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राहुल की सजा और आगे की राजनीति

आर्टिकल/इंटरव्यूराहुल की सजा और आगे की राजनीति

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अमित बिश्‍नोई
कांग्रेस नेता राहुल गाँधी को 2019 में दिए गए एक चुनावी भाषण में कही गयी मोदी उपनाम की टिप्पणी पर गुजरात के सूरत की एक जिला अदालत ने मानहानि के मुक़दमे में दो साल की सजा सुना दी, जिसे राहुल गाँधी ने मंज़ूर कर लिया, अदालत ने फैसले से पहले उनसे इस मामले में कुछ कहने को पूछा भी मगर राहुल गाँधी अपनी बात और बयान पर कायम रहे कि उन्होंने किसी समुदाय की मानहानि नहीं की , उन्होंने जो भी कहा वो देश हित के कहा क्योंकि विपक्ष का नेता होने के नाते उन्हें उन मुद्दों को उठाने का अधिकार है जो जनता और देश के हित में हैं. देश में इन दिनों अपोज़ीशन के नेताओं के साथ केंद्र की भाजपा सरकार द्वारा जिस तरह की कार्रवाइयां की जा रही हैं उन्हें देखते हुए राहुल गाँधी के खिलाफ अदालत के इस फैसले को राजनीति के ही चश्मे से ही देखा जा रहा है और यह तय हो गया है कि अब यह लड़ाई आर पार की होने जा रही है.

फैसला अदालत का है इसलिए उस फैसले पर कोई टिप्पणी करना उचित नहीं। कांग्रेस पार्टी इससे निपटने की तैयारी कर रही है, जो कानूनी प्रक्रिया है उसके हिसाब से ऊपर की अदालत में जिला अदालत के इस फैसले को चैलेन्ज किया जायेगा। कांग्रेस को उम्मीद है कि सूरत की अदालत का ये फैसला ऊपर की अदालतों में टिक नहीं पायेगा लेकिन कांग्रेस पार्टी अब इस फैसले को राजनीतिक मुद्दा बनाने जा रही है ये लगभग तय हो गया है. कल रात कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे के घर पर लगभग 50 सांसद और CLP लीडर जमा हुए थे और दो घंटे तक चली इस बैठक में आगे की लड़ाई की रूपरेखा तैयार हो चुकी है.

कांग्रेस पार्टी अब इस मुद्दे को जनता के बीच ले जाने की तैयारी कर रही है. शुक्रवार को विपक्षी पार्टियों के सांसदों का मार्च विजय चौक तक जायेगा, राष्ट्रपति से भी मिलने का कार्यक्रम है, अनुमति मांगी गयी है. सभी प्रदेशों के CPL लीडरों के साथ कांग्रेस अध्यक्ष की बैठक होगी और सोमवार को पूरे देश में विरोध प्रदर्शन होगा, यानी लड़ाई संसद से सड़क तक जाने वाली है, यह अलग बात है कि संसद चल ही नहीं रही है क्योंकि सत्तापक्ष राहुल से माफ़ी की मांग पर सदन को चलने ही नहीं दे रहा है.

इस फैसले के बाद राहुल गाँधी की संसद सदस्यता जाने की भी बातें हो रही हैं, कहा जा रहा है कि राहुल गाँधी की सदस्यता छीनने के लिए ही यह सब हुआ है. वैसे भी भाजपा के कई सांसद राहुल गाँधी को सदन से हटाने और उनकी सदस्यता रद्द करने की मांग कर ही रहे थे, ऐसे में ये फैसला आने से इस बात को भी अनदेखा नहीं किया जा सकता। लेकिन सवाल यह है कि क्या भाजपा ऐसा करना चाहेगी, क्या प्रधानमंत्री मोदी और गृह मंत्री अमित शाह ऐसा ही चाह रहे हैं और अगर ऐसा है तो फिर यह कांग्रेस पार्टी और राहुल गाँधी के लिए एक लॉटरी की तरह होगा। भारत जोड़ो यात्रा के बाद राहुल गाँधी वैसे भी देश और विदेश में सर्वाधिक चर्चित व्यक्ति बन गए हैं। निःसंदेह उनकी पप्पू की छवि में ज़बरदस्त बदलाव आया है. और यह सब भाजपा को चिंता में डाले हुए है (भाजपा मतलब प्रधानमंत्री मोदी और अमित शाह).

अब इसे तो सीधे तौर पर नहीं कहा जा सकता कि यह फैसला कोई राजनीतिक दांव है लेकिन समय और संयोग ऐसे हैं कि इस फैसले का राजनीतिकरण होना ही है. कांग्रेस पार्टी भी इसे एक अवसर के रूप में देख रही है. कर्नाटक चुनाव अभी सर पर है और वहां से जो रिपोर्ट्स आ रहीं हैं उनके हिसाब से सत्तारूढ़ दल की हालत खराब है. हिमाचल के बाद कांग्रेस की एक और राज्य में कामयाबी पार्टी के लिए संजीवनी साबित हो सकती है और भाजपा के लिए 2024 के लिए एक बड़े खतरे का संकेत भी क्योंकि सारा खेल तो 2024 के लिए ही खेला जा रहा है. कांग्रेस की निगाह भले ही राज्यों के चुनावों की तरफ है मगर लक्ष्य तो उसका भी 2024 है. इस फैसले के बाद नफा नुक्सान का आंकलन तेज़ हो गया है, लड़ाई और धारदार होने जा रही है, शह और मात का खेल शुरू होने वाला है, अब देखना है कि दोनों ही पार्टियां इस फैसले को अपने लिए कैसे भुना सकती हैं.

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