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इंडिया गठबंधन में बग़ावत

आर्टिकल/इंटरव्यूइंडिया गठबंधन में बग़ावत

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अमित बिश्‍नोई

लगता है घर बसने से पहले ही उजड़ने लगा, मोदी सरकार को उखाड़ फेंकने के लिए 26 विपक्षी पार्टियों का जो गठजोड़ बना था और INDIA नाम की जो मज़बूत दीवार खड़ी की जा रही थी, पूरी होने से पहले ही उस दीवार से ईंटें खिसकने लगी हैं और ये ईंट भी कोई मामूली ईंट नहीं है, नींव की ईट है जिसका खिसकना किसी भी दीवार की सेहत के लिए सही नहीं होता, हमेशा गिरने का खतरा रहता है. INDIA नाम की इस दीवार का नाम है समाजवादी पार्टी जिसके मुखिया ने कल खुले आम गठबंधन से अलग होने की धमकी दी है, धमकी क्या दी है बल्कि एक तरह से अखिलेश यादव ने गठबंधन से अलग होने का एलान कर दिया है, अखिलेश की इस नाराज़गी की वजह कांग्रेस के वो नेता हैं जो अखिलेश की नज़रों में छुटभय्ये हैं, ये अलग बात है कि वो उन्हीं के प्रदेश में कांग्रेस पार्टी के अध्यक्ष का दर्जा रखते हैं.

अखिलेश यादव काफी बरहम हैं, उन्हें नहीं पता कि इंडिया गठबंधन केंद्र के लिए है न कि राज्यों के लिए, पता होता तो शायद वो गठबंधन में शामिल ही न होते, या कम से कम कांग्रेस पार्टी के साथ उन मीटिंगों में शिरकत न करते जहाँ भाजपा या मोदी-अमित शाह को हराने के लिए एकजुट होने की बातें की गयीं थीं, अखिलेश तन्ज़िया लहज़े में कहते हैं कि वो उन बैठकों में शामिल थे मगर शायद उनसे ही समझने में भूल हो गयी, मगर साथ में वो जैसे को तैसा वाली धमकी भी देते हैं और कहते हैं कि जैसा व्यवहार समाजवादी पार्टी के साथ होगा वैसा ही व्यवहार वो भी करेगी। अखिलेश कहते हैं कि अगर उन्हें मालूम होता कि ऐसा होने वाला है तो अपने कदम कभी आगे न बढ़ाते। वो खुले आम गठबंधन से अलग होने की बात भी कहते हैं और कहते हैं कि अगर ये अलायन्स केंद्र के लिए बना है तो जब वो मौका आएगा तब उसपर विचार करेंगे।

दरअसल अखिलेश यादव काफी समय से इस कोशिश में लगे हैं कि आम आदमी पार्टी की तरह समाजवादी पार्टी का राष्ट्रीय स्तर पर विस्तार हो और उसे भी राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा मिले, इसी कोशिश में वो अन्य राज्यों में भी अपने उम्मीदवार उतारते रहे हैं, कहीं पर उन्हें एक दो सीटों पर कामयाबी भी मिली है मगर नेशनल पार्टी का दर्जा पाने के लिए इतना काफी नहीं है. आपको शायद जानकारी होगी कि जब नितीश-तेजस्वी राहुल गाँधी के साथ मज़बूत विपक्षी गठबंधन का ताना बाना बुन रहे थे तब अखिलेश यादव ममता बनर्जी और KCR के साथ एक तीसरे मोर्चे को मूर्त रूप देने की कोशिश कर रहे थे मगर ममता के इंडिया अलायन्स में जाने से उनके पास भी उसमें शामिल होने के अलावा कोई चारा नहीं बचा, मगर अखिलेश ने इस मौके को अपनी पार्टी के विस्तार का एक सुनहरा अवसर समझा और आने वाले विधानसभाओं चुनावों में कांग्रेस पर दबाव की राजनीति खेलना शुरू की, अखिलेश का कहना था कि कांग्रेस को अगर उत्तर प्रदेश में अवसर चाहिए तो उसे भी मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान में समाजवादी पार्टी को अवसर देना होंगे।

केंद्र से मोदी सरकार को उखाड़ फेंकने को आतुर कांग्रेस पार्टी ने भी बातचीत का रास्ता खोलकर अखिलेश की उम्मीदों को परवान चढ़ाया और के सी वेणुगोपाल को इसके लिए अधिकृत किया। दोनों दलों के नेताओं के बीच कई बैठके हुई और बकौल अखिलेश यादव मध्य प्रदेश में 6 सीटों पर सहमति भी बनी मगर जब कांग्रेस पार्टी ने उम्मीदवारों की सूची जारी की तो उन्हें शून्य मिला, यहाँ ये बताना ज़रूरी है कि समाजवादी पार्टी ने दबाव की राजनीति अपनाते हुए कांग्रेस पार्टी से पहले ही मध्य प्रदेश में उन सभी सीटों पर अपने उम्मीदवारों की घोषणा कर दी थी जिनपर वो दावे कर रही थी. कांग्रेस की सूची से अखिलेश को बड़ा झटका लगा, उनके राष्ट्रीय नेता बनने के सपनों को झटका लगा, उसपर यूपी कांग्रेस अध्यक्ष का ये बयान कि समाजवादी पार्टी का मध्य प्रदेश में कोई जनाधार नहीं है और उसे अपने उम्मीदवार लड़ाने के बजाय कांग्रेस पार्टी का मज़बूती से साथ देना चाहिए, अगर वो भाजपा को हराना चाहते हैं तो.

इस बयान से अखिलेश का उखाड़ना लाज़मी था और वो ऐसा उखड़े कि एक प्रदेश अध्यक्ष को छुटभय्या नेता तक बोल बैठे और कांग्रेस आलाकमान को सलाह भी दे बैठे कि वो ऐसे नेताओं द्वारा बयान न दिलाये, अखिलेश की इस बात का मतलब ये भी हो सकता है कि दिल्ली में बैठे कांग्रेस के बड़े नेता पीठ पीछे वार न करें। बहरहाल अखिलेश ने गठबंधन से बग़ावत का एलान कर दिया है, अभी तक कांग्रेस पार्टी के किसी बड़े नेता की तरफ से कोई बयान नहीं आया है मगर इतना तो साफ़ ही हो गया है कि गठबंधन की दीवार उतनी मज़बूत नहीं है जितनी बताई और दिखाई जा रही है, अखिलेश की नाराज़गी के बाद उसमें पड़ने वाली दरार सबको साफ़ दिखाई दे रही है. अब देखना है कि ये अखिलेश की वाकई में चेतावनी है या गीदड़ भभकी।

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