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बलि के बकरे पूछ रहे हैं, मेरा क़ुसूर क्या है?

आर्टिकल/इंटरव्यूबलि के बकरे पूछ रहे हैं, मेरा क़ुसूर क्या है?

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ज़ीनत सिद्दीक़ी

आखिरकार दो महीनों के ढिंढोरे के बाद मोदी सरकार का बहुप्रतीक्षित कैबिनेट विस्तार हो ही गया. यह बात तो लगभग सभी जानते थे कि लम्बा विस्तार होगा मगर यह शायद कोई नहीं जानता होगा कि चुनावी गुणा भाग का शिकार डॉक्टर हर्षवर्धन, रविशंकर प्रसाद, रमेश पोखरियाल निशंक और प्रकाश जावड़ेकर जैसे दिग्गज मंत्री होंगे। विपक्ष से लेकर आम जनता सब यही पूछ रहे हैं कि इन्हें क्यों बलि का बकरा बनाया गया, मोदी जी ने इन्हें क्यों दरबार से निकाल दिया, आखिर इनका कुसूर क्या था? वैसे कैबिनेट से 12 मंत्रियों की रुखसती हुई है मगर मैं बात सिर्फ इन्हीं चारों की करूंगी।

इस दरबारी बेदखली में सबसे हैरान करने वाला नाम स्वास्थ्य मंत्री डॉक्टर हर्षवर्धन का है. इस लिए भी कि मोदी के दरबार से उन्हें दूसरी बार बेदखली के अपमान का घूँट पीना पड़ा, पहली बार मोदी-1 में जब उनसे स्वास्थ्य मंत्रालय छीनकर आज के पार्टी अध्यक्ष नड्डा जी को दे दिया गया और अब मोदी-2 में भी उनके साथ यही हुआ. हर्षवर्धन पार्टी के अनुशासित सिपाही हैं, अपमान का कडुवा घूँट पी जायेंगे मगर उन्हें स्वास्थ्य मंत्री पद से हटाना अपने आप में कई सवाल उठा रहा है. सवाल उठ रहा है कि क्या मोदी जी ने स्वीकार कर लिया है कि सरकार कोरोना से सही ढंग से निपटने में नाकाम रही है. सवाल उठ रहा है कि एक स्वास्थ्य मंत्री के रूप मोदी जी डॉक्टर हर्षवर्धन को असफल और नाकारा मानते हैं? सवाल उठता है कि स्वास्थ्य मंत्री को कोरोना से निपटने में नाकामी पर बलि का बकरा बनाया गया है? सवाल यह भी उठता है कि क्या मोदी शासन में किसी भी मंत्री की कुछ निर्णय लेने की हैसियत है?

जहाँ तक निशंक जी बात है तो बताया जा रहा है कि मोदी जी की महत्वाकांक्षी नई शिक्षा नीति लागू करने में निशंक नाकाम रहे और इसलिए नाराज़ मोदी जी ने खराब स्वास्थ्य के बहाने उनसे शिक्षा मंत्रालय छीन लिया। पर सवाल उठता है कि उस सरकार में जहाँ 12वीं की परीक्षा टालने का फैसला प्रधानमंत्री आकर करता है वहां पर शिक्षा मंत्री का क्या काम और क्या हैसियत? कोरोना महामारी के काल में जब सारी शिक्षण व्यवस्था पंगु हो, शिक्षण संस्थाएं बंद हों, ऐसे में निशंक जी कहाँ पर नई शिक्षा नीति लागू कर देते, वैसे सभी जानते हैं कि वर्चुअली उन्होंने शिक्षकों, छात्रों और अभिवावकों से हमेशा संवाद बनाये रखा और सरकार की योजनाओं का प्रचार प्रसार करते रहे. शरीफ आदमी थे, नड्डा जी का फोन आने से पहले ही त्याग पत्र दे दिया। बताते चलें कि जब प्रधानमंत्री अपनी कैबिनेट को अंतिम रूप देने में व्यस्त थे तो नड्डा जी फोन से इस्तीफे ले रहे थे.

