अमित बिश्नोई
जैसे जैसे पांच विधानसभा चुनावों की तारीख़ नज़दीक आ रही है नेताओं के बयानों में तीखापन बढ़ता जा रहा है, विशेषकर कांग्रेस पार्टी के नेताओं, वो भी बड़े नेताओं द्वारा कुछ ऐसे बयान सामने आये हैं जो उनके स्तर से मैच नहीं करते। पांच विधानसभाओं में से चार में भाजपा और कांग्रेस में सीधा मुकाबला है. मध्य प्रदेश में जहाँ भाजपा अपनी सत्ता बचाने के लिए जूझ रही है वहीँ देश की मुख्य विपक्षी पार्टी कांग्रेस छत्तीसगढ़ और राजस्थान में सत्ता बचाने के लिए जी जान से लगी हुई है. इनमें से सबसे महत्वपूर्ण राज्य राजस्थान है जहाँ पिछले 30 वर्षों में कोई भी राजनीतिक दल सत्ता में नहीं लौट पाया है ऐसे में मुख्यमंत्री अशोक गेहलोत की सरकार बचाने के लिए चुनाव प्रचार की ज़िम्मेदारी मुख्य रूप से कांग्रेस महासचिव प्रियंका गाँधी ने उठा रखी है. प्रियंका गाँधी राजस्थान के तूफानी दौरे कर रही हैं और इन तूफानी दौरों पर उनके निशाने पर मुख्य रूप से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी हैं। अपने चुनावी दौरों पर पीएम मोदी पर तरह तरह के आरोप लगाती हुई नज़र आती हैं लेकिन उनकी आक्रामकता कहीं न कहीं राजनीतिक और चुनावी मर्यादा को भी लांघ रही है. प्रियंका गाँधी ने कल झुनझुनु की एक जनसभा में इसी तरह का एक हमला प्रधानमंत्री मोदी पर किया और कहा कि मोदी जी का लिफाफा खाली है.
प्रियंका गाँधी का देश के प्रधानमंत्री पर इस तरह का हमला कितना जायज़ है इसपर राजनीतिक गलियारों में बहस चल रही है. दरअसल प्रधानमंत्री मोदी कुछ महीनों पहले भीलवाड़ा में भगवान श्री देवनारायण के ‘अवतरण महोत्सव’ के अवसर पर एक समारोह को संबोधित करने पहुंचे थे और वहां दानपात्र में एक लिफाफा भी डाला था, बाद में जब दानपात्र को खोलकर लिफाफा खोला गया तो बकौल प्रियंका गाँधी उसमें सिर्फ 21 रूपये निकले, हालाँकि प्रियंका ने ये भी कहा कि ये बात मैं टीवी पर चल रही खबर और वीडियो के आधार पर कह रही हूँ। प्रियंका ने कहा कि इनके सारे काम भी इसी तरह के होते हैं , ये कहते कुछ और हैं और होता कुछ और है, इस लिफ़ाफ़े की तरह. प्रियंका ने आगे कहा कि वो समझ चुकी हैं कि मोदी जी का लिफाफा खाली है. प्रियंका गाँधी यहीं पर नहीं रुकतीं है, वो आगे इसमें भीड़ को भी शामिल करती हैं और महिला आरक्षण, जातिगत जनगणना और ERPC का उल्लेख करती हुई भीड़ से कहलाती है कि मोदी जी का लिफाफा खाली है.
प्रियंका गाँधी ने इससे पहले भी कर्नाटक के चुनाव में प्रधानमंत्री मोदी पर सीधा हमला करते हुए कहा था कि ये पहला प्रधानमंत्री है जो जनता को अपना दुखड़ा सुनाता है. प्रियंका ने ये बात पीएम मोदी के गालियों की संख्या वाले भाषण के बाद पलटवार करते हुए बोली थी, तब इस तरह का हमला लोगों को पसंद आया था क्योंकि वो पूरी तरह राजनीतिक हमला था और राजनीतिक मर्यादा में भी था मगर किसी ने मंदिर में कितना चंदा दिया, उसने दान पात्र में डाले गए लिफ़ाफ़े में क्या डाला, ये तो उसका व्यक्तिगत मामला है न कि राजनीतिक। नरेंद्र मोदी देश के प्रधानमंत्री हैं तो क्या ये ज़रूरी हो जाता है कि वो मंदिर के दानपात्र में भारी भरकम रकम डालें। ये श्रद्धा का मामला है, आस्था का मामला है. पीएम मोदी ने 21 रूपये दानपात्र में डाले या 2100 या 21000 या फिर 21 लाख इसका चुनावी राजनीती से क्या लेना देना।
मंदिर में जब कोई दर्शन करने जाता है तो वो प्रधानमंत्री नहीं एक भक्त होता है, ये भक्त की श्रद्धा है कि वो कितना दान करे. क्या भाजपा ने या मोदी जी ने कभी पूछा है कि राहुल गाँधी, प्रियंका गाँधी या कांग्रेस का कोई और नेता जब मंदिरों में माथा टेकने जाता है तो कितना दान करके आता है, क्या ये भी कोई पूछने का सवाल है, क्या ये कोई चुनावी मुद्दा है. क्या जिसने मंदिर को ज़्यादा दान दिया उसे ज़्यादा वोट मिलेंगे और जिसने कम दान किया उसे कम वोट? देश की राजनीती कहाँ जा रही है, मोदी विरोध में प्रियंका गाँधी ने ये क्या गैरज़रूरी मुद्दा उठा दिया। क्या इसका कांग्रेस को लाभ मिलेगा? हरगिज़ नहीं! आपका मोदी विरोध सही है, भारत जोड़ो यात्रा के बाद कांग्रेस के प्रति लोगों में रुझान भी बढ़ा है लेकिन देश के प्रधानमंत्री को लिफ़ाफ़े पर घेरने जैसे मुद्दों पर हवा पलट भी सकती है. आप विरोध कीजिये लेकिन किसी के व्यक्तिगत जीवन में दखलंदाज़ी भारी पड़ सकती है, इस तरह के मुद्दे सस्ती लोकप्रियता वाले होते हैं जिससे आगे की पंक्ति में बैठने वाले भले ही खुश हो जाएँ मगर सभी नहीं. मत भूलिए मोदी जी पर जब जब व्यक्तिगत हमला हुआ है उन्होंने उसे अवसर बनाया है और चुनाव में उसे भुनाया है, आने वाली चुनावी सभाओं में अगर मोदी जी ख़ाली लिफ़ाफ़े की बात करते दिखें तो किसी को हैरानी नहीं होनी चाहिए। प्रियंका गाँधी ने पीएम मोदी के लिफ़ाफ़े को खाली तो बता दिया मगर ये समय बताएगा कि किसका लिफाफा खाली है