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होली पर्वः त्योहार के साथ विज्ञान भी

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होली पर्वः त्योहार के साथ विज्ञान भी

  • रंगों के त्योहार के वैज्ञानिक पहलुओं को भी जानें

सुनील शर्मा

न्यूज डेस्क। होली का पर्व भारत में हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। रंगों से सरोबार लोग ऊंच-नीच, भेदभाव को त्याग कर एक-दूसरे को रंग लगाकर प्रेमभाव से गले लगाते हैं। कहा जाता है कि होली पर्व पर बिखरे रंग पूरे साल की दुश्मनी को भी खत्म कर देते हैं। आपसी सदभावना और मेल मिलाप के साथ मनाये जाने वाले होली पर्व का उद्देश्य सभी को एक समान रंग में रंगकर समानता की भावना को पैदा करना है।
लेकिन होली का पर्व सिर्फ आस्था का त्योहार ही नहीं हैै बल्कि इस त्योहार को मनाने के तरीकों में वैज्ञानिक कारण भी छिपे हैं। हर परंपरा और त्योहार को मनाने के तरीके निर्धारित करते समय हमारे पूर्वजों ने वैज्ञानिक पहलुओं का भी ध्यान रखा है। यह वैज्ञानिक पहलू मानव स्वास्थ्य और पर्यावरण के लिये बेहद हितकारी हैं। आइये जानते हैं होली मनाने के वैज्ञानिक पहलुओं के बारे में…

होलिका दहन के साथ नष्ट हो जाते हैं बैक्टीरिया

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होली पर्व पर होलिका दहन की परंपरा रही है जिसका निर्वहन पूरे श्रद्धाभाव के साथ किया जाता है। होलिका दहन वाले दिन सुबह के समय महिलाएं होलिका पूजन करती हैं। होलिका में गोबर से बनाये गये कंडों के साथ कई तरह की पूजन सामग्री भी अर्पित की जाती है। शाम के समय जब होलिका दहन किया जाता है तो जलती होलिका का तापमान लगभग 145 डिग्री फारेनहाइट तक बढ़ जाता है। अरंडी के पौधे, गोबर के कंडे और पूजन सामग्री के साथ इतने अधिक तापमान में जलती होलिका अपनी परिक्रमा करते लोगों के शरीर और आसपास के वातावरण से बैक्टीरिया को समाप्त कर देते हैं। शरद ऋतु की समाप्ति और बसंत ऋतु के आगमन का यह काल होलिका दहन करने से सर्दी के मौसम में विकसित हुए बैक्टीरिया को नष्ट कर शरीर और वातावरण को शुद्ध बनाता है।

पौधे से लेकर पूजन सामग्री तक का दहन है लाभप्रद

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होलिका रखते समय उसको अरंडी के पौधे से सजाया जाता है। अरंडी का पौधा बेहद गुणकारी होता है और बैक्टीरिया का नाश कर वातावरण को शुद्ध करता है। होलिका दहन के दौरान अरंडी का पौधा, उसके फल और बीज संक्रामक रोगोें के कीटाणुओं का नाश करने के साथ त्वचा को नुकसान पहुंचाने वाले जम्र्स को भी समाप्त कर देते हैं। वहीं पूजन में प्रयोग आने वाला कपूर, कंडे, नारियल और अन्य पूजन सामग्री, चिकन पाॅक्स सहित अनेक बीमारियों के वायरस को समाप्त कर देते हैैं। होलिका दहन के समय निकलने वाला धुआं मच्छरों के लार्वा को नष्ट करता है। वहीं होलिका दहन से हवा में मौजूद बैक्टीरिया भी समाप्त हो जाते हैं।

गीत-संगीत से लेकर रंग तक देते हैं शरीर को ऊर्जा

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हमारे पूर्वजों ने वैज्ञानिक दृष्टिकोण को ध्यान में रखते हुए उचित समय पर होली का त्योहार मनाने की शुरूआत की। होली का त्योहार आने के समय मौसम में परिवर्तन हो रहा होता है। काफी समय तक ठंडे मौसम में रहने वाला शरीर गर्म तापमान में आते ही थकान और सुस्ती महसूस करने लगता है। ऐसे में फाग के मौसम में तेज आवाज में गाये जाने वाले गीत और बजाये जाने वाला संगीत मानव शरीर की सुस्ती को दूर करने के साथ नई ऊर्जा प्रदान करते हैं। वहीं होली खेलते समय एक-दूसरे को लगाये जाने वाला अबीर और गुलाल (शुद्ध रूप में) शरीर को ताजगी प्रदान करते हैं। त्चचा के पोरों में समा कर अबीर-गुलाल त्वचा में निखार लाते हैं।