अब बात कानून और सूचना एवं प्रौद्योगिकी मंत्री रविशंकर प्रसाद को हटाने की तो आगे बढ़ने से पहले यह बता दें कि मोदी जी जब संसद में रोये थे तो पूरे हाल में अगर किसी और की आंखों में आंसू थे तो वह रविशंकर प्रसाद थे। कहा जा रहा है ट्विटर विवाद के कारण वह बलि का बकरा बने. आरोप है कि वह ट्वीटर विवाद को ढंग से सुलझा नहीं सके. आरोप तो एक बहाना है मकसद तो उन्हें हटाना है क्योंकि संघ के वह शायद इतने नज़दीकी नहीं थे. संघ का ज़िक्र इसलिए कि ट्वीटर ने संघ प्रमुख का ट्वीटर अकाउंट भी बंद किया था, हंगामा मचा तो अकॉउंट चालू हो गया, मगर देश की सबसे ताकतवर हस्ती के आत्मसम्मान को ठेस तो पहुँच ही गयी होगी. हटाने की वजह कोई भी हो पर मोदी जी उस वजह को कभी जस्टिफाई तो नहीं कर पाएंगे।

मोदी सरकार का एक और पिलर प्रकाश जावड़ेकर, इनको क्यों हटाया गया यह बात किसी रहस्य से कम नहीं लगती। जावड़ेकर साहब के पास पर्यावरण मंत्रालय था. बताया जा रहा है कि इनके मंत्रालय में सारे काम ठप्प पड़े हैं। बात सही भी हो सकती है मगर कोरोना महामारी के दौरान उनको जो काम मिला था वह जावड़ेकर साहब बखूबी कर रहे थे। वह रोज़ाना सरकार की असफलताओं का सफलता से बचाव करते थे, वह रोज़ विपक्ष के हमलों का विशेषकर राहुल गाँधी के वारों पर पलटवार किया करते थे. अब मंत्रालय कुछ भी हो,आपने जिसे जो काम पकड़ाया वह उसने आज्ञाकारी की तरह निभाया तो उसमें उसकी क्या गलती है? पर मोदी जी को चुनावी बेला में गोटियां फिट करनी थीं सो फिट कर दीं और जावड़ेकर को अनफिट कर दिया।

कहा गया कि परफॉरमेंस के पैमाने पर यह फैसले लिए गए तो फिर सवाल उठता है कि देश की अर्थ्यव्यवस्था रसातल में पहुँच गयी तो निर्मला सीतारमण से इस्तीफ़ा क्यों नहीं? एलपीजी, पीएनजी,सीएनजी, पेट्रोल, डीज़ल सभी के दाम आसमान पर पहुँच गए तो धर्मेंद्र प्रधान को क्यों बख्श दिया गया? क्या यह लोग परफॉरमेंस के पैमाने से परे थे. दरअसल बात सिर्फ इतनी है कि लोगों को यह बात भी याद दिलानी है कि हैसियत सिर्फ मेरी है, हम जिसे चाहे रखें, जिसे चाहे निकालें। हम जो चाहें तो सबपर एक फार्मूला अपनाएं और हम जो चाहें तो सब पर अलग नियम लागू करें।

वैसे अगर देखा जाय तो मोदी जी ने कैबिनेट विस्तार को भी एक इवेंट बना दिया, एक ही इवेंट में करमफ़रमा और सितमगर का रूप, ऐसा सिर्फ मोदी जी ही कर सकते हैं, कोई और सरकार होती तो अबतक इन 12 लोगों के दिल का लावा फूटकर बाहर आ चुका होता, पर मजाल है कि कोई चूं कर सके.अब इसे मोदी जी का मैनेजमेंट कहिये या उनका रौब या उनका ख़ौफ़, सबने ज़हर का प्याला पी लिया, अपमान का घूँट गटक लिया और होठों को सी लिया। यह लोग तो responsibility without power वाले लोग हैं जिनको power without responsibilty वालों ने बलि का बकरा बना दिया। अब देखना यह है कि मिनिमम गवर्नमेंट मैक्सिमम गवर्नन्स का नारा देकर सरकार की शुरुआत करने वाले मोदी जी मैक्सिमम गवर्नमेंट ( 77 मंत्री) के साथ कोरोना की विफलता, बदहाल अर्थव्यवस्था, बढ़ती बेरोज़गारी से कैसे निपटते हैं.

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