अमित बिश्नोई
पूर्वोत्तर के तीन राज्यों त्रिपुरा, नागालैंड और मेघालय के चुनाव नतीजे कल आ गए. नतीजे कमोबेश पिछले चुनावी नतीजों की कॉपी ही कहे जा सकते हैं. इन तीनों राज्यों में एक राज्य त्रिपुरा में पहले भी भाजपा की सरकार थी, वहीँ नागालैंड और मेघालय में भाजपा ने वहां की मज़बूत क्षेत्रीय पार्टियों को समर्थन दिया था. वही इस बार भी होने जा रहा है लेकिन कल से मीडिया में ख़बरें इस तरह चल रही हैं जैसे वहां भाजपा ने कोई अभूतपूर्व सफलता हासिल की है. हेडलाइंस में है “पूर्वोत्तर में लहराया भगवा”. लेकिन क्या सही है. क्या वाकई नागालैंड और मेघालय में भगवा लहराया है. क्या नागालैंड और मेघालय में सरकार बनाने के लिए वहां के क्षेत्रीय दलों NDPP और NPP को भाजपा की ज़रुरत है. एकमात्र राज्य त्रिपुरा है जहाँ भाजपा की पहले भी सरकार थी और इस बार भी बनने जा रही है, अपने दम पर. पहले त्रिपुरा में भाजपा को 33 सीटें हासिल हुई थीं और इस बार एक कम यानि 32 सीटें मिली हैं, सहयोगी IPFT की सीटें चार से घटकर एक रह गयी है. त्रिपुरा में उपलब्धि यही है कि भाजपा अपने दम पर एकबार फिर सरकार बना रही है.
नागालैंड की बात करें तो वहां भी लगभग पिछले चुनाव नतीजे ही दोहराये गए हैं. पिछली बार जहाँ सत्तारूढ़ NDPP को 35 सीटें अकेले मिली थीं वहीँ इस बार उसकी सीटें घटकर 25 रह गयी हैं, मतलब NDPP अकेले सरकार नहीं बना सकती। यहाँ उसे इसबार बीजेपी का साथ लेना एक मजबूरी कहा जा सकता है, हालाँकि वो दूसरी पार्टियों के साथ भी सरकार बना सकती है. भाजपा को नागालैंड में भी पिछली बार से एक कम सीट यानि 12 सीटें मिली हैं. IPFT को 2 और NPP को 5 सीटें मिली हैं जिनके साथ जाकर NDPP बिना बीजेपी के भी सरकार बना सकती है. कांग्रेस पार्टी का नागालैंड में इस बार भी खाता नहीं खुला लेकिन एनसीपी सात सीटें जीतकर विपक्ष की बड़ी पार्टी बनी है, जेडीयू ने भी दो सीटें जीती हैं, देखा जाय तो विपक्ष पहले से मज़बूत हुआ है. पिली बार विपक्षविहीन सरकार थी.
अब बात मेघालय के चुनाव नतीजों की जो भाजपा के लिए एक बहुत बड़ा झटका साबित हुए हैं. भाजपा को इस पहाड़ी राज्य में त्रिपुरा जैसे नतीजे मिलने की उम्मीद थी लेकिन जब नतीजे आये तो वही ढाक के तीन पात. भाजपा पहले की तरह दो ही सीटों पर अटक गयी. कहाँ तो अकेले दम पर सरकार बनाने के लिए उसने अपनी पांच साल की साथी NPP का साथ भी छोड़ दिया था लेकिन NPP तो पहले से भी आगे बढ़ गयी उसकी सीटें 20 से बढ़कर 25 हो गयीं लेकिन भाजपा वहीँ की वहीँ रह गयी. लेकिन नतीजों के बाद कहा जा रहा है कि भगवा लहराया। यह बात चलो तब भी मान लेते अगर भाजपा और NPP साथ मिलकर लड़ते। लेकिन पूरे चुनाव अभियान के दौरान कोनराड संगमा के नेतृत्व वाली सरकार को प्रधानमंत्री मोदी हो, अमित शाह हो, हिमंत बिस्वा सरमा हों, योगी आदित्यनाथ हों, सबने अपनी सहयोगी रही सरकार को जमकर कोसा। भ्रष्टाचार के आरोप लगाए, विकास में अवरोधक बताया लेकिन तो उसी भ्रष्टाचारी और विकास की अवरोधक पार्टी के पक्ष में आये.
अब प्रधानमंत्री मोदी उन्हें अपना सहयोगी मान रहे हैं. मिलकर सरकार बनाने की बातें चल रही हैं और डंका पीटा जा रहा है कि पूर्वोत्तर में भगवा लहराया। सभी जानते हैं कि भले ही नागालैंड में NDPP और मेघालय में NPP को भाजपा की ज़रुरत नहीं है लेकिन इन राज्यों को केंद्र के समर्थन की बहुत ज़रुरत है, पैसे के लिए यह राज्य बहुत कुछ केंद्र पर निर्भर रहते हैं. पहले भी रहते थे और अब भी रहते हैं. इसलिए भाजपा को अपने साथ रखना NDPP और NPP की मजबूरी भी है और ज़रुरत भी. अगर हम इन तीनों राज्यों के चुनावी नतीजों का आंकलन करें तो कम से कम भाजपा के लिए तो ऐसा कुछ भी नहीं है जिसका इस तरह ढिंढोरा पीटा जा रहा है, बारीकी से आंकलन करें तो नुकसान ही नज़र आ रहा है. मेघालय और नागालैंड को तो छोड़िये, त्रिपुरा जहाँ वो दूसरी बार सरकार बनाने जा रहे हैं, इस चुनाव में Tipra Motha Party उनके लिए बहुत बड़ा खतरा बनकर सामने आयी है. राजघराने से ताल्लुक रखने वाली इस पार्टी पर चुनाव से पहले भाजपा ने डोरे डालने की बहुत कोशिश की थी लेकिन डाल नहीं पायी थी और नतीजा यह रहा कि पहली बार चुनाव लड़ने वाली यह पार्टी राज्य की दूसरी सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी है. TMP की स्थापना सिर्फ दो साल पहले हुई थी और इन दो वर्षों में ही पार्टी इतनी तरक्की कर गयी कि 13 सीटें हासिल कर लीं. अब आप इसे भाजपा की कामयाबी बताएँगे या नाकामी, यह फैसला आप पर है.