अमित बिश्नोई
हिंदी बेल्ट में यूपी के बाद मध्य प्रदेश का भाजपा के लिए सबसे महत्त्व है. अगर कांग्रेस की कमलनाथ सरकार के डेढ़ साल निकाल दें तो संघ की प्रयोगशाला रहे इस प्रदेश में 18 वर्षों से भाजपा सरकार सत्ता में है और प्रदेश के मामा यानि शिवराज चौहान की सरकार है. भाजपा की एकबार फिर यही कोशिश है कि विपरीत परिस्थितियों के बावजूद मध्य प्रदेश में उसकी सरकार बरकरार रहे, भले ही इस बार मामा की कुर्बानी ही क्यों न देनी पड़े. ये बात मैं इसलिए कह रहा हूँ क्योंकि मध्य प्रदेश को लेकर भाजपा जिस तरह के दांव इसबार चल रही है उससे कहीं न कहीं ये संकेत ज़रूर मिलते हैं कि मामा का सिंहासन डांवाडोल हो रहा है, शिरावज चौहान के सुर भी अब बदले हुए लग रहे हैं और वो विदाई की बातें करने लगे हैं.
दरअसल भाजपा आलाकमान को इस बात का अच्छी तरह से एहसास हो गया है कि इस बार शायद मामा से काम नहीं चलने वाला। प्रदेश को कोई नया चेहरा देकर पुराने चेहरे के प्रति लोगों की नाराज़गी को कम करना होगा। भाजपा राजनीती को एक बिजनेस समझती है और उसी तरह से व्यवहार भी करती है. मार्केट में किसी प्रोडक्ट की डिमांड कम होने लगे या प्रोडक्ट के बारे में शिकायत आने लगे या फिर उस प्रोडक्ट की वजह से दूकान की सेल पर असर होने लगे तो डिस्प्ले में लगे उस प्रोडक्ट वहां से हटाकर कोई नया प्रोडक्ट रखना बेहतर होता है. शिवराज चौहान की हालत इस वक्त उसी प्रोडक्ट की तरह हो गयी है और अब उन्हें मध्य प्रदेश के डिस्प्ले से आउट कर किसी नए प्रोडक्ट को सजाने की तैयारी चल रही है.
अब ये नया प्रोडक्ट कौन सा हो सकता है ये एक सवाल है क्योंकि भाजपा ने मध्य प्रदेश में केंद्र से एक साथ कई प्रोडक्ट भेजे हैं और आंकलन किया जा रहा है कि किसे डिस्प्ले में सजाया जाय. केंद्र से नरेंद्र सिंह तोमर, प्रह्लाद पटेल, फग्गन सिंह कुलस्ते और कैलाश विजयवर्गीय नाम के जो प्रोडक्ट मध्य प्रदेश भेजे गए हैं, इनमें से किसके नाम लॉटरी लगेगी। ये बात मैं प्रधानमंत्री मोदी जी के उस दावे के परिपेक्ष्य में कह रहा हूँ कि मध्य प्रदेश में इस बार भी भाजपा की सरकार ही बनेगी। अब चुनाव भले ही मोदी जी के नाम और उनकी गारंटियों पर लड़ा जायेगा लेकिन जीतने के बाद तो मुख्यमंत्री की कुर्सी पर किसी और को ही बिठाया जायेगा अब वो इन चारों में से होगा या फिर कोई पांचवां, या फिर मामा एकबार फिर मोदी जी को मैनेज करने में कामयाब हो जायेंगे। कुछ कहा नहीं जा सकता। सबकुछ आदेश पर निर्भर करता है. वैसे विजयवर्गीय तो खुलकर कहने भी लगे हैं कि वो सिर्फ विधायक बनने तो आये नहीं हैं. अब उनकी इस बात का आप अपने तरीके से मतलब निकाल सकते हैं. कैलाश विजयवर्गीय अगर ये बात कह रहे हैं तो किसी बुनियाद पर कह रहे होंगे, दिल्ली दरबार से ज़रूर उनकी कोई बात हुई होगी। या फिर हो सकता है कि वो पेशबंदी कर रहे हों. विधायकी की उम्मीदवारी की घोषणा पर वो पहले ही दबाव वाला बयान जारी कर चुके हैं. उनके हिसाब से उनका स्तर अब विधायकी से काफी ऊपर हो चुका है.
विजयवर्गीय की भाषा भी संकेत दे रही है कि आने वाला समय शिवराज के लिए शुभ नहीं है, वो चुनावी सभाओं में कह रहे हैं कि मध्य प्रदेश में ऐसा कोई अफसर नहीं है जो उनकी बात टाल सके, अब ऐसा टोन किसका हो सकता है? इन सभाओं में वो साफ़ तौर पर कह रहे हैं कि पार्टी उन्हें बड़ी ज़िम्मेदारी देगी। अब इस बड़ी ज़िम्मेदारी में बड़ा खेल छुपा है जो शिवराज का खेल बिगाड़ सकता है. शिवराज भी अधिकारीयों से मुलाकातों में कह रहे हैं कि जाने के बाद आप लोगों को बहुत याद आऊंगा। लोगों से राय मांग रहे हैं कि वो चुनाव लड़ें या न लड़ें।
मोदी सरकार के लिए मध्य प्रदेश का चुनाव बहुत अहम् है, पिछले लोकसभा चुनाव में उसे 29 में से 28 सीटों पर कामयाबी मिली थी, बावजूद इसके कि विधानसभा चुनाव में उसे हार मिली थी और 15 साल बाद यहाँ कांग्रेस की सरकार बनी थी. लेकिन मध्य प्रदेश को अपने कब्ज़े में रखने के लिए उसने कांग्रेस में बगावत करवा दी और ज्योतिरादित्य सिंधिया को अपने साथ कर कमलनाथ सरकार गिरा दी और एकबार से मध्य प्रदेश की सत्ता पर काबिज़ हो गयी. मोदी जी को अगर तीसरी बार सत्ता में वापस आना है तो मध्य प्रदेश को अपने साथ रखना ही होगा। क्योंकि ज़रूरी नहीं कि इस बार मध्य प्रदेश की सत्ता गंवाने के बाद यहाँ से 2019 जैसे ही नतीजे आएं। सभी को मालूम है कि 2019 के आम चुनाव में बालाकोट की घटना ने भाजपा को प्रचंड जीत दिलाई थी. भाजपा मध्य प्रदेश को लेकर इसीलिए इतनी चौकन्ना है, वो यहाँ से इस बार नए चेहरों पर चुनाव लड़ना चाहती है ताकि एंटी इंकम्बेंसी फैक्टर को लोगों के दिमाग से निकाला जा सके. अब देखना है कि नए प्रोडक्ट लांच का उसे कितना फायदा मिलेगा?