स्वास्थ्य पर सकारात्मक प्रभाव डालते हैं रंग

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कुछ शोधों के अनुसार रंगों से खेलने से शरीर के स्वास्थ्य पर सकारात्मक प्रभाव पड़ता है। कुछ वैज्ञानिकों का यह भी मानना है कि रंग हमारे शरीर तथा मानसिक स्वास्थ्य पर कई तरीके से असर डालते हैं। इसलिये होली के पर्व पर रंगों से खेलने से स्वास्थ्य पर इनका सकारात्मक प्रभाव पड़ता है। हमारे शरीर में रंग विशेष की कमी से अनेक बीमारियां पैदा होती हैं। ऐसे में होली के विभिन्न रंगों में कोई रंग आपके स्वास्थ्य के लिये लाभप्रद भी हो सकता है। हां यह रंग केमिकल से बने होने की बजाये प्राकृतिक होने चाहियें तभी उनका अनुकुल प्रभाव पड़ेगा।

घर और शरीर हो जाता है स्वच्छ

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होली पर्व आने से पहले लोग अपने घर की सफाई करते हैं जिससे घर में मौजूद धूल-मिट्टी साफ होने के साथ मच्छरों और कीटाणुओं का भी खात्मा हो जाता है। वहीं होली खेलने के बाद रंग से सरोबार घर की अच्छी तरह से सफाई की जाती है जिससे घर पूर्ण रूप से स्वच्छ हो जाता है। एक स्वच्छ घर, शरीर को स्वस्थ रखने के साथ ऊर्जावान भी बनाये रखता है। वहीं होली के रंगों को शरीर से छुटाने के लिये शरीर पर काफी पानी डालने के साथ उसको बार-बार रगड़ा जाता है। इससे न सिर्फ त्वचा पर मौजूद मृत कोशिकाएं शरीर से हट जाती हैं बल्कि शरीर पर मौजूद बैक्टीरिया भी समाप्त हो जाते हैं।

होली के पकवान भी होते हैं स्वास्थवर्धक

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होली की खुशियों को बढ़ाने के लिये तरह-तरह के पकवान बनाये जाते हैं और परिवार सहित घर पर आने वाले लोगों को खिलाया जाता है। इन पकवानों में सबसे पहले नाम आता है गंुझिया का जो मावे और सूखे मेवों से भरपूर होने के कारण शरीर को ताकत प्रदान करती है। वहीं होली पर्व पर दही-बड़ा, कांजी-बड़ा सहित फलों, खट्टे खाद्य पदार्थो का सेवन अधिक किया जाता है। यह सभी खाद्य पदार्थ विटामिन सी से भरपूर होते हैं जो आने वाले गर्म मौसम का सामना करने की ताकत देते हैं।

प्राकृतिक रंग त्वचा में लाते हैं निखार

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पहले समय में रंगों को बनाने में केमिकल का प्रयोग नहीं किया जाता है। ढाक के फूल, टेसू के फूल, हल्दी, चंदन, मेहंदी आदि प्राकृतिक चीजों से बनाये गये रंग त्वचा के लिये लाभदायक होते थे। इन रंगों को छुड़ाने के लिये जब शरीर रगड़ा जाता था तो यह स्वास्थवर्धक प्राकृतिक चीजें रोमछिद्रों से शरीर में समा जाती थीं। इससे त्वचा स्वस्थ और चमकीली हो जाती थी। लेकिन वर्तमान में केमिकल वाले रंगों को प्रयोग बढ़ गया है जो त्वचा सहित आंखों, बालों आदि को बेहद नुकसान पहुुंचाते हैं। यदि आप चाहते हैैं कि होली का पर्व हर्षोल्लास के साथ मनायें और होली के रंग आपके शरीर को लाभ पहुंचायें तो घर पर ही प्राकृतिक रंग तैैयार करें। यदि ऐसा न कर पायें तो गुणवत्तापूर्ण गुलाल से ही होली खेंले और केमिकल वाले रंगों का न खुद प्रयोग करें और न ही किसी को करने दें। तभी होली मनाने का उद्देश्य सार्थक होगा और होली के रंग जीवन को ऊर्जा से भर देंगे।

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