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गेहलोत, गद्दार और कांग्रेस

आर्टिकल/इंटरव्यूगेहलोत, गद्दार और कांग्रेस

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अमित बिश्नोई
कांग्रेस पार्टी इस वक्त भारत जोड़ो यात्रा से खुद को देश से जोड़ने की कोशिश कर रही है, गुजरात जैसे अहम राज्य में 27 वर्षों से बाहर रहने वाली पार्टी वापसी की आशा लगाए हुए और इधर अशोक गेहलोत जैसे पार्टी के वरिष्ठ नेता और राजस्थान के मुख्यमंत्री सचिन पायलट को खुले आम गद्दार कहते फिर रहे हैं. पहले भी पायलट के खिलाफ उनकी भाषा काफी असभ्य रही है लेकिन एक राष्ट्रीय टीवी चैनल पर अपने विरोधी को खुले आम गद्दार कहना और यह भी दावा करना कि वह कभी मुख्यमंत्री नहीं बन सकते, इतने वरिष्ठ नेता से उम्मीद नहीं की जा सकती, कांग्रेस पार्टी भी गेहलोत के बेजा और बेवक्त के बयान से हैरान है. जयराम रमेश ने आज उनके कुछ शब्दों को अप्रत्याशित बताया भी है. यकीनन यह गेहलोत को एक तरह से सन्देश भी है कि पार्टी आला कमान की इस मामले में क्या सोच है.

गेहलोत की पायलट से दुश्मनी कोई नई नहीं है, यह पिछले विधानसभा चुनाव से चली आ रही है. यह सभी को मालूम है कि कांग्रेस पार्टी को चुनाव जितवाने में सचिन पायलट का बहुत बड़ा हाथ, लेकिन बहुमत आने के बाद ताज गेहलोत के सर पर सजा दिया गया. पायलट क्या, कोई ही होगा तो वो निराश भी होगा और नाराज़ भी. बहरहाल कहा जाता है कि पार्टी हाई कमान ने उस समय एक बीच की राह निकाली जिसके मुताबिक ढाई ढाई साल का फार्मूला तय किया गया लेकिन अपने ढाई साल पूरे करने के बाद गेहलोत ने कुर्सी छोड़ने से इंकार कर दिया, इस बीच विधायकों के बीच उन्होंने अपनी पकड़ मज़बूत कर ली थी. सचिन पायलट ने तमाम कोशिशों के बावजूद कामयाबी न मिलता देख एक तरह से बग़ावत का रास्ता पकड़ा। यहाँ पर भी गेहलोत ने खेल खेला। गेहलोत ने इस बात को उछाला कि यह बग़ावत पार्टी के खिलाफ थी, आला कमान के खिलाफ थी हालाँकि सभी को यह पता था कि यह विरोध सिर्फ और सिर्फ गेहलोत के खिलाफ था. सितम्बर में हुई कांग्रेस विधायकों की बगावत को गेहलोत पायलट के खिलाफ बगावत बताते हैं और 2020 की बगावत को पार्टी हाई कमान के खिलाफ बगावत करार देते हैं. यह दोहरापन नहीं तो और क्या है.

आज कांग्रेस पार्टी अपने वजूद की लड़ाई लड़ रही है, ऐसे में गेहलोत के गद्दार गद्दार के खेल को क्या कहा जाय, ऐसा ही कुछ खेल गेहलोत ने कांग्रेस अध्यक्ष के चुनाव के समय भी खेला था, अचानक चुनाव लड़ने से असमर्थता ज़ाहिर कर दी थी, विधायकों के कंधे पर रखकर बन्दूक चलाई थी, सबको मालूम था कि विधायकों के बग़ावत के एलान के पीछे किसका दिमाग़ चल रहा है, इसके बाद माफ़ी का नाटक। अब एकबार फिर वैसा ही खेल, कांग्रेस तब भी मजबूर थी , कांग्रेस अब भी मजबूर लग रही है. राजनीति का कोई भी जानकार इस बात को हरगिज़ नहीं मान सकता कि भारत जोड़ो यात्रा और गुजरात चुनाव के बीच गेहलोत जैसे चालाक नेता ने अचानक ही पायलट को गद्दार गद्दार कहना शुरू कर दिया।

सभी जानते हैं कि भाजपा कांग्रेस की इस अंतरकलह का फायदा उठाएगी। सवाल टाइमिंग का है, गेहलोत ने यह समय क्यों चुना, वह भी तब जब भारत जोड़ो यात्रा राजस्थान में प्रवेश करने वाली है. गेहलोत के मन में क्या चल रहा है, पायलट को वो अपना राजनीतिक विरोधी मानते हैं या फिर राजनीतिक दुश्मन। क्योंकि विरोधी होने और दुश्मन होने में बड़ा फर्क है. गेहलोत ने जिसतरह पायलट के खिलाफ पहले भी बयान दिए हैं वह राजनीतिक मर्यादा के खिलाफ थे और अब जो उन्होंने एक इंटरव्यू में पायलट को जो 6 बार गद्दार कहा है उससे तो दुश्मनी की झलक मिलती है. पायलट ने उनकी बातों का जवाब दिया मगर शालीनता से, शालीनता पायलट ने 2020 में भी नहीं छोड़ी थी और अब भी नहीं, सचिन का यह कहना कि उनकी परवरिश उन्हें ऐसे भाषा के प्रयोग की अनुमति नहीं देती। इसे पायलट का गेहलोत के मुंह पर ज़ोरदार तमाचा ही माना जा सकता है.

विरोध कहाँ नहीं होता, पार्टी के बाहर भी और पार्टी के अंदर भी. हक़ नहीं मिलता तो बग़ावत भी होती है. बग़ावत और गद्दारी में फर्क होता है, शायद दुश्मनी में अंधे हो चुके गेहलोत को इन दोनों के बीच का फर्क नहीं मालूम। और आप इसे बगावत भी नहीं कह सकते, बगावत होती तो पायलट अपनी ज़िद न छोड़ते, पार्टी अध्यक्ष पद न छोड़ते , उपमुख्यमंत्री का पद न छोड़ते। राहुल-प्रियंका के कहने पर अपना विरोध वापस नहीं लेते। पायलट चाहते तो राजस्थान में भाजपा गेम कर सकती थी, लेकिन गेम नहीं हुआ तो उसका सेहरा गेहलोत ने खुद ले लिया कि हमने गेम नहीं होने दिया। पायलट के खिलाफ ऐसे समय पर मोर्चा खोलना, गेहलोत को भी मालूम होगा कि पार्टी में क्या रिएक्शन हो सकता है. रिएक्शन अभी हुआ नहीं है लेकिन जयराम रमेश की टिप्पणी में काफी कुछ छिपा है, रमेश का गेहलोत के शब्दों को अप्रत्याशित बताना और यह कहना कि पार्टी को अगर गेहलोत के अनुभव की ज़रुरत है तो पायलट के जोश की भी ज़रुरत है। मतलब साफ़ है गेहलोत पायलट को पार्टी से दरकिनार नहीं कर सकते क्योंकि कांग्रेस पार्टी को भी मालूम है कि राजस्थान में उसका भविष्य कहाँ है?

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