अमित बिश्नोई
गुजरात विधानसभा चुनाव के पहले चरण के मतदान से पहले आज प्रचार अभियान का अंतिम दिन है. कल रात तक पार्टियों ने खूब धुंआधार प्रचार किया। सूरत में केजरीवाल का रोड शो भी निकला। हमेशा की तरह उनके रोड शो में पत्थर फेंकने की बात भी सामने आयी. पत्थरों वाली तस्वीरें भी सामने आयी और साथ में अपने को पीड़ित दिखाने का पुराना दांव भी आम आदमी पार्टी की तरफ से चला गया. फर्क सिर्फ इतना रहा कि इस बार आम आदमी पार्टी ने पत्थरबाज़ी का आरोप भाजपा के बजाये कांग्रेस पर लगाया। केजरीवाल की रणनीति में अचानक आये इस बदलाव को समझने की कोशिश करते हैं.
दरअसल पिछले कुछ चुनावों से राजनीतिक पार्टियों द्वारा खुद को पीड़ित दिखाने का चलन शुरू हो गया है. पहले यह काम भाजपा की तरफ से होता था, विशेषकर प्रधानमंत्री मोदी की ओर से. चुनाव में उनके भाषणों में प्रताड़ना का पुट बढ़ जाता था. गालियों की बातें होने लगती थी. औकात की बातें होने लगती हैं और जान का खतरा भी बढ़ जाता था. इसबार गलियों और औकात की बातें तो हुई हैं लेकिन जान के खतरे की बात अभी चुनावी भाषणों में नहीं की गयी है. वैसे आगे हो सकती, ये सब चुनावी हवा पर निर्भर है.
वहीँ दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल और आम आदमी पार्टी भी मोदी और भाजपा की राह पर चलते आ रहे हैं. केजरीवाल को भी जब तब जान का खतरा हो जाता है, उन्हें भी लोग गालियां देते हैं, वो भी एक प्रताड़ित व्यक्ति की तरह चुनावी भाषणों में, मीडिया के सामने खुद को पेश करते हैं. गुजरात में भी इस बार केजरीवाल खुद को लगातार प्रताड़ित बताने की कोशिश कर रहे हैं. इसके लिए अक्सर वो भाजपा को ही ज़िम्मेदार ठहराते हैं क्योंकि आज की तारिख में कांग्रेस की स्थिति ऐसी नहीं है कि वो किसी को प्रताड़ित कर सके. लेकिन कलकेजरीवाल ने अपनी रणनीति में थोड़ा बदलाव किया है और रोड शो में पथराव के लिए इसबार भाजपा को नहीं कांग्रेस को ज़िम्मेदार ठहराया है.
केजरीवाल ने कल तक गुजरात में सरकार बनने का दावा किया था लेकिन एक टीवी चैनल के ओपिनियन पोल के मुताबिक उनकी हालत उनके दावों से बिलकुल उलट है. सर्वे के मुताबिक AAP को सिर्फ 10 के आसपास सीटें ही मिल सकती हैं. भाजपा को भारी बहुमत और कांग्रेस को भारी नुक्सान की बात कही गयी है लेकिन भारी नुक्सान के बाद भी कांग्रेस पार्टी AAP पर काफी भारी है. केजरीवाल की परेशानी दरअसल भाजपा नहीं कांग्रेस ही है. उसे गुजरात में कांग्रेस की जगह लेनी है.
गुजरात में आम आदमी पार्टी ने सबसे पहले अपना चुनावी अभियान शुरू किया था, उसे काफी सफलता भी मिलती दिख रही थी लेकिन जैसे जैसे चुनाव अभियान आगे बढ़ा वैसे वैसे AAP की कलई भी गुजरात के लोगों के बीच खुलती गयी. दिल्ली में उसके मंत्रियों के खिलाफ करप्शन के केस खुलने लगे, इन्हें पहले तो बदले की कार्रवाई बताया गया लेकिन बाद में इसमें असलियत भी लोगों को दिखने लगी. जेल में अय्याशी की सत्येंद्र जैन की वायरल वीडियो ने AAP की गुजरात में बढ़ती लोकप्रियता में बड़ा डेंट लगा दिया।
मुसलमानों में उसकी बढ़ती लोकप्रियता भी घटने लगी. कांग्रेस पार्टी के साइलेंट कैम्पेन ने मुस्लिम समुदाय में यह बात मज़बूती से साबित कर दी कि AAP दरअसल भाजपा की ही बी टीम है, जिसका असली मकसद कांग्रेस को हराना नहीं बल्कि भाजपा को जिताना है. AAP की मुफ्त बिजली, शिक्षा जैसे जो मुद्दे गुजरात की जनता को प्रभावित कर रहे थे वो सारी घोषणाएं भी उस समय बेअसर होती गयीं जब कांग्रेस ने भी इस तरह के कई और वादे किये। फिर पंजाब में AAP की सरकार बनने के बाद जिस तरह अपराधों और नशे के धंधे में इज़ाफ़ा हुआ है उससे गुजरात के लोगों में काफी खराब सन्देश गया है. तो कुल मिलाकर जो बढ़त आम आदमी पार्टी को पहले मिलती दिख रही थी उसमें अब काफी गिरावट भी नज़र आ रही है. बहरहाल केजरीवाल के दावों में कमी नज़र नहीं आ रही है. इस चुनाव में ऐसा कोई वादा नहीं जो उन्होंने दावे के रूप में किया न हो, अब देखना है कि उनके वादों और दावों पर गुजरात की जनता 1 दिसंबर को मुहर लगाती है या नहीं.