जोशीमठ – जब आप बद्रीनाथ यात्रा पर हूं तो रास्ते में चमत्कारी और रहस्यम “अमर कल्पवृक्ष” (Amar Kalpavriksha) के दर्शन करना ना भूले. यह एक ऐसा वृक्ष जो धार्मिक मान्यताओं के साथ-साथ वैज्ञानिकों के लिए भी रिसर्च का विषय बना हुआ है. उत्तराखंड के जोशीमठ में स्थित इस पेड़ को लेकर कहा जाता है कि इस वृक्ष की उम्र ढाई हजार साल है. जबकि सामान्यतः कल्पवृक्ष (शहतूत) की उम्र 15 से 20 साल ही होती है. शायद यही वजह है कि यह पेड़ वैज्ञानिकों के लिए कोतुहल का विषय बना हुआ है. धार्मिक मान्यता है कि समुद्र मंथन के समय इस वृक्ष की उत्पत्ति हुई थी. कहा जाता है कि आदि गुरु शंकराचार्य ने भी इस वृक्ष के नीचे ही 5 साल तपस्या कर अमर ज्योति का ज्ञान प्राप्त किया था.
धार्मिक मान्यताएं
पौराणिकता, आध्यात्मिकता और औषधीय महत्व को समेटे हुए अमर कल्पवृक्ष (Amar Kalpavriksha) चमोली जिले के जोशीमठ में स्थित है. करीब 22 मीटर व्यास के वृक्ष की हजारों शाखाएं निकली हुई हैं. लगभग 170 फीट ऊंचे इस वृक्ष की खास बात यह है कि इस पर केवल फूल लगते हैं, फल नहीं. कल्प वृक्ष के नीचे ज्योर्तेश्वर महादेव का पौराणिक मंदिर भी स्थित है. कहा जाता है कि इस वृक्ष के नीचे आदि गुरु शंकराचार्य ने तपस्या कर ज्ञान प्राप्त किया था. साथ ही मान्यता है कि शंकर भाष्य, धर्मसूत्र सहित कई ग्रंथों की रचना भी इसी पेड़ के नीचे हुई है. मान्यता यह भी है कि जब देवताओं और राक्षसों के बीच समुद्र मंथन किया गया तो उसमें 14 रत्न प्राप्त हुए थे. जिसमें एक परिजात वृक्ष भी था. जिसे देवराज इंद्र को सौंप दिया गया था. इंद्र ने हिमालय के उत्तर में सुर कानन वन में इस वृक्ष को स्थापित किया था.
अमर कल्पवृक्ष (Amar Kalpavriksha) के रहस्य
अमर कल्पवृक्ष (Amar Kalpavriksha) न केवल अपने धार्मिक मान्यताओं के लिए जाना जाता है. बल्कि वैज्ञानिकों के लिए भी यह एक बड़े शोध का विषय है. पिछले कई सालों से इस वृक्ष को लेकर शोध कार्य चल रहा है. एफ आर आई के डॉ एस पी नैथानी बताते हैं कि अमर कल्पवृक्ष खोखला है. जिस वजह से उसकी उम्र का सही अंदाजा नहीं लगाया जा सकता है. लेकिन वे बताते हैं कि तना खोखला होने के बावजूद भी यह वृक्ष हरा भरा कैसे हैं यह एक शोध का विषय है.