- नवेद शिकोह
देश के तमाम राज्यों की तरह दिल्ली में भी कोरोना से संघर्ष के लिए आम जनता परेशान है। भले ही संक्रमित आम जनता के इलाज में सरकारों की बद्इंतेज़ामी सामने आ रही है पर ख़ास और रसूखदार लोगों को इतनी दिक्कतों का सामना नहीं करना पड़ रहा है। VVIP कल्चर हर पार्टी में हर सरकार में होता है पर जो पार्टी अपने आपको विशुद्ध रूप से “आम” लोगों की पार्टी बताती हो और वह जब वह पार्टी ख़ास लोगों के लिए काम करने लगे तो सवाल उठना तो लाज़मी है.
बात दिल्ली की है, यहाँ “आम” आदमी की पार्टी है, देश के अन्य राज्यों की तरह यहाँ भी कोरोना का कोहराम मचा हुआ है, अन्य सरकारों की तरह दिल्ली में केजरीवाल सरकार भी बीमार “आम” आदमी के लिए इलाज का व्यापक प्रबंध नहीं कर पा रही। यहां भी ऑक्सीजन की कमी को लेकर हाहाकार मचा है, पर “आप” की दिल्ली सरकार ने दिल्ली हाईकोर्ट के न्यायधीशों, न्यायिक अधिकारियों और उनके परिजनों के लिए फाइव स्टार होटल अशोका में सौ बेड का कोविड केयर सेंटर बनाने का जो फैसला किया उससे यह आम पार्टी ख़ास में बदल गयी। बाद में हाईकोर्ट ने जब यह कह दिया कि ऐसा कोई अनुरोध नहीं किया गया था तो केजरीवाल सरकार की भद पिट गयी| हाई कोर्ट का यह कहना बिलकुल दुरुस्त था कि सरकार के इस तरह के आदेश से न्यायपालिका के बारे में गलत संदेश जा सकता है।
दिल्ली सरकार के उक्त फैसले पर तमाम सवाल उठने लगे। सबसे पहला सवाल तो यह कि ऐसा फैसला करने की ज़रुरत क्यों पड़ी, क्या अरविन्द केजरीवाल अदालती फटकार से बचने के लिए एक तरह से रिश्वत के तौर पर माननीयों को यह सुविधा देना चाह रहे थे? क्या उन्हें इस बात का एहसास हो चला था कोरोना से बिगड़े हालात से निपटने के आरोपों पर वह घिरते जा रहे हैं और विपक्ष, आम दिल्ली निवासियों के हंगामे के बाद दिल्ली की अदालतें भी मद्रास हाई कोर्ट की तरह कोई बेहद सख्त टिप्पणी करने पर मज़बूर हो जाएँगी जो कि AAP की इमेज के लिए किसी धक्के से कम नहीं होगी।
यह बात सच भी निकली क्योंकि दिल्ली हाइकोर्ट ने ऑक्सीजन और दवाओं की कमियों को लेकर केजरीवाल सरकार पर जो सख्त टिप्पणी की वह मद्रास हाईकोर्ट की उस टिप्पणी से बिलकुल कम नहीं थी जो उसने चुनाव आयोग के खिलाफ की। किसी चुनी हुई और लोकप्रिय सरकार के खिलाफ अगर अदालत यह टिप्पणी कर दे कि अगर आपसे हालात से न संभल रहे हों तो हम यह काम किसी और को सौंप दें, उसके लिए डूब मरने वाली बात है. न्यायधीशों द्वारा सुविधाएँ लेने से इंकार केजरीवाल के मुंह पर एक तमाचे जैसा प्रहार है जिसकी गूँज काफी दिनों तक सुनाई देगी।
दूसरी ओर ऐसा भी कहा जा रहा है कि कोविड से बचाव के इंतेजामों को लेकर अदालती फैसलों के बीच हाईकोर्ट के न्यायधीशों के लिए विशेष व्यवस्था का ऑफर दिल्ली सरकार की विशेष नीति है। लेकिन AAP की खास लोगों पर मेहरबानी पार्टी और सरकार की विचारधारा के विपरीत है यह जग ज़ाहिर है। क्योंकि जीवन तो सबके लिए बराबर है, क्या आम और क्या ख़ास. भारतीय संविधान भी यही कहता है कि सब नागरिक बराबर हैं। लेकिन सरकारें भारतीय संविधान की इस हिदायत पर अक्सर अमल नहीं करतीं। कोरोना की तबाही में आम इंसान बेहाल हैं। इलाज से लेकर चिता जलाना और दफ्नों कफन तक में कतारें लग रही है। कोरोना के कहर में आम इंसान को जांच से लेकर एंबुलेंस, अस्पताल के बेड, ऑक्सीजन, इंजेक्शन, दवाओं और वैंटीलेटर की मुश्किल़ो से लेकर ऑक्सीजन और फिर श्मशान-कब्रिस्तान में कतारों में लगना पड़ा। जबकि ख़ास लोगों को ऐसी दिक्कतों का कम सामना करना पड़ा। जहां मरीजों के लिए अस्पतालों में भर्ती होने का संघर्ष करना पड़ा वहीं ये भी खबरें आईं की सत्ताधारियों के लिए एंडवास में अस्पतालों के स्पेशल वार्ड तैयार कर लिए गए।
बहरहाल न्यायाधीशों को AAP सरकार के इस ख़ास ऑफर ने उसे आम आदमी की पार्टी से खास आदमी की पार्टी बना दिया। अब केजरीवाल सरकार कितने भी बहाने करे पर उसकी इमेज पर दाग तो लग ही गया और दाग़ चाहे जितने अच्छे हों दाग़ ही रहते हैं.