तौकीर सिद्दीकी
22 सितम्बर को देश की संसद के लिए एक काला दिन कहा जाना चाहिए क्योंकि इस दिन सत्ताधारी दल के एक सांसद ने विपक्षी दल के एक सांसद जो संयोग से अल्पसंख्यक समुदाय से आते हैं कुछ इस तरह से सम्बोधित किया जिसका ज़िक्र करना भी सभ्य समाज में जायज़ नहीं। 22 सितम्बर को देश के नए संसद भवन में जिस तरह से संसदीय परम्पराओं का अपमान हुआ, जिस तरह की असंसदीय और अमर्यादित भाषा का इस्तेमाल हुआ , जिस तरह से गाली की श्रेणी में आने वाले शब्दों का प्रयोग हुआ उसकी मिसाल भारतीय संसदीय इतिहास में तो नहीं मिलती, वो भी तब सिर्फ एक दिन पहले ही प्रधानमंत्री मोदी जी ने नए संसद भवन में सभी सांसदों को संसदीय परमपराओं का पाठ पढ़ाया था, बताया था कि आपका आचरण ही तय करेगा कि आने वाले समय में आप कहाँ पर बैठे नज़र आ सकते हैं और एकदिन बाद ही मोदी जी की इन हिदायतों की धज्जियां उड़ गयीं वो भी उन्हीं की पार्टी के एक सांसद द्वारा।
साउथ दिल्ली अभिजात्य वर्ग का इलाका माना जाता है, रमेश बिधूड़ी उसी क्षेत्र का नेतृत्व करते हैं जहाँ कहा जाता है कि हिंदी बोलने से ज़्यादा अंग्रेजी बोलने वाले रहते हैं। एक ऐसे क्षेत्र की नुमाइंदगी करने वाला नेता कैसे इस तरह की सड़क छाप, टपोरी टाइप की भाषा बोल सकता है. भरी संसद में एक सांसद किसी दूसरे सांसद को पिंप कैसे कह सकता है, क…. आ कैसे कह सकता, मुल्ले उग्रवादी कैसे कह सकता है, ओये आतंकवादी कैसे कह सकता है. माना कि बसपा सांसद दानिश ने उनके भाषण के दौरान टोकाटाकी की होगी, लेकिन ये तो संसद में आम बात है, इसपर इतना उत्तेजित हो जाना, इतना आवेश में आ जाना कि इंसान होश ही खो बैठे और ऐसी अमर्यादित भाषा का इस्तेमाल करे जिससे पूरी संसद का अपमान हो, संसद ही नहीं देश का अपमान हो क्योंकि जब भारत की संसद चल रही होती है तो पूरे विश्व की निगाहें उसपर होती हैं.
रमेश बिधूड़ी के कृत्य को किसी भी तरह से जायज़ नहीं ठहराया जा सकता, बिधूड़ी ही क्या किसी भी सांसद द्वारा की गयी इस तरह की हरकत को सही नहीं कहा जा सकता। उनपर कार्रवाई होना बहुत ज़रूरी है, सिर्फ कार्रवाई ही नहीं बल्कि सख्त कार्रवाई होना चाहिए सिर्फ शब्दों को रिकॉर्ड से निकालना या ये चेतावनी देना कि आगे से ऐसा किया तो कार्रवाई होगी, काम नहीं चलेगा। फिर तो कोई भी सांसद संसद में खड़ा होगा और इसी तरह की गाली गलौज की भाषा का इस्तेमाल करेगा। तब स्पीकर महोदय क्या करेंगे, अगर ये काम विपक्ष के किसी सांसद ने किया होता तो क्या तब भी ओम बिरला जी चेतावनी देकर छोड़ देते। स्पीकर महोदय तो सांसदों पर कार्रवाई के लिए काफी मशहूर हैं , हाँ ये अलग बात है कि वो सब के सब विपक्षी पार्टियों के सांसद होते हैं, अबतक वो दर्जनों विपक्षी सांसदों को निलंबित कर चुके है वो भी सिर्फ संसद में हंगामा करने के लिए लेकिन यहाँ पर तो मामला गाली गलौज का है.
मामला कितना गंभीर था कि रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह को माफ़ी मांगनी पड़ी. हालाँकि बहुत से लोग बिधूड़ी के पक्ष भी बोल रहे हैं. उन्हें बिधूड़ी की भाषा में कुछ भी गलत नहीं लगता। एक टीवी चैनल के पत्रकार साहब तो पिंप को ग्रामीण क्षेत्र की आम बोलचाल की भाषा बताते हैं, उनके हिसाब से किसी मुसलमान को मुल्ले कहना या ‘क… आ’ कहना कहाँ से गलत हो गया. उनके हिसाब से भारत माता की जय न बोलने वाले को उग्रवादी और आतंकवादी ही कहा जायेगा। भाजपा सांसद निशिकांत दुबे भी बिधूड़ी के आचरण को गलत मानते हैं हालाँकि वो दानिश अली के आचरण की भी जांच की बात कहते हैं. बिलकुल जांच होनी चाहिए, यहाँ दानिश अली हों या बिधूड़ी इससे कोई भी फर्क नहीं पड़ता, इस तरह की भाषा का कोई भी इस्तेमाल करे उसपर जो अधिकतम कार्रवाई हो सकती है होनी चाहिए ताकि एक मिसाल कायम हो और आने वाले समय में संसद शर्मसार होने से बचे.
इस मामले में यहाँ पर भाजपा के दो बहुत वरिष्ठ नेताओं डॉक्टर हर्षवर्धन और रविशंकर प्रसाद की चर्चा करना ज़रूर चाहूंगा। दोनों ही पूर्व केंद्रीय मंत्री हैं और रविशंकर प्रसाद तो पार्टी के राष्ट्रीय प्रवक्ता भी हैं. दोनों ही नेता उस समय ठहाके लगाते हुए नज़र आ रहे थे जब संसद की मर्यादा तार तार हो रही थी, इन दोनों का आचरण तो बिधूड़ी से भी वीभत्स था. हालाँकि बाद में दोनों नेता अपने तौर पर सफाई देते हुए नज़र आये लेकिन लोगों ने तो वायरल वीडियो में सबकुछ देख ही लिया। इस पूरे मामले में स्पीकर ओम बिरला का भी बर्ताव सवालों के घेरे में है, उन्हें दानिश के अलावा कई लोगों का नोटिस मिल चूका है, दानिश अली ने तो यहाँ तक कह दिया है कि अगर कार्रवाई न हुई तो वो अपनी सांसदी भी त्याग सकते हैं. दानिश अली आहत हैं, उनकी जगह दयाराम होते, डेनियल होते या ढिल्लन, सभी का आहत होना लाज़मी था. कार्रवाई के अभाव में अगर दानिश ने इस्तीफे का कदम उठाया तो ये और भी बुरा होगा और संसदीय इतिहास के लिए एक काला दिन भी. इस मामले की पूरी तरह जांच होना बहुत ज़रूरी है, रमेश बिधूड़ी ने क्या कहा देश और दुनिया ने देखा, अगर दानिश अली ने भी कुछ वैसा ही कहा है तो रिकॉर्ड में ज़रूर मौजूद होगा। ज़रुरत बस कार्रवाई की है वरना देश की संसद ऐसे ही असंसदीय होती रहेगी।