तौक़ीर सिद्दीक़ी
प्रदेश की राजधानी लखनऊ में कल रात हुआ बिल्डिंग कोलैप्स चर्चा का विषय बना हुआ है. बिल्डिंग कल रात गिरी और ऐसे गिरी मानों उसे गिराया गया है. एकदम भरभरा कर बैठ जाना, जैसे बरसात के दिनों में गावों में कच्चे मकान भरभराकर गिरते हैं या थे, क्योंकि अब तो कच्चे मकान होते नहीं। अक्सर इस तरह की इमारतों के गिरने के हादसे पुरानी बिल्डिंगों के साथ होते हैं लेकिन यहाँ पर तो मामला एक दशक से कुछ ज़्यादा पहले का है और यही वजह है जो इस बिल्डिंग collaps पर बहुत से सवाल खड़े हो रहे हैं. सबसे पहला सवाल तो यही है कि इस हादसे का ज़िम्मेदार कौन ? कोई एक या फिर बहुत से लोग. हादसे में दो लोगों की मौत हुई जो राजनीतिक परिवार से हैं. इस परिवार का सम्बन्ध दो दो राजनीतिक पार्टियों से है. परिवार का एक बेटा सपा की नुमाइंदगी करता है तो दूसरा कांग्रेस पार्टी का, जिस व्यक्ति का अपार्टमेंट है वो भी राजनीतिक पार्टी के विधायक का बेटा है तो मामले में राजनीतिक रंग भी आना स्वाभाविक है.
हादसा ऐसी जगह हुआ जो सत्ता के गलियारों से ज़्यादा दूर नहीं है, खैर. सरकार एक्टिव हो चुकी है दोषियों पर कार्रवाई के लिए, FIR भी हो चुकी है, गिरफ़्तारी भी हुई है, आगे और होने वाली भी है, बिल्डर की दूसरी इमारतों का चिन्हीकरण हो रहा है, ज़रुरत पड़े तो बुलडोज़र चलाया जा सके. लेकिन साल उठता है कि इस हादसे के लिए क्या सिर्फ वही लोग ज़िम्मेदार हैं जिनकी ज़मीन पर यह जानलेवा अपार्टमेंट बना था या फिर जिस बिल्डर कंपनी जिसे यज़दान बिल्डर बताया जा रहा है वो. एक बिल्डिंग को बनाने से पहले बहुत सारी औपचारिकताएं होती हैं विशेषकर जब बिल्डिंग कई मंज़िल की हो और रिहाइशी हो. सबसे बड़ी औपचारिकता तो NOC की होती है यानि सरकार की तरफ से जारी अनापत्ति प्रमाण पत्र की. इसके बिना कोई भी बिल्डिंग अवैध मानी जाती है.
तो सवाल यह है कि इसे NOC जारी किया गया था या नहीं, जारी किया गया था तो जांच हुई थी या नहीं। अगर बिना NOC और नक्शा पास के चार मंज़िला ईमारत खड़ी हो गयी और उसपर पेंट हाउस भी बन गया तो उसका ज़िम्मेदार कौन है, कैसे एक दशक से खड़ी इस ईमारत पर कोई कार्रवाई नहीं हुई. सरकार इससे मुंह नहीं मोड़ सकती कि उसे कुछ नहीं मालूम, अधिकारीयों को एक एक बात मालूम होती है, कार्रवाई तभी होती है जब इस तरह के हादसे होते है. और इसकी भी गारंटी नहीं कि कार्रवाई होगी ही. वक्त के साथ सबकुछ ठंडा पड़ जाता है, कार्रवाई भी.
इस तरह के हादसों के बाद बिल्डर्स पर कार्रवाई होती है, सरकार पर सवाल उठाये जाते हैं लेकिन लोग भूल जाते हैं कि इस तरह की इमारतों में फ्लैट खरीदने से पहले क्या क्या जानकारियां हासिल की जानी चाहिए और उन जानकारियों का सत्यापन करना चाहिए। लेकिन लोग इसकी परवाह नहीं करते। क्या उनकी ज़िम्मेदारी नहीं कि बिल्डिंग में शिफ्ट होने से पहले जानकारियां हासिल की जांय? तो दोषी कहीं न कहीं उन बिल्डिंगों में रहने वाले भी हुए. मत भूलिए कि इस तरह की बिल्डिंगों में रहने वाले अमीर और पढ़े लिखे तबके के लोग ही होते हैं लेकिन फ्लैट कल्चर शायद उन्हें ऐसा करने से रोक देता है और जब इस तरह का कोई हादसा होता है तब आरोप मढ़े जाते हैं.
अगर आप नज़र दौड़ाएंगे तो आपको अलाया जैसे बहुत से अपार्टमेंट मिल जायेंगे जो सरकारी अधिकारीयों के संरक्षण में खड़े हुए हैं. इस मामले में अभी कुछ दिनों तक कुछ इमारतों को नोटिसें देने का दौर चलेगा, कुछ पर कार्रवाई भी हो सकती है लेकिन इसके बाद फिर अगले हादसे का इंतज़ार और दोषियों को ढूंढने का सिलसिला।