depo 25 bonus 25 to 5x Daftar SBOBET

अंधकार और असमंजस में छात्रों का भविष्य

आर्टिकल/इंटरव्यूअंधकार और असमंजस में छात्रों का भविष्य

Date:


अंधकार और असमंजस में छात्रों का भविष्य

अफ़्फ़ान अमीर

भारत में कोरोना महामारी एक आपदा बनकर आई और डेरा जमाकर बैठ गई इस आपदा काल में शेयर बाजार और अडानी व अंबानी की दौलत को छोड़कर लगभग हर क्षेत्र को भारी झटका लगा है. महंगाई चरम पर है, बेरोजगारी उरूज पर है, औद्योगिक क्षेत्र चरमराया हुआ है. आंकड़ों की तमाम बाजीगरी के बावजूद जो आंकड़े आ रहे हैं वह भी बहुत डरावने हैं. जाहिर है कोरोना महामारी ने जब हर क्षेत्र को झटका दिया है तो शिक्षा का क्षेत्र कैसे अप्रभावित रह सकता है. यह वह क्षेत्र है जो देश का भविष्य है जो भविष्य के निर्माणकर्ताओं को सजाता और संवारता है.

जून महीने के पहले ही दिन देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक बैठक बुलाई और सीबीएसई की 12वीं की परीक्षा को रद्द करने का ऐलान कर दिया। यह एलान किन परिस्थितियों में किया गया इस पर बहस हो सकती है. क्या यह फैसला सुप्रीम कोर्ट और विपक्ष के दबाव में लिया गया या सच में बच्चों के स्वास्थ्य की चिंता थी. बहरहाल केंद्रीय बोर्ड की परीक्षा रद्द हो चुकी है और इसी के साथ राज्य के शिक्षा बोर्डों (विशेषकर भाजपा शासित राज्य) ने प्रधानमंत्री के एलान का अक्षरशः पालन करते हुए 12वीं की परीक्षाएं रद्द कर दीं. बिना किसी योजना के, बिना किसी तैयारी के कि किस आधार पर परीक्षा परिणाम घोषित करेंगे। यह सवाल सुप्रीम कोर्ट ने भी सीबीएसई बोर्ड से पूछा और निर्देश दिए हैं कि पूरी कार्ययोजना अदालत के सामने रखे.

Read Also ; विवादित शायर पर दांव कांग्रेस को पड़ेगा भारी!

दरअसल इस सरकार में हो यह रहा है कि योजना बाद में बनती हैं और अच्छे व आकर्षक शीर्षक के साथ घोषणा पहले की जाती है. यही इस बार भी हुआ, 12वीं की परीक्षा कराने या न कराने के मुद्दे पर जब सरकार पूरी तरह घिर गयी तो प्रधानमंत्री की अगुवाई में एक बैठक बुलाकर प्रधानमंत्री के श्रीमुख से परीक्षाएं रद्द करने का एलान करा दिया गया , एक भावनात्मक ट्वीट भी किया गया. बिना किसी योजना के एलान तो हो गया, आदेश भी पारित हो गया अब सीबीएससी बोर्ड योजना बनाये कि वह इतने बच्चों का प्रणाम कैसे और किस आधार पर हो कि छात्र संतुष्ट हो जाए और उनको आगे बढ़ने में कोई रुकावट ना हो क्योंकि 12वीं के नतीजे ही किसी छात्र के कैरियर को नई दिशा देते हैं, 12वीं के परिणाम के आधार पर ही विश्वविद्यालयों में मेरिट के आधार पर प्रवेश होता है, प्रतियोगी परीक्षाओं में भी प्रतियोगी परीक्षा के अंकों और 12वीं परीक्षा के अंकों के आधार पर ही परिणाम घोषित होता है.

