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I.N.D.I.A के डॉट्स पर बढ़ते डाउट्स

आर्टिकल/इंटरव्यूI.N.D.I.A के डॉट्स पर बढ़ते डाउट्स

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तौकीर सिद्दीकी

संसद के विशेष सत्र के साथ ही देश में एक तरह से आधिकारिक रूप से चुनावी बिगुल बज चूका है, संकेत दिए जा चुके हैं कि राजस्थान, छत्तीसगढ़ , मध्य प्रदेश और तेलंगाना विधानसभाओं के चुनाव समय पर ही होंगे, हालाँकि इस पर अभी संशय बना हुआ है कि क्या इन विधानसभा के चुनावों के साथ लोकसभा के भी चुनाव होंगे। संसद भवन शिफ्ट हो चूका है, सोमवार को पुराने संसद भवन को अंतिम विदाई दी जा चुकी है। हालाँकि पहले ये सुना गया था कि 2024 में आने वाली नयी सरकार से नए संसद भवन की शुरुआत होगी मगर प्रधानमंत्री मोदी ने अपने ड्रीम प्रोजेक्ट में प्रवेश अपने वर्तमान कार्यकाल में ही कर लिया ।शायद मन में उनके कोई शंका रही हो और अगर शंका थी तो निश्चित तौर पर कहा जा सकता है कि ये शंका विपक्षी पार्टियों के नए गठबंधन के बाद पनपी होगी जिसका नाम Indian National Developmental Inclusive Alliance यानि I.N.D.I.A दिया गया.

इस नाम ने भाजपा और पीएम मोदी को बहुत विचलित कर दिया और इसके जवाब में भारत को आगे किया गया हालाँकि दोनों में कोई अंतर नहीं लेकिन राजनीति ने अंतर पैदा करने की कोशिश की है। इंडिया अलायन्स को पता नहीं किस किस नाम से पुकारा जाने लगा, घमंडिया के भाजपा अब इसे इंडी अलायन्स बोल रही है, ये भी आरोप लगा रही है कि ये अपनी महत्वाकांक्षाओं को पूरा करने के लिए एक समूह के रूप में आया एक गठबंधन है जिसका मकसद सिर्फ मोदी को हटाना और सत्ता को हथियाना है. भाजपा के इन आरोपों की अगर हम बात करें तो महत्वाकांक्षा की बात तो बिलकुल सच नज़र आती है. इंडिया अलायन्स में आपको कई ऐसी पार्टियां नज़र आएँगी जिनकी अपनी महत्वाकांक्षाएं हैं, अपने हित हैं. जो भाजपा सरकार से परेशान हैं, जिनपर ED,सीबीआई, इनकम टैक्स का सही या गलत रूप से शकंजा गया है या कसा जा रहा है, जिसे राजनीतिक प्रतिशोध भी कहा जा सकता है. ऐसी पार्टियों में आपको TMC, AAP, और समाजवादी पार्टी मुख्य रूप से नज़र आएगी। इन पार्टियों के नेताओं को कहीं न कहीं परेशान किया गया है, फंसाया भी गया है. ऐसे में Indian National Developmental Inclusive Alliance यानि I.N.D.I.A के डॉट्स पर डाउट्स भी बढ़ते जा रहे हैं और सवाल उठा रहे हैं कि क्या लोकसभा चुनाव तक यह गठबंधन इसी रूप में मौजूद भी रहेगा, जैसे आज और अभी दिख रहा है।

यहाँ हम विशेष तौर पर आम आदमी पार्टी और समाजवादी पार्टी की बात करेंगे। इनमें से एक पार्टी को अभी जल्द ही नेशनल पार्टी का दर्जा मिल चूका है और दूसरी इस मकाम को पाने के लिए बेहद लालायित है. इंडिया अलायन्स में सबसे बड़ी और मुख्य पार्टी कांग्रेस है और ये दोनों पार्टियां विधानसभा चुनावों को एक अवसर के रूप में देख रही हैं और कांग्रेस पार्टी पर दबाव बना रही हैं कि उसे बड़ा दिल दिखाना चाहिए। इंडिया अलायन्स की रीजनल पार्टियों द्वारा कहा जा रहा है कि इन चुनावों को लोकसभा चुनाव की तैयारियों के रूप में देखा जाना चाहिए और जनता में सन्देश जाना चाहिए कि इंडिया अलायन्स वाकई में एकजुट है. एक तरह से कहा जा सकता है कि कांग्रेस पार्टी राजस्थान, मध्य प्रदेश , छत्तीसगढ़ और तेलंगाना में सहयोगी पार्टियों को भी जगह दे. सभी को मालूम है कि इन चारों राज्यों में तेलंगाना को छोड़ मुख्य लड़ाई भाजपा और कांग्रेस के बीच है. कांग्रेस पार्टी पर ये दबाव डाला जा रहा है कि वहां पर एडजस्टमेंट करे।

