अमित बिश्नोई
2019 के लोकसभा चुनावों में सपा से गठबंधन का फायदा उठाते हुए बहुजन समाज पार्टी ने 10 सीटों पर जीत हासिल की थी. कहा गया था कि शून्य से 10 तक सफर बसपा के लिए सिर्फ सपा का साथ मिलने से ही संभव हुआ था. सपा से गठबंधन अगर न होता तो शायद उसका वजूद ही ख़त्म हो गया होता। क्योंकि 2012 के बाद से वो लगातार सिकुड़ती जा रही थी. 2017 के विधानसभा चुनाव में उसे मात्र 19 सीटें ही मिली थीं. इसलिए 19 विधानसभा सीटें हासिल करने वाली को बसपा को दो साल बाद 10 लोकसभा सीटें मिलना किसी चमत्कार से कम नहीं था और इसीलिए कहा जा रहा था कि यह चमत्कार सपा की वजह से संभव हुआ था अन्यथा 2022 के चुनाव में वो 19 से एक सीट पर न पहुँच गयी होती। बहरहाल बसपा को अब हकीकत का पता चल गया है कि वो उत्तर प्रदेश में किस हैसियत में है उसे यह भी पता चल गया है कि शायद अब उसे गठबंधन के लिए कोई साथ न मिले, उसे यह भी पता चल गया है कि अब अपने वजूद को बचाने के लिए अकेले ही मेहनत करनी होगी और यही वजह है कि उसने इस सच्चाई को समझकर प्रयास शुरू कर दिए हैं.
लोकसभा की सीटें बचाना भले ही उसके लिए टेढ़ी खीर होगा लेकिन प्रयास तो करने ही होंगे, पार्टी प्रमुख मायावती ने इसीलिए उपचुनावों से भी अपने को दूर रखा और सारा ज़ोर संगठन को मज़बूत करने पर ही केंद्रित कर दिया है. मायावती ने दलित मुस्लिम और ब्राह्मण गठजोड़ के कामयाब समीकरण में युवाओं का फैक्टर जोड़ा है. आज हर पार्टी युवाओं की बात कर रही है, राहुल हों, अखिलेश हों या फिर प्रधानमंत्री मोदी, युवा शक्ति को इन्होने पहचाना है और उन्हें अपने राजनीति के खाके में महत्वपूर्ण जगह दी है. बहुजन समाज पार्टी अभी तक इससे दूर रही है, लेकिन अब मायावती का यह एलान कि बसपा युवाओं को 50 प्रतिशत भागीदारी देगी एक नए प्रयोग के रूप में देखा जा रहा है.
बहुजन समाज पार्टी पिछले कुछ महीनों से लगातार पार्टी के अलग अलग विंग के साथ बैठकें कर लोकसभा चुनाव की रणनीति को तैयार करने में लगी हुई है, हालाँकि उसकी रणनीति में प्राथमिकता अब दलित, मुस्लिम और OBC ही हैं लेकिन इसमें अब युवा एक नए फैक्टर के रूप जोड़ा गया है. मायावती का आज जन्मदिन है और इस जन्मदिन पर युवाओं को 50 प्रतिशत की भागीदारी का एलान पार्टी को मज़बूत करने की एक पहल है. मायावती को यह भी एहसास है कि बसपा से अलग दलितों और OBC में एक युवा नेतृत्व तैयार हो रहा है जिसकी अगुवाई चंद्रशेखर आज़ाद और कुंवर जैसे उभरते नेता कर रहे हैं और यही वजह है कि मायावती अपने भतीजे आकाश को पार्टी में ज़्यादा बड़ी ज़िम्मेदारियाँ दे रही हैं, आकाश को आगे लाने का मकसद जहाँ विरासत को तैयार करना है वहीँ पार्टी से युवाओं को जोड़ने के लिए एक चेहरा भी तैयार करना है.
मायावती इन दिनों साप्ताहिक बैठकें कर रही हैं, हर एक विधानसभा क्षेत्र का बारीकी से अध्ययन हो रहा है, काडर वोट में लगी सेंध को कैसे भरा जा सकता है, इसपर गहन विचार और प्रयास चल रहा है. बूथ स्तर पर कार्यकर्ताओं को संगठित और प्रशिक्षित किया जा रहा है. पार्टी में निष्क्रिय लोगों को चिन्हित कर उनकी जगह नए और जोशीले लोगों को लगाया जा रहा है. वैसे तो बसपा खुद का मुकाबला भाजपा से बताती है लेकिन उसे अच्छी तरह मालूम है कि उसका असली मुकाबला सपा और कांग्रेस पार्टी से है. बसपा को अपना वजूद बचाने और पार्टी को फिर से खड़ा करने के लिए इन्ही दोनों से मुकाबला करना होगा क्योंकि उसकी हैसियत कम से कम अभी भाजपा से टकराने की नहीं है. भारतीय राजनीति में यूथ फैक्टर बहुत अहम् है यह अलग बात है कि मायावती ने इसे देर से पहचाना।