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सपा की बैठक कोलकाता में क्यों?

आर्टिकल/इंटरव्यूसपा की बैठक कोलकाता में क्यों?

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अमित बिश्‍नोई
समाजवादी पार्टी ने अपनी नई राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक पश्चिम बंगाल की राजधानी कोलकाता में की. कार्यकारिणी की दो दिवसीय बैठक आज समाप्त हो गयी. बैठक के बाद पार्टी के राष्ट्रिय अध्यक्ष अखिलेश यादव ने बैठक के बारे में ब्यौरा देते हुए सिर्फ इतना कहा कि यूपी की सभी लोकसभा सीटों पर मौजूदा सहयोगियों के साथ समाजवादी पार्टी अपने उम्मीदवार उतारेगी। बात अगर सिर्फ इतनी है तो इस बैठक के लिए कोलकाता को क्यों चुना गया, सिर्फ इतनी बात के लिए तो लखनऊ काफी उचित स्थान था. यह बात तो वो पहले भी कहते हैं आये हैं, फिर इसमें नया क्या है? आखिर कोलकाता में बैठक के आयोजन की रणनीति का उद्देश्य क्या है?

यह समाजवादी पार्टी का अपना कार्यक्रम था, ममता बनर्जी से उनके सम्बन्ध जग ज़ाहिर हैं तो ये भी नहीं कहा जा सकता कि वो पश्चिम बंगाल में अपनी पार्टी के प्रचार प्रसार के लिए वहां गए थे, क्योंकि इसका तो कोई सवाल ही नहीं बनता। दोनों ही पार्टियों का वोट बैंक तो एक ही है, यानि मुस्लिम वोट बैंक, तो फिर अखिलेश यादव कोलकाता क्या साबित करने गए थे. जहाँ तक भाजपा के खिलाफ मोर्चा बनाने की बात है तो अखिलेश की सरगर्मियों ने दिखाया है कि वो कांग्रेस से अलग एक मोर्चा बनाना चाहते हैं, उनकी इस मोर्चे में ममता बनर्जी और तेलंगाना के चंद्रशेखर राव भी शामिल हो सकते हैं, नाम तो वो बिहार का भी लेते हैं लेकिन बिहार में मामला जेडीयू और राजद का मिला जुला है. वैचारिक रूप से दोनों ही पार्टी समाजवादी हैं लेकिन राजनीतिक रूप से थोड़ा मामला अलग है. जेडीयू के नितीश अभी तो अखिलेश के रिश्तेदार तेजस्वी के साथ खड़े हुए हैं लेकिन नितीश के बारे में कोई भविष्यवाणी नहीं की जा सकती।

वैसे भी बिहार में राजद और कांग्रेस का अबतक तो गठबंधन चल ही रहा है और बिहार में कांग्रेस पार्टी उतनी दीन हीन नहीं है जितनी यूपी में है. तो ऐसे में इस बात का कहना मुश्किल है कि तेजस्वी हों या फिर नितीश, दोनों अखिलेश के मोर्चे में जा सकते हैं. दूसरी बात नितीश पहले से ही कोशिश कर रहे हैं कि कांग्रेस की अगुवाई में एक मज़बूत मोर्चा बने जो भाजपा को उखाड़ फेंके। तेजस्वी भी यही बात कह रहे हैं और कांग्रेस पार्टी से अपील भी कर रहे हैं कि वो खुद आगे आकर मोर्चा बनाने में पहल करके क्षेत्रीय पार्टियों का विशवास हासिल करे. नितीश भी यह बात कई बार साफ़ कर चुके हैं कि कांग्रेस के बिना भाजपा के खिलाफ कोई भी मोर्चा संभव नहीं है. अब ऐसे में अखिलेश की अलग चलने की कोशिश के मायने अलग ही निकाले जा सकते हैं.

अखिलेश ने आज कांग्रेस और लेफ्ट दोनों के बारे में यह कहकर कि उन्हें अपने बारे में खुद फैसला लेना होगा, काफी है कि वो नहीं चाहते कि समाजवादी पार्टी कांग्रेस के साथ खड़ी होती नज़र आये. इसके अलावा उन्होंने आज फिर साफ़ कर दिया कि यूपी में कम से कम कांग्रेस से कोई गठबंधन नहीं होने वाला। शायद उन्होंने पिछले गठजोड़ के नतीजों से सबक लेते हुए ये फैसला किया है कि कांग्रेस पार्टी से जितना दूर रहो, पार्टी को उतना ही फायदा होगा। अखिलेश यह भी दिखाना चाहते हैं कि यूपी में सिर्फ दो ही पार्टी हैं भाजपा और सपा. हालाँकि अखिलेश के आज के बयान पर कांग्रेस ने भी पलटवार करते हुए कहा कि कांग्रेस के बिना कोई मोर्चा सफल नहीं हो सकता। लेकिन मामला तो यह है कि तीसरे मोर्चे की कवायद केंद्र में सफलता के लिए न तो अखिलेश कर रहे हैं, न ममता और न KCR. यह सबको अपने अपने गढ़ को बचाने की कोशिश में हैं। तेलंगाना में तो कांग्रेस पार्टी मुख्य विपक्षी है, बंगाल के उपचुनाव में कांग्रेस उम्मीदवार की सफलता और कांग्रेस लेफ्ट की नज़दीकी ने ममता के भी कान खड़े कर दिए हैं. हालाँकि अभी आम चुनाव में काफी समय बाकी है लेकिन सपा यह दिखाने की कोशिश कर रही है कि वो कहाँ पर है. शायद आने वाले दिनों में bargaining की स्थिति में फायदा उठाने के लिए वो एक संकेत और सन्देश दे रही है वरना कोलकाता में पार्टी के आयोजन का और कोई मकसद नहीं दिखता।

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