Illustration By Hasan Zaidi
अमित बिश्नोई
जब से मोदी जी का सीएम से PM के रूप में प्रमोशन हुआ है देश में दो बातें निरंतरता से जारी हैं, मन की बात और जन की बात. 2014 से शुरू हुआ यह सिलसिला लगातार आगे बढ़ रहा है. फर्क इस बात का है कि मन की बात का समय तय है और यह बात हर मौसम में की जाती है लेकिन जन की बात हालात के हिसाब से, परिस्थितियों के हिसाब से की जाती है. यह भी अजीब संयोग है कि इन परिस्थितियों का निर्माण चुनावी मौसम में ही होता है. जब भी देश के किसी हिस्से में चुनावी बिगुल बजता है मन की बात जन में बदल जाती है. इन दिनों देश के दो राज्यों में चुनावी माहौल चल रहा है, हिमाचल में आधिकारिक रूप से तारीखों का एलान हो चूका है और गुजरात के लिए स्वायत्त संस्था निर्वाचन आयोग को तारीखों का एलान करने के लिए किसी निर्देश का इंतज़ार है. गुजरात आप जानते ही होंगे प्रधानमंत्री जी का गृह राज्य है, ज़ाहिर सी बात है उनके दिल के बहुत करीब है, दूसरे शब्दों में गुजरात दिल है तो दिल्ली जान है, दोनों का बड़ा गहरा सम्बन्ध है, दिल ने धड़कना बंद कर दिया तो जान भी चली जाती है इसलिए दिल को बहुत संभालकर रखा जाता है. यही वजह है कि दिल्ली और गुजरात मोदी जी के लिए बराबर की अहमियत रखते हैं.
तो बात जन और मन की हो रही थी. फिलहाल मन की बात ऑफ सीजन विषय है और फोकस जन की बात पर है. मोदी जी को बड़ी अच्छी तरह मालूम है कि कब मन की बात करना है और कब जन की बात उठाना है. वैसे दोनों का एकसाथ इस्तेमाल करना भी उन्हें बड़ी अच्छी तरह आता है, और हर उस चुनाव में जो थोड़ा लम्बा खिंचता है मोदी जी जन के साथ मन की बातों का भी बड़ा सूंदर उपयोग करते हैं. गुजरात की चुनावी प्रक्रिया को थोड़ा लम्बा खींचना शायद निर्वाचन आयोग के लिए इसीलिए ज़रूरी हो गया, वैसे उसे परम्परा भी तो निभानी थी और गुजरात के मामले में उसने परंपरा का ही पालन किया, किसी और राज्य का मामला होता तो फिर देखा जाता, कुछ पुरानी परम्पराएं तलाश ली जातीं या फिर कुछ नई गढ़ ली जातीं।
फिलहाल तो जन की बात के मौसम में मोदी जी जन जन से मिलने की कोशिश कर रहे हैं, अभी पिछले दिनों ही गुजरात में उन्होंने बच्चों के साथ क्लासरूम भी शेयर किया, साथ बैठकर पढ़ाई की, जन की बात के मौसम में अक्सर उनकी बच्चों से काफी नज़दीकिया हो जाती हैं. उन्हें मालूम है कि बच्चों के सहारे घर के बड़ों तक कैसे पहुंचा जाता है, उन्हें मालूम है कि बच्चे सबसे अच्छे संदेशवाहक होते हैं. बच्चे उन्हें बहुत पसंद है, शायद नेहरू जी की तरह. अब यह नहीं पता कि बच्चे उन्हें क्या कहते हैं, नेहरू जी को तो चाचा कहते थे. खैर छोड़िये। मोदी जी की बात में कहाँ नेहरू जी को घुसेड़ दिया।
चुनावी मौसम है तो जन की बात का यह सिलसिला अभी और आगे बढ़ेगा और इसकी रफ़्तार भी तेज़ होगी, मोदी जी को अभी एक नवंबर को आदिवासी जनों से जन की बात करनी है। बांसवाड़ा के मानगढ़ में मंच सजेगा और उस मंच से मोदी जी राज्य की इस बहुत बड़ी आबादी को बताएँगे कि 27 साल पहले उनके साथ कांग्रेस सरकार कैसे कैसे अन्याय करती थीं और यह भी बताएँगे कि आदिवासी जनों के साथ भाजपा सरकार क्या आगे करेगी। दरअसल जन से संवाद में भूत और भविष्य के बेहतर इस्तेमाल की कला में मोदी जी माहिर हैं, उन्हें मालूम है कि जन को वर्तमान से जितना दूर रखो उतना ही फायदा। भूतकाल को याद दिलाओ और भविष्य के सपने दिखाओ, जन की बात सुनने वाले वर्तमान अपने आप भूल जायेंगे। तो अभी आप जन की बात सुनिए, मन की बात तो सुनते ही रहते हैं.