सरकार अगर कोई ठोस योजना बनाकर परीक्षाएं रद्द करती तो यह काम पहले ही हो चूका होता क्योंकि परीक्षाएं तो मार्च में होती है और जून में परिणाम घोषित होते हैं. मार्च से लेकर मई तक कोरोना की दूसरी लहर अपने चरम पर थी और ऐसा भीं नहीं कि सरकार को इसकी जानकारी नहीं थी. मेडिकल और इंजीनियरिंग की प्रवेश परीक्षाएं लगातार रद्द हो रही थीं, सरकार के पास पूरा समय था इस आने वाली समस्या का हल निकालने के लिए, मगर सरकार इंतज़ार करो और देखो की नीति पर ही चलती रही. सरकार अगर इस मसले पर गंभीर होती तो परीक्षाएं रद्द करने से पहले सर्वमान्य तरीके से परीक्षा परिणाम घोषित करने का हल मिल जाता और परिणाम भी मिल जाते। इससे कम से कम उन छात्रों को तो राहत मिल ही जाती जो विदेश में पढ़ाई के इच्छुक होते हैं, समय से परीक्षा परिणाम मिलने से वह बाहर के कालेजों और यूनिवर्सिटीज में एडमिशन ले सकते थे, अब परीक्षा परिणाम की देरी से बहुत से छात्र प्रवेश से वंचित रह जाएंगे।

Read Also : महाराष्ट्र में चरणबद्ध तरीके से अनलॉक प्रक्रिया शुरू

एक बात और भी ध्यान देने लायक है, वह है विभिन्न बोर्डों द्वारा परीक्षा परिणाम घोषित करने का पैटर्न। सभी को मालूम है कि विद्यार्थियों को अंक देने के मामले में सारे शिक्षा बोर्डों का अपना तरीका है, कुछ बोर्ड अंक देने के मामले में काफी उदार रहते हैं तो कुछ बोर्ड इस मामले में काफी सख्त रहते हैं. अब अगर सभी छात्रों का प्रणाम अलग अलग पैटर्न पर दिया जाएगा तो छात्रों के मन में शंका बनी रहेगी और प्रतियोगी परीक्षा कराने वाली संस्थाएं भी सशंकित रहेंगी कि उन्होंने अपना परिणाम सही घोषित किया या नहीं क्योंकि यह संस्थाएं अपना परिणाम प्रतियोगी परीक्षा और बोर्डों से प्राप्त अंकों के आधार पर घोषित करती हैं. सवाल यह भी है कि प्रतियोगी परीक्षाएं कराने वाली यह संस्थाएं क्या अभी भी अपना पुराना पैटर्न बरक़रार रखेंगी या कुछ बदलाव होगा? कुछ बोर्डों ने परीक्षा परिणाम के लिए औसत का नियम अपनाने की बात कही है, इसपर भी अमल करना इतना आसान नहीं क्योंकि बहुत से छात्र 12वीं की तैयारी बहुत गंभीर होकर करते हैं, 11वीं या प्री -बोर्ड के एक्ज़ाम्स को उतनी गंभीरता से नहीं लेते। उनका सारा फोकस अंतिम परीक्षा और साथ में तैयारी कर रहे प्रतियोगी परीक्षाओं पर होता है.

सवाल यह भी उठता है कि वह विश्वविद्यालय जो मेरिट के आधार पर प्रवेश लेते हैं क्या वह सही छात्रों का चुनाव कर पाएंगे। दिल्ली यूनिवर्सिटी में प्रवेश जुलाई महीने में शुरू होंगे, अभी तक की जानकारी के हिसाब से वहां मेरिट अंकों पर ही सेलेक्शन होगा, DU की कटऑफ लिस्ट 99 परसेंट तक रहती है, लगभग यही हालत दिल्ली के दूसरे कालेजों विश्व विद्यालयों की है. ऐसे में इस आपधापी में इस बात की भी पूरी सम्भावना है कि कुछ होनहार छात्रों को नुकसान उठाना पड़े और कुछ की लॉटरी लग जाए. कुल मिलकर मौजूदा हालात में छात्रों के लिए आगे की राह अन्धकार और असमंजस भरी लग रही है.

Share post:

Subscribe

Popular

More like this
Related

बिल्डरों की मनमानी पर रेरा ने चलाया बुलडोज़र

अक्सर ये देखा गया है कि डेवलपमेंट अथॉरिटी द्वारा...

उम्मीदवारों पर इतना हंगामा है क्यूं बरपा

बाहरी और नए उम्मीदवारों को लेकर पार्टियों में अंदरूनी...

रात्रि 11.15 मिनट से शुरू होगा होलिका दहन, बनेंगे कई शुभ योग

भद्रा का साया, एक घंटे ही रहेगा महूर्त इस वर्ष...