समाजवादी पार्टी इस मामले में सबसे आगे है. उसने साफ़ तौर पर मांग कर दी है कि उसे इन सभी राज्यों में कुछ सीटें चाहिए। मध्य प्रदेश में तो उसने 6 सीटों पर अपने उम्मीदवार भी घोषित कर दिए हैं, वहीँ छत्तीसगढ़ में वो पांच से 6 सीटें मांग रही है जबकि राजस्थान में तो उसने विधानसभा के साथ एक लोकसभा सीट की भी मांग कर दी है. राजस्थान में उसने OBC बाहुल्य वाली पांच विधानसभा और अलवर लोकसभा सीट की मांग की है. दरअसल सपा अपना विस्तार चाहती है ताकि राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा हासिल करने में उसे मदद मिले। बदले में वो कांग्रेस पार्टी के लिए अमेठी, रायबरेली के अलावा कुछ और लोकसभा सीटों को छोड़ेगी लेकिन सवाल यही है क्या ऐसा संभव है, छत्तीसगढ़ में सपा ने पिछली बार 11 सीटों पर चुनाव लड़ा था और बुरी तरह हारी थी. मध्य प्रदेश में एक सीट जीती थी और पांच पर दुसरे नंबर पर रही थी और वही सीटें वो क्लेम कर रही है. राजस्थान में अलवर लोकसभा सीट सपा के छोड़ना मेरे हिसाब से तो संभव नहीं है. ये एक बड़ा डॉउट है जो गठबंधन पर असर डाल सकता है।

आम आदमी पार्टी तो लोकसभा और विधानसभा चुनावों को बिलकुल अलग अलग देख रही है. उसकी नज़र में ये गठबंधन सिर्फ लोकसभा चुनाव के लिए है। उसका निशाना सिर्फ प्रधानमंत्री मोदी हैं और मजबूरी में वो इंडिया अलायन्स में शामिल हुई है वरना बैर तो उसका कांग्रेस से भी उतना ही है जितना भाजपा से. छत्तीसगढ़ की सभी सीटों पर चुनाव लड़ने का एलान उसने पहले ही कर दिया है और यही बात उसने मध्य प्रदेश और हरियाणा के लिए भी कही है. इस गठबंधन की सबसे कमजोर् कड़ी आम आदमी पार्टी ही है, उसके लिए पंजाब और दिल्ली में कांग्रेस पार्टी के साथ सीट शेयरिंग करना बड़ी टेढ़ी खीर है. चूँकि इस समय इंडिया अलायन्स में शामिल होना उसकी मजबूरी है, उसके कई बड़े मंत्री और पार्टी के नेता जेल में हैं, कई और लोग भी ED, सीबीआई के रडार पर हैं , LG से लेकर लगातार पन्गा चल रहा है, कानून बनाकर दिल्ली सरकार के अधिकारों में कटौती से केजरीवाल बिलबिलाये हुए हैं, यही वजह है कि वो विपक्षी गठबंधन में हैं , केजरीवाल बड़े महत्वाकांक्षी भी हैं ये बात जगज़ाहिर है तभी तो इंडिया अलायन्स में प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार के रूप आप नेता उनका नाम बार बार उछालते रहते हैं , आप कह सकते हैं कि विपक्षी गठबंधन में सबसे बड़ा डॉउट आम आदमी पार्टी ही है।

तीसरा डॉउट पश्चिम बंगाल से उठता है। इंडिया गठबंधन में इस राज्य की लगभग सभी विपक्षी पार्टियां शामिल हैं लेकिन देखा जाय तो भाजपा से लड़ने की ताकत सिर्फ ममता बनर्जी यानि TMC में ही है. कांग्रेस पार्टी यहाँ पर अपनी ज़मीन काफी हद तक खो चुकी है और कभी एक छत्र राज करने वाली लेफ्ट पार्टियां भी सत्ता से गायब हो चुकी हैं। बंगाल की बात करें तो यहाँ काडर की लड़ाई है जिसकी वजह से पार्टियां चाहे भी तो आपस में समझौता नहीं कर सकतीं, विशेषकर सीपीआई एम् जिसका काडर कभी तृणमूल कांग्रेस से समझौते के लिए तैयार नहीं होगा यही वजह है कि उसने स्पष्ट कर दिया है कि बंगाल में ममता से समझौता नहीं, सीपीआई एम् का कोई भी लीडर इंडिया अलायन्स की पिछली बैठक में भी नहीं पहुंचा था। तो मानकर चलना चाहिए कि बंगाल में इंडिया अलायन्स काम नहीं करेगा , ये अलग बात है कि ममता बनर्जी बड़ा दिल दिखाते हुए कांग्रेस के लिए कुछ सीटें छोड़ दें।

ये कुछ डाउट्स हैं जो I.N.D.I.A के बीच लगे हुए डॉट्स से निकलते हैं. I.N.D.I.A से इन डॉट्स का निकलना और डाउट्स बढ़ना या कम होना आने वाला समय ही बताएगा। इतना ज़रूर है कि मोदी मैजिक से अगर इस विपक्षी गठबंधन को सफलता से लड़ना है तो जितनी जल्दी हो सके उसे इन डाउट्स को कम करना होगा जो नामुमकिन नहीं तो आसान काम भी नहीं।

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