गए मंसूबे कामयाब होंगे या नाकाम।
देखने वाली बात यही होगी ये बिल भी एक चुनावी जुमला तो साबित नहीं होगा, देखने वाली बात ये भी होगी कि इस बिल की मौजूदा स्थिति पर नारी शक्ति की क्या प्रतिक्रिया होगी। वो पांच साल बाद क्या होगा इसपर कितना भरोसा करेगी। इस बिल पर आज भी किन्तु, परन्तु, अपितु बहुत से सवालिया निशान लगे हुए हैं. सबसे बड़ा सवालिया निशान तो OBC वर्ग की महिलाओं को आरक्षण न मिलना है. यह बिल तो यूपीए के ज़माने में ही राज्यसभा में पास हो गया था क्योंकि उच्च सदन में कांग्रेस का बहुमत था लेकिन लोकसभा में मनमोहन सरकार के सहयोगियों ने ही इस बिल को पास नहीं होने दिया क्योंकि तब भी इसमें OBC वर्ग को आरक्षण नहीं दिया गया था. आज भी इस बिल की वही हालत है, वही स्वरुप है , कुछ भी नया नहीं है क्योकि इसपर कोई काम नहीं किया गया है और महज़ चुनावी फायदे के लिए और INDIA की बढ़ती लोकप्रियता को रोकने के लिए हड़बड़ी में लाया गया ये बिल लगता है.
बिल के मौजूदा स्वरुप को देख कर तो यही लगता है कि कानून बनने के बाद भी महिला आरक्षण आसानी से लागू होने वाला नहीं। OBC वर्ग को शामिल किये बिना महिला आरक्षण लागू होना लगभग असंभव है. जब भी इसे अमल में लाया जायेगा, बहुत बड़ा मुद्दा बनेगा। मुद्दा तो इस चुनाव में भी बनेगा। कांग्रेस पार्टी और दूसरी पार्टियों ने भले ही बिना शर्त इस बिल का समर्थन किया है लेकिन आने वाले चुनावों में OBC को लेकर वो भाजपा सरकार को घेरने की कोशिश ज़रूर करेंगी। वहीँ कांग्रेस पार्टी आने वाले विधानसभा चुनावों में इसे अपनी जीत के रूप में जनता के बीच लेकर जायेगी। यह सोनिया गाँधी के तेवरों से साफ़ लगता है. कांग्रेस पार्टी महिला आरक्षण का सेहरा भाजपा को कभी नहीं लेने देगी, उसकी कोशिशें भी शुरू हो चुकी हैं, हालाँकि भाजपा की तरफ से कहा जा रहा है कि मैच में जो गोल करता है नाम उसी का होता है, उसके मुताबिक गोल के लिए मौका बनाने वालों को कोई याद नहीं करता। भाजपा की ये बात सही भी हो सकती है और गलत भी. खेल की जानकारी रखने वाले गोल का मौका बनाने वालों को भी जीत का उतना ही सेहरा देते हैं जितना गोल करने वाले को, हाँ खेल के बारे में अज्ञानियों या कम जाजानकार रखने वालों को हो सकता है यही लगे कि मैच सिर्फ गोल करने वाले ने जिताया।
खैर अभी तो ये शुरुआत है, महिला आरक्षण पर अभी बहुत सियासत होना है, न सिर्फ आने वाले कुछ महीनों में बल्कि आने वाले कुछ सालों में भी. भाजपा ने तो इसे पांच वर्षीय योजना में शामिल कर लिया है, वो एक टिकट पर दो खेल देखना चाहती है लेकिन क्या कांग्रेस पार्टी या इंडिया गठबंधन भाजपा को ऐसा आसानी से करने देगी? कांग्रेस के बहुत से मुद्दों को, बहुत सी योजनाओं को भाजपा अपना हथियार बनाकर लगभग दस सालों से सत्ता में बनी हुई है लेकिन शायद पिछले दस सालों की कांग्रेस और आज की कांग्रेस में काफी बदलाव आ चूका है ऐसे में एकबार फिर उसी की एक शुरुआत को, उसी की एक महत्वाकांक्षी योजना को वो भाजपा को हड़पने देगी थोड़ा मुश्किल लगता है. देखना होगा, क्रेडिट की इस लड़ाई में कौन बाज़ी मारेगा?