- नवेद शिकोह
मुखबिर मददगार होता है। गुप्त सूचनाएं देकर पुलिस को कामयाबियां दिलाता है। एक समय ऐसा आता है जब पुलिस अपने मददगार मुखबिर को ही मरवा देती है या हाथ पैर तोड़ देती है। कभी-कभी इन्हें जेल में ठूस दिया जाता है। ऐसा क्यों !
शायद इसलिए कि पुलिस को लगने लगता है कि मेरा मुखबिर कहीं मेरी ही मुखबिरी ना करने लगे।
पुलिस की तरह भाजपा सोशल मीडिया को उस मुखबिर की तरह कमजोर करने की कोशिश कर रही है। केंद्र सरकार द्वारा पहरेदारी से नाराज कुछ यूजर्स सोशल मीडिया पर ही इस तरह की फब्तियां कस रहे हैं । हांलाकि सोशल मीडिया पर सरकार की नई गाइड लाइन का स्वागत करने वालों की बड़ी संख्या है। इस फैसले की सराहना भी खूब हो रही है।
भारत में सोशल मीडिया के साथ ‘मोदी भाजपा’ का भी उदय हुआ था। सोशल मीडिया के जरिए ही मनमोहन सिंह की केंद्र सरकार के खिलाफ भाजपा हमलावर हुई। नरेंद्र मोदी को भाजपा की तरफ से पीएम प्रोजेक्ट करने के लिए सोशल मीडिया पर ही रायशुमारी तय हुई। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की लोकप्रियता का आंकलन भी सोशल पर होता रहा। तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह का मजाक भी सोशल मीडिया पर ही उड़ाया गया था।
नए भारत के इस डिजिटल हथियार ने नुकसान भी बहुत पंहुचाए। सोशल मीडिया ने ही दंगे की खूब आग लगाई, नफरत पैदा की, साम्प्रदायिकता का जहर घोला। पांच-सात बरस पहले जब सोशल साइट्स का रिवाज तेजी से बढ़ रहा था तब नफरत के सौदागरों ने इसका सबसे अधिक दुरूपयोग किया। दंगे करवाए, हत्याएं हुईं और इस नफरत की आग में ध्रुवीकरण की खिचड़ी पकी जिसे खाकर समाज को बांटने की सियासत चंगी हो गई लेकिन इस पर कभी लगाम नहीं लगी बल्कि इसे बढ़ाया गया। टेलीकॉम की दुनिया के शहंशाह अंबानी ग्रुप के रिलायंस और फिर जियो ने भारत में इंटरनेट/सोशल मीडिया की दुनिया में क्रांति ला दी। स्मार्ट फोन बच्चे-बच्चे के हाथ मे आ गया। गांव-गांव में भी सोशल मीडिया भारतीय समाज का मजबूत ढांचा बन गया। देश के बड़े पूंजीपतियों/उद्योपतियों ने भूख रोटी और आटे पर भले ही ध्यान नहीं दिया लेकिन डाटा सस्ता कर दिया।
केंद्र सरकार द्वारा सोशल मीडिया संबंधित गाइड लाइन पर एक मुंह से हजार बातें निकल कर सामने आ रही हैं। सरकार के इस अहम फैसले को सकारात्मक और नकारात्मक दोनों ही नज़रियों से देखा जा रहा है। बड़ी दिलचस्प और व्यंगात्मक बातें भी हो रही हैं। भारत का सामाजिक ढांचा सोशल मीडिया पर निर्भर हो गया है इसलिए सोशल मीडिया पर सरकार के पहरे और निगरानी के फैसले से समाज में सुगबुगाहट लाजमी भी है।
किसान-मजदूर प्रधानता वाला भारत, सोशल मीडिया यूजर्स वाला देश भी बन गया है। भले ही यहां गरीबी और पिछड़ापन है, कृषि और मजदूरी यहां का मुख्य पेशा है, फिर भी यहां अस्सी फीसद लोग सोशल मीडिया यूजर्स हैं यानी इंटरनेट से जुड़े हैं। यहां आटा भले ही मंहगा हो पर डाटा सस्ता है।
चीन के बाद भारत में सबसे ज्यादा इंटरनेट इस्तेमाल होता है। दुनिया में सबसे ज्यादा फेसबुक यूजर्स भारत मे हैं। यहां की करीब एक करोड़ आबादी सोशल मीडिया/इंटरनेट से जुड़ी है। हर पांच में तीन लोग सोशल मीडिया से सक्रिय रूप से जुड़े हैं।
राजनीति दलों ने अपने प्रचार और विचारधारा के प्रसार के लिए सोशल मीडिया को सबसे बड़ा हथियार बनाया है। कांग्रेस, सपा, आप.. इत्यादि सभी दलों के आईटी सेल है। लेकिन भाजपा का आईटी सेल सबसे बड़ा, मजबूत और प्रभावशाली बताया जाता है। गृह मंत्री अमित शाह ने अभी हाल में खुद कहा कि हमारे कार्यकर्ताओं की सोशल मीडिया की फौज प्रभावशाली है। यूपी के पिछले विधानसभा चुनाव में प्रचंड जीत का श्रेय भी उन्होंने सोशल मीडिया को दिया।
इन बातों के मददेनजर यूजर्स केंद्र की मोदी सरकार पर व्यंग्य करते हुए अमिताभ बच्चन का फिल्म दीवार वाला यह डायलॉग सुना रही है-
जाओ पहले उस आदमी का साइन लेकर आओ, जिसने मेरे बाप को चोर कहा था. जाओ, पहले उस आदमी का साइन लेकर आओ जिसने मेरी मां को गाली देकर नौकरी से निकाल दिया था. पहले उस आदमी का साइन लेकर आओ जिसने मेरे हाथ पर ये लिख दिया. उसके बाद… मेरे भाई तुम जहां कहोगे वहां साइन कर दूंगा.
इसी डायलॉग के फ्लो में यूजर्स केंद्र सरकार से कह रहे हैं- जाओ पहले सोशल मीडिया की नई गाइडलाइन भाजपा की उस घोषित-अघोषित आईटी सेल पर लागू करो जिसकी शैतानियों, झूठ-सच, नफरत-मोहब्बत, गप्पू-पप्पू और भावनाओं के भड़काने की कारीगरी से भाजपा फर्श से अर्श पर आ